Bhumi

प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य संरचना भूमि में है सृजन और संहार की कथा

Bhumi_Veena vanmalaजानी.मानी कथक Kathak नृत्यांगना गुरु प्रेरणा श्रीमाली Prerana Shrimali कथक में नए-नए प्रयोगों और विषयों पर नृत्य संरचनाएं तैयार करने के लिए जानी जाती हैं।

बीती 10 अप्रैल को ‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ में प्रस्तुत की गई उनकीे नृत्य संरचना Choreography का केंद्रीय विषय ‘भूमि’ (Bhumi) या पृथ्वी था।

‘भूमि’ (Bhumi) नृत्य रचना का आलेख तैयार किया था बृजेन्द्र रेही  Brijendra Rehi ने और संगीत तैयार किया था राकेश पाठक  Rakesh Pathak  ने।

इस नृत्य-रचना ने रसिक दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी।

जैसा कि सभी जानते हैं कि पिछले कई सालों से मानव ने भूमि पर अपनी गतिविधियों से न केवल पर्यावरण को प्रदूषित किया है बल्कि भूमि (Bhumi) की उर्वरा को भी नुकसान पहुंचाया है।

प्रेरणा श्रीमाली ने अपनी शिष्याओं, चार नृत्यांगनाओं के साथ कथक के संगीत, नृत्य, नृत्त और भाव पक्ष की विविधताओं के साथ उन गतिविधियों को प्रस्तुत किया जो मानव द्वारा पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रही है।

श्रीमाली ने जहां कथक के व्याकरण के अनुरूप जिस तरह की मुद्रा और प्रतीकों को नृत्य संरचना में पिरोया वह कलाकार की आंतरिक रचनात्मकता की प्रभावशाली अभिव्यक्ति कही जा सकती है।

नृत्य संरचना प्रस्तुत करते समय रचनाकार को इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता है कि बदलते हुए दृश्यों का प्रस्तुतिकरण इस तरह हो कि तारतम्य न टूटे और दृश्य परिवर्तन सहज और स्वाभाविक अहसास दे।

प्रेरणा श्रीमाली ने दृश्य परिवर्तन के लिए नृत्यांगनाओं को यवनिका के रूप में इस्तेमाल कर अभिनव प्रयोग किया है। यह प्रयोग अपने आप में अभिनव कहा जा सकता है।

इस नृत्य संरचना के लिए तैयार संगीत को कुछ कला रसिकों ने  लाउड या कोलाहल की संज्ञा दी।

संभवतः यह इसलिए महसूस किया गया कि प्रेरणा श्रीमाली की अधिकांश नृत्य संरचनाएं संगीत की दृष्टि से सहज, सरल (वाद्यों का कम प्रयोग) और बोधगम्य  रही है।

‘भूमि’ (Bhumi) नृत्य संरचना के संगीत में प्रयुक्त परकशन इंस्ट्रूमेंट, तार वाद्यों पर हावी होने जैसे लग रहे थे किन्तु वह दृश्य के अनुकूल थे और  भूमि पर हो रही विनाशकारी गतिविधियों को प्रतिध्वनित कर रहे थे।

नृत्य संरचना में प्रस्तुत विभिन्न दृश्यों जिसमें वन उपवन, पशु पक्षी, मानव-व्यवहार निर्माण कार्य और कल कारखानों का शोर शराबा संरचना को वास्तविकता के करीब रखता है।

नृत्य संरचना में शुरू से ही मंद स्वर में पदाघातों का प्रयोग किया गया जो क्रमशः उठता गया।  यह भूमि के नीचे चल रही गतिविधियों का प्रतीक था।

सभी जानते है कि भूमि (Bhumi)  के नीचे निरंतर हलचल होती ही रहती है। फिर चाहे कम्पन हो,  भूकम्प हो , ज्वलामुखी हो, अचानक फूट पड़ने वाले तूफानी फव्वारे हों — यह सब पृथ्वी के नीचे का सृजन और संहार दोनों ही है, जो साथ-साथ चलते हैं।

घुंघरुओं की ध्वनि का पार्श्व संगीत के रूप में इसप्रकार का प्रयोग भी इस नृत्य संरचना को विशेष बनाता है।

नृत्य संरचना की शुरुआत भूमि (Bhumi) सूक्त के तीसरे श्लोक से की गई जिसमें कहा गया है:

यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः ।

यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ॥3 ॥

अर्थात् समुद्र और नदियों का जल जिसमें गुंथा हुआ है, इसमें खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीव जीवित है, वह मां पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे।

इस श्लोक को सभी नृत्यंगनाओं ने उसी भावभूमि के साथ प्रस्तुत किया गया जो श्लोक में व्यक्त किया गया है।

बीच बीच में कबीर के पद ‘माटी कहे कुम्हार से….’ की अभिव्यक्ति को इस प्रकार की मुद्राओं और भाव बोध से प्रस्तुत किया गया कि वह एक सक्षम, सहज और कलात्मक संप्रेषण बन गई।

प्रेरणा श्रीमाली ने नृत्य रचना को संजोने में जिन तालों का प्रयोग किया है उनमें तीन ताल, चैताला, झपताल और धमार ताल हैं। भिन्न मात्राओं की ये तालें भी नृत्य में चुबकीय प्रभाव पैदा कर रही थीं।

नृत्य संरचना के अंत में सूफी कवि तुलसीसाहब का पद ‘जग जग कहते जुग भये, जगा न एको बार…..’ मानव के लिए ऐसी सीख है जो उसे भूमि के प्रति दायित्व का अहसास कराती है, झकझोरती है।

प्रस्तुत नृत्य संरचना में प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों और मनुष्य के क्रियाकलापों को कथक के व्याकरण, संगीत के आधार और अभिनय की बारीकियों के साथ प्रस्तुत किया गया है।

यह नृत्य संरचना जहां मनुष्य और प्रकृति के प्रेम को दर्शाति है वहीं स्वार्थ के वशीभूत होकर इंसान द्वारा प्रकृति को निरंतर नुकसान पहुंचाने के कामों को भी कलात्मक रूप में प्रस्तुत करती है।

एक प्रकार से ‘भूमि’(Bhumi) नृत्य संरचना सृजन और संहार की कथा है। कोमल भावनाओं और मनुष्य की संवेदनहीनता की क्रूरता को उकेरने वाली नृत्य प्रस्तुति है।

‘भूमि’(Bhumi)  नृत्य संरचना कथक के समृद्ध साहित्य की ऐसी कृति है जो भिन्न -भिन्न रसों में गुंफित कलात्मक प्रस्तुति कही जा सकती है।

‘भूमि’ (Bhumi) नृत्य संरचना का आलेख तैयार किया बृजेन्द्र रेही ने और संगीत से संवारा राकेश पाठक ने।

संगतिकार कलाकार थे फतेह सिंह गंगानी(तबला) और परमिंदर सिंह(तबला), लावण्य कुमार (सितार) सतीश पाठक (बाँसुरी )जनाब शाहनवाज खान (सारंगी), संदीप गंगानी और सुश्री तरुण कांडपाल (गायन )और पढ़ंत की श्रीमती आरती श्रीवास्तव ने।

नृत्यांगना और नृत्य रचनाकार (कोरियोग्राफर) सुश्री प्रेरणा श्रीमाली। साथी नृत्यांगनाएं श्रीमति वीणा वनमाला, श्रीमती शिप्रा जोशी, सुश्री सोनम चैहान, सुश्री निहारिका कुशवाह।

– जनसमाचार समीक्षक