कोलकाता| किसान दिन-रात कड़ी मेहनत कर फसलें उगाते हैं, लेकिन उन्हें खुद अपनी लहलहाती फसलों को जलाकर नष्ट करने को मजबूर होना पड़े, तो उन पर क्या बीतेगी इसका अंदाजा लगाना हर किसी के वश की बात नहीं। बांग्लादेश के रास्ते भारत के पूर्वी हिस्सों में दस्तक देने वाले एक खास किस्म के कवक के कारण गेहूं में होने वाले ‘व्हीट ब्लास्ट’ रोग ने किसानों के लिए यही स्थिति पैदा कर दी है।
यह हालात केवल देश के पूर्वी हिस्सों तक ही सीमित नहीं रहने वाला, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी है। बांग्लादेश के वैज्ञानिकों ने इस बीमारी के प्रति चेतावनी देते इससे निजात दिलाने के लिए भारतीय समकक्षों को मदद की पेशकश की है। गेहूं में होने वाले इस रोग ने साल 2016 में बांग्लादेश में दस्तक दी थी।
बंगाल में व्हीट ब्लास्ट का पहला मामला देखने के बाद राज्य में स्थित बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय (बीसीकेवी) के विशेषज्ञों ने रोगाणु को अच्छी तरह से समझने के लिए बांग्लादेश के बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान कृषि विश्वविद्यालय (बीएसएमआरएयू) के वैज्ञानिकों की मदद मांगी थी।
नादिया जिला स्थित बीसीकेवी में प्लांट पैथोलॉजी के सहायक प्रोफेसर सुनीता महापात्रा ने आईएएनएस से कहा, “बांग्लादेश के वैज्ञानिकों के सहयोग से हम इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि वे इसपर साल 2016 से ही अध्ययन कर रहे हैं। इसलिए उनका अनुभव हमारे काम आएगा। इस तरह का शोध दक्षिणपूर्व एशिया के अन्य मुल्कों की भी मदद करेगा, जहां उस रोग के होने की संभावना है।”
महापात्रा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रही हैं।
व्हीट ब्लास्ट रोग ‘मैग्नापोर्थे ओरिजी’ नामक कवक से होता है, हालांकि वैज्ञानिक अभी इसकी सही-सही पहचान करने में लगे हुए हैं।
महापात्रा ने कहा कि दक्षिण अमेरिका में समय-समय पर तबाही मचाने वाले इस रोग को बंगाल के मुर्शिदाबाद तथा नादिया जिले में गेहूं की फसलों में फरवरी में देखा गया। इन इलाकों में कम से कम 1,000 एकड़ जमीन में लगी गेहूं की फसलें इस रोग की चपेट में आ गईं।
उन्होंने कहा, “आईसीएआर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली तथा राज्य सरकार के कृषि विभाग ने तत्काल उपाय किए हैं और इस कवक के फैलने से रोकने तथा अगले मौसम तक इसे जीवित रहने से रोकने के लिए कवक से ग्रसित फसलों को जलाने का फैसला किया।”
अब, चूंकि गेहूं को काटने का मौसम आने वाला है, इसलिए ‘दुश्मन के बारे में जानने’ की महत्ता बढ़ गई है।
व्हीट ब्लास्ट पहली बार सन् 1985 में ब्राजील में सामने आया था। फरवरी 2016 में यह बांग्लादेश के आठ जिलों में फैल गया और एक महामारी के रूप में सामने आया। दक्षिण अमेरिका के बाहर किसी देश में यह पहली बार सामने आया है। बांग्लादेश में पिछले साल 15,000 हेक्टेयर खेत में लगी फसलें बर्बाद हो गई थीं और गेहूं के कुल उत्पादन में 90 फीसदी की कमी आई थी।
इस बीच, बीएसएमआरएयू में मोहम्मद तोफज्जल इस्लाम तथा उनके दल ने बीजों, अजैविक पौधों तथा वैकल्पिक होस्ट में व्हीट ब्लास्ट का पता लगाने के लिए एक पारंपरिक तथा तेज आणविक नैदानिक उपकरण का विकास किया है।
बीएसएमआरएयू में जैव तकनीक विभाग के प्रमुख तथा प्रोफेसर इस्लाम ने आईएएनएस से कहा, “भारत में व्हीट ब्लास्ट की उत्पत्ति तथा अनुवांशिक पहचान करने के लिए भारतीय शोधकर्ताओं के साथ सहयोग का हम स्वागत करते हैं। फील्ड पैथोजेनिक एनालिटिक विधि तथा आणविक जांच के माध्यम से व्हीट ब्लास्ट के भारतीय नमूनों की जांच में हम उनकी मदद करने के लिए तैयार है।”
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “यह रोगाणु चावल में एक गंभीर रोग का कारण बनता है और अगर यही हालात गेहूं में रहे तो यह विनाशकारी साबित होगा।”
ब्रिटिश तथा बांग्लादेशी शोध दल ओपन व्हीट ब्लास्ट वेबसाइट पर मौजूद व्हीट ब्लास्ट रोगाणु के लिए कच्चे अनुवांशिक आंकड़ों का निर्माण कर रहे हैं। इस काम में ब्रिटेन के नॉर्विच स्थित द सेंसबरी लेबोरेटरी के सोफियन कमाउन महत्वपूर्ण सहयोग कर रहे हैं।
इस्लाम ने कहा, “हमारा मूल उद्देश्य किसानों के लिए गेहूं के एक टिकाऊ ब्लास्ट रोधी किस्म का विकास करना है।”
महापात्रा ने कहा कि रोगाणु के बारे में पता लगाने के लिए अनुवांशिक अध्ययन बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा, “हमें गेहूं की बुआई का अगला मौसम आने से पहले जल्द से जल्द रोगाणु के पूर्वजों, रोगाणु के व्यवहार, रोगाणु के विस्तार, होस्ट में रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में भी जानकारी प्राप्त करने की जरूरत है।”
इस्लाम का मानना है कि फंगस के स्पोर (जनन इकाई) ने हवा के माध्यम से छह किलोमीटर या उससे अधिक की दूरी तय की होगी, जिसके कारण यह बंगाल तक पहुंचा और वहां गेहूं को फसलों को नुकसान पहुंचाया।
उन्होंने कहा, “भौगोलिक सीमाओं को पार करने के लिए ब्लास्ट को किसी पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं होती। यह दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी है। अगर देर हुई तो यह दक्षिण एशिया के लिए विनाशकारी साबित होगा।”
इंटरनेशनल मेज एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर (सीआईएमएमवाईटी) की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, दक्षिण एशिया में 30 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं और इस क्षेत्र में सालाना 10 करोड़ टन से अधिक गेहूं की खपत होती है।
–सहाना घोष,आईएएनएस
Follow @JansamacharNews