Cashless

‘कैशलेस इंडिया’ की डगर है मुश्किल!

नई दिल्ली, 5 दिसंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले के बीच कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने की बात कहकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। यह बहस इस बात को लेकर है कि क्या भारत अभी कैशलेस अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है या फिर मोदी सरकार ने आगामी चुनावों के मद्देनजर एक नया शिगूफा छेड़ दिया है। अमेरिका जैसा देश अभी भी पूर्ण रूप से कैशलेस नहीं हो पाया है तो ऐसे में भारत को पूरी तरह से कैशलेस बनाने का दावा कितना कारगर साबित होगा?

एक सवाल यह भी है कि क्या यह हमारे देश के सामाजिक एवं आर्थिक ढांचे के अनुरूप फिट बैठेगा? विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी देश को कैशलेस बनने में कम से कम 10 से 15 साल लग जाएंगे।

इन अनसुलझे सवालों का जवाब देते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव श्रादोल चौबे ने आईएएनएस को बताया, “भारत बहुत बड़ा देश है और यहां असमानताएं बहुत ज्यादा हैं। इसके लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा होना बहुत जरूरी है। हम अभी 3जी, 4जी पर ही अटके हुए हैं, देश का एक बड़ा वर्ग गांवों में बसता है। यह फैसला ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज कर लिया गया है, जहां निरक्षरता चरम पर है। डिजिटल अज्ञानता के बारे में तो सोचा ही नहीं गया है। देश के डिजिटल बनने में अभी कम से कम 10 से 15 साल लग सकते हैं।”

सचमुच, देश को डिजिटल और कैशलेस बनने में अभी लंबा वक्त लगेगा। इसके सामने सिर्फ एक चुनौती नहीं, बल्कि चुनौतियों का अंबार है।

बाजार विश्लेषक प्रदीप सुरेका कहते हैं, “सरकार ने नोटबंदी का फैसला हड़बड़ी में उठाया है। कैशलेस इंडिया का फैसला भी इसी तरह लिया गया। देश के बुनियादी ढांचे और सामाजिक संरचना को समझे बिना फैसले लिए जा रहे हैं, जिसकी गाज आम आदमी पर गिर रही है।

देश की 125 करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग गरीब और अशिक्षित हैं, जिनके लिए कैशलेस लेनदेन की बात बेमानी है। उन्हें कैशलेस की आदत डालने से पहले शिक्षित करना पड़ेगा जो अपने आप में एक बड़ा काम है। देश की एक बड़ी आबादी को शिक्षित करने के बाद समस्या यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि देश के कई क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं, वहां नकदी रहित लेनदेन सोचना बेमानी होगा।

अर्थशास्त्री नितिन पंत ने आईएएनएस को बताया कि देश के जिस एक तबके को स्मार्टफोन चलाना तक नहीं आता उनके लिए ईबैंकिंग की डगर बहुत कठिन है। देश के 70 करोड़ लोगों के पास ही बैंक खाता है इनमें से 24 करोड़ खाते पिछले एक साल में प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खुले हैं और वे इसे लेकर कितने सजग है यह भी सोचने वाली बात है।

बाजार विश्लेषक प्रदीप सुरेका ने आईएएनएस को बताया, “सरकार ने नोटबंदी के बाद कैशलेस इंडिया बनाने का फैसला जल्दबाजी में लिया है। भारत को अभी कैशलेस बनने में लंबा समय लगेगा। ग्रामीण क्षेत्रों को कैशलेस बनाने की बात तो दूर शहरी क्षेत्रों में भी यह बहुत मुश्किल होता दिख रहा है। सरकार की सोच बेशक अच्छी हो सकती है, लेकिन बिना तैयारी के जल्दबाजी में फैसला लेकर लोगों को फंसा दिया है।”

मोदी ने हाल ही में देश को कतार मुक्त बनाने की बात कही थी, लेकिन पिछले लगभग एक महीने से पूरा देश कतार में खड़ा है। कंपनियों की कमाई घट गई है, लोगों की नौकरियां छिन रही हैं, बाजार ठप पड़े हैं या घाटे में चल रहे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज की प्रोफेसर और अर्थशास्त्री रूबिना ने आईएएनएस से कहा, “अभी मोदी के कैशलेस इंडिया के फैसले की आलोचना हो रही है, लेकिन दीर्घावधि इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। समाज बदलाव को जल्दी से स्वीकार नहीं कर पाता लेकिन यही बदलाव बाद में आदत बन जाता है।”

हमारे देश में 75 फीसदी आर्थिक लेनदेन नकदी में होता है। अमेरिका, फ्रांस, जापान और जर्मनी में यह आंकड़ा 20 से 25 फीसदी है। देश में लगभग दो लाख एटीएम मशीनें हैं और अधिकांश भारतीय डेबिट कार्ड का इस्तेमाल केवल एटीएम से पैसा निकालने के लिए करते हैं। इंटरनेट की पहुंच भी फिलहाल 34.8 फीसदी आबादी तक ही है तो ऐसे में सरकार लोगों को कैशलेस बनने के लिए किस तरह तैयार करेगी।

फिलहाल, देश की साक्षरता दर 74.04 फीसदी है। प्लास्टिक मनी और ऑनलाइन लेनदेन के लिए शिक्षित होना अनिवार्य है। अशिक्षा की स्थिति में धोखाधड़ी की संभावना रहती है और डिजिटल में हैकिंग भी एक बड़ा मुद्दा है। अभी हाल ही में आईसीआईसीआई बैंक सहित तमाम बड़े बैंकों के लाखों एटीएम पिन नंबर हैक कर लिए गए तो ऐसे में सरकार की रणनीति क्या रहने वाली है।

चौबे कहते हैं, “नकदी रहित अर्थव्यवस्थआ ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि ऑनलाइन सिक्योरिटी सुनिश्चित करना भी जरूरी है।”

सुरेका कहते हैं, “हमारे देश में कमी यह है कि यहां नियम बना दिए जाते हैं, लेकिन उससे पहले तैयारी नहीं की जाती। कैशलेस इंडिया के लिए सबसे पहले देश के बुनियादी ढांचे को उसके अनुरूप तैयार करना चाहिए था, लेकिन पता नहीं सरकार को किस बात की जल्दी थी।” –आईएएनएस