नई दिल्ली, 3 सितम्बर | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गुड़गांव के किसानों से वर्ष 2004-2007 के बीच 400 एकड़ भूमि खरीद में हुई कथित गड़बड़ियों की जांच के सिलसिले में दिल्ली और हरियाणा में 20 ठिकानों पर छापे मारे हैं। इसकी वजह से किसानों और भू-मालिकों को करीब 1500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। एक अधिकारी ने कहा कि सीबीआई की अलग-अलग टीमों ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा, पूर्व प्रधान सचिव एम. एल.तयाल और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य छत्तर सिंह (दोनों पूर्व आईएएस अधिकारी) और एक वर्तमान आईएएस अधिकारी एस.एस. ढिल्लन के दिल्ली और हरियाणा के गुड़गांव, रोहतक, चंडीगढ़ और पंचकुला में स्थित ठिकानों पर छापे मारे हैं।
फाइल फोटो: भूपिंदर सिंह हुड्डा। (आईएएनएस)
हरियाणा सरकार के आग्रह और केंद्र सरकार के निर्देश पर सीबीआई ने हरियाणा सरकार के अज्ञात सरकारी सेवकों और कुछ निजी लोगों के खिलाफ पिछले वर्ष सितंबर में मामला दर्ज किया था।
सीबीआई सूत्रों ने कहा कि अज्ञात आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, फर्जी दस्तावेज को असली के रूप में इस्तेमाल करने, आपराधिक षडयंत्र रचने और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।
सीबीआई ने गुड़गांव के मानेसर पुलिस से इस मामले को अपने हाथ में लिया है। पुलिस पहले ही हरियाणा के कुछ सरकारी अधिकारियों और निजी लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर चुकी थी।
सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि आरोप है कि कुछ निजी भवन निर्माताओं ने हरियाणा सरकार के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके गुड़गांव के मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला आदि गांवों के किसानों से वर्ष 2004 के 27 अगस्त से 2007 के 24 अगस्त के बीच कौड़ियों के भाव करीब 400 एकड़ भूमि खरीद ली।
बताया जाता है कि किसानों और भू-मालिकों को धमकी दी गई कि यदि उन्होंने जमीन नहीं बेची तो सरकार उसे अधिग्रहीत कर लेगी।
अधिकारी के मुताबिक, हरियाणा सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मानेसर, नौरंगपुर और लखनौला में टाउनशिप के लिए शुरुआत में करीब 912 एकड़ भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के लिए एक अधिसूचना जारी कर दी।
इसके बाद किसानों और भू-मालिकों की सभी जमीन अधिग्रहण करने की धमकी देकर बहुत कम कीमत पर उसे खरीद ली गई।
सीबीआई के अधिकारी ने कहा, “जमीन को अधिग्रहण प्रक्रिया से मुक्त करने के लिए उद्योग निदेशक के स्तर से 24 अगस्त, 2007 को एक आदेश भी जारी हुआ, लेकिन सरकार की नीति का उल्लंघन करते हुए भूमि उनके मूल मालिकों की जगह बिल्डरों और उनकी कंपनियों और एजेंटों के नाम जारी कर दी गई।”
उस समय बाजार मूल्य के हिसाब से जमीन की कीमत करीब चार करोड़ रुपये प्रति एकड़ थी, इस तरह करीब 1600 करोड़ रुपये की जमीन भवन निर्माताओं ने मात्र 100 करोड़ रुपये में खरीद ली। –आईएएनएस
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