सुन्दर, नाजुक और कोमल, खिली हुई है नन्ही-सी परी। ये कोई कविता नहीं, बल्कि मॉडल और एक्ट्रेस परी चौहान के व्यक्त्त्वि की व्याख्या है, जिनमें नन्हीं परी की तरह मासूमियत और चुलबुलापन है।
लिबास, तनिष्क, बीबा, देसी टशन जैसे कॉमर्शियल कर चुकी परी चौहान कहती हैं कि जब तक कैमरा चलता है, मेरी लाइफ लाइन
चलती रहती है और जब कैमरा बंद होता है, तो मेरी ज़िंदगी में भी ठहराव आ जाता है।
कहने का मतलब ये है कि परी को हर समय कैमरे का फोकस चाहिए। ऐसा जुनून बहुत कम अभिनेत्रियों में देखने को मिलता है।
जिस अभिनेत्री के कॅरियर की शुरूआत ही हॉलीवुड की फिल्म से हो, तो कहना ही पड़ेगा कि उनका शुक्र मज़बूत है। परी यह बात कहती भी हैं कि उन्हें परी नाम इसलिए दिया गया ताकि शुक्र मज़बूत हो और परी के काम से यह बात सच साबित हुई है।
हॉलीवुड फिल्म ‘द पिकॉक’ में नेगेटिव लीड रोल कर चुकी परी अब बॉलीवुड में भी ऐसा ही रोल चाहती हैं, जिनमें ग्रे शेड नजऱ आए। ऐसे कैरेक्टर्स परी को चैलेंजिंग लगते हैं। परी अपनी बेबाक राय के लिए भी चर्चाओं में रहती है।
वह कहती हैं कि बॉलीवुड में किसी को आसानी से काम नहीं मिलता। धर्मा प्रोडक्शन जैसा बैनर स्टारकिड्स के लिए है, आउटसाइडर के लिए नहीं।
बड़े बैनर्स अरबपतियों के बेटे-बेटियों को फिल्मों में लेकर अपने बैंक के लॉकर भरते हैं, मुझ जैसी आउटसाइडर हीरोइन को ऐसे निर्माता चार बातें सुनाएंगे और चलता कर देंगे।
छोटे बैनर्स के पास इतना बजट नहीं होता कि किसी नई हीरोइन को सही तरीके से प्रेजेंट कर सकें।
पहले मुझे खुद को साबित करके दिखाना होगा, तभी बड़े मेकर्स की आंखें खुलेंगी। परी के अपकमिंग प्रोजेक्ट्स की बात करें, तो दो म्यूजि़क वीडियोज़ और साउथ की भी दो फिल्में उनके पास हैं।
चुनिंदा काम करने की वजह यही है कि परफोरमेंस ओरिएंटेड रोल नहीं मिलते इसलिए मना करना पड़ता है। परी कहती हैं कि रोल बहुत लिमिटेड हैं और काम करने वाले ज्यादा। मुझे भीड़ में शामिल नहीं होना इसलिए रफ्तार धीमी है, पर जिस दिन मुझे मेरा
मनचाहा रोल मिल गया, उस दिन स्टारडम मुझसे ज्यादा दूर नहीं होगा।
— फोटो एवं आलेख: अनिल बेदाग
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