मुंबई, 16 अक्टूबर | दो दशक पहले यहां के इस्कॉन सभागार में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने एक गायिका सोमा घोष को सुना और उन्हें एक संगीतमय जुगलबंदी के लिए आमंत्रित किया था।
खान साहब जैसी बड़ी हस्ती से मिले अप्रत्याशित आमंत्रण पर करीब-करीब हक्का बक्का हुईं सोमा उनके साथ जुगलबंदी के लिए साहस नहीं जुटा पाईं।
छह महीने बाद खान साहब ने उन्हें फिर बुलाया, लेकिन इस बार उन्होंने अपने घर वाराणसी बुलाया और तब उनके 40 सदस्यीय पूरे परिवार के सामने सोमा ने गीत गाया।
फाइल फोटो: बिस्मिल्ला खान साहब को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने के अवसर पर 4 मई 2001 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खां साहब को बधाई देते हुए।
सोमा ने आईएएनएस के साथ एक खुली बातचीत में कहा, “वह श्रोताओं का छोटा समूह जैसा था। खान साहब ने अपने परिजनों से पूछा, क्या मुझे जुगलबंदी के साथ सोमा को सम्मानित करना चाहिए? सबने हामी भर दी! अंतत: मशहूर शहनाई वादक के साथ पहली बार जुगलबंदी के लिए मुझको साहस मिला।”
आज, खान साहब के जन्मशती वर्ष में सोमा मशहूर शहनाई वादक और अपने प्रिय मित्र बॉलीवुड के मशहूर संगीत निर्देशक रहे दिवंगत नौशाद अली के सपनों को साकार करने में तल्लीन हैं। खान साहब ने सोमा को अपनी दत्तक पुत्री के रूप में अपनाया था।
इस साल पद्मश्री से सम्मानित सोमा ने कहा, “मैं वाराणसी में ‘भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अकादमी’ नामक एक शास्त्रीय संगीत संस्थान स्थापित करने जा रही हूं। यह देश के लुप्तप्राय संगीत वाद्ययंत्र और अनेक संगीत घरानों की विरासतों और समृद्ध परंपराओं के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए समर्पित होगा।”
उत्तर प्रदेश सरकार ने अकादमी के लिए एक एकड़ जमीन दी है, लेकिन सोमा ने कहा, “खान साहब की याद में अकादमी की स्थापना के लिए 35 से 40 करोड़ रुपये जुटाने की असली चुनौती अब शुरू हुई है।” 90 साल की उम्र में अगस्त, 2006 में खान साहब का निधन हुआ था।
सोमा ने कहा कि प्रामाणिक भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए सच्चे संगीत प्रेमियों के पास वास्तव में अच्छे अवसर नहीं हैं। अधिकांश संस्थान बॉलीवुड शैली में अब संगीत पढ़ाते हैं और शिक्षक ऑनलाइन हैं।
अफसोस करते हुए सोमा ने कहा, “बॉलीवुड शैली के संगीत खुद एक घराना बन गया है। लेकिन इस प्रक्रिया में प्राचीन संगीत और संगीत वाद्ययंत्र लुप्त होते जा रहे हैं। असली समर्पित संगीतकार, उस्ताद और संगीत शिक्षक तथा कलाकार आर्थिक रूप से तंगहाल हैं। मैं उनमें से कुछ को जानती हूं, जिन्हें गुजर-बसर करने के लिए फल या सब्जियां बेचनी पड़ी है।”
खान साहब ने अपनी पूरी जिंदगी शहनाई को समर्पित कर दी थी और दुनियाभर में शहनाई को लोकप्रिय बनाया, लेकिन एक दरिद्र के रूप में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के दस साल बाद उनके परिजन दो जून की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
सोमा ने कहा कि खान साहब को भारतरत्न सम्मान मिला, लेकिन उससे पैसा नहीं आया। इन अवार्डो से पुरस्कृत ऐसे कई लोग हैं जो आर्थिक तंगी में जी रहे हैं और कुछ ने तो अर्थाभाव में ही दम तोड़ दिया।
सोमा ने कहा, “खान साहब की मशहूर ‘शादी की शहनाई’ की रिकार्डिग देशभर में हर शादी में बजाई जाती है, लेकिन रॉयल्टी के रूप में उनके परिवार को एक रुपया भी नहीं मिलता। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए शास्त्रीय संगीत को भी संरक्षित करने की जरूरत है।”— काइद नाजमी
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