रायपुर, 24 मई (जनसमा)। कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों ने बुधवार को यहां बताया कि किसान फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेतों में ही जला देते हैं, ताकि नई फसलों की बोआई कर सकें। फसल अवशेषों को खेतों में जलाने से मिट्टी की उर्वरता कम होती है। मित्र कीटों के साथ-साथ सूक्ष्म जीव पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। अवशेषों के जलने से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बल मिलता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा इसका प्रभाव मानव और पशुओं के अलावा मिट्टी के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) ने फसल के अवशेषों को खेतों में जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। फसल अवशेष खेतों में जलाना अब दण्डनीय अपराध होगा। फसल अवशेष जलाने पर किसानों को पर्यावरण को होने वाले नुकसान के एवज में हर्जाना देना होगा। छोटे किसान जिनके पास दो एकड़ से कम खेत हैं, उन्हें दो हजार 500 रूपए, मध्यम श्रेणी के किसान, जिनके पास दो से पांच एकड़ खेत हैं, उन्हें पांच हजार रूपए एवं बड़े किसान जिनके पास पांच एकड़ से अधिक खेत हैं, उन्हें 15 हजार रूपए का हर्जाना देना होगा।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण प्रमुख बेंच नई दिल्ली द्वारा पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण) के संदर्भ में आदेश पारित कर फसल अवशेषों को खेतों में जलाना प्रतिबंधित किया गया है। प्राधिकरण की भोपाल बेंच द्वारा राज्य शासन को इसका परिपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। प्राधिकरण के आदेश के संदर्भ में राज्य शासन द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को परिपत्र जारी कर फसल अवशेषों के जलाए जाने पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
वैज्ञानिकों ने बताया कि फसल कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों जैसे घास-फूस, पत्तियों और पौधों के ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन एक हेक्टेयर की दर से खेतों में छिड़काव कर कल्टीमेटर या रोटावेटर से जमीन को बराबर मिला देना चाहिए। फसल कटाई के बाद दी गई नाइट्रोजन अवशेषों की सड़न क्रिया को तेज कर देती है। इ स प्रकार पौधों के अवशेष खेतों में ही विघटित होकर ह्यूमस की मात्रा में बढ़ोत्तरी करते हैं। इस प्रक्रिया में एक माह का समय लगता है। एक माह के पश्चात फसल अवशेष स्वयं विघटित होकर आगे बोई जाने वाली फसलों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
(फाइल फोटो)
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