देश के दक्षिणी भागों को बहुत सी आपदा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसलिए केन्द्र को आपदाओं से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में इन राज्यों की मदद करनी चाहिए।
यह बात कही उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने। वह सोमवार को आंध्र प्रदेश के कोंडापवुलुरू में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की आधारशिला रखने के बाद एकत्र जनसमूह को संबोधित कर रहे थे।
इस अवसर पर गृह राज्य मंत्री किरेन रीजीजू, आंध्र प्रदेश के विधि और न्याय मंत्री कोल्लू रवीन्द्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत को एक ऐसे बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है, जो आपदा जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से उबार सके और सबसे अधिक संवेदनशील समुदायों की जीवन रेखा बन सके।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ रही हैं और भारत इनसे सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है। हमने पहले भी बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाएं देखी हैं, जिनमें बाढ़ से लेकर भूकंप, भूस्खलन और तूफान जैसे 1999 का भयंकर तूफान, 2001 में गुजरात में भूकंप, 2004 में दक्षिण भारत में सुनामी, 2005 में मुंबई में बाढ़, 2005 में कश्मीर में भूकंप, 2008 में कोसी नदी में बाढ़, 2011 में सिक्किम में भूकंप, 2013 और 2014 में क्रमश: फेलिन और हुद-हुद आदि शामिल है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत के करीब 59 प्रतिशत भूमि क्षेत्र में हल्के से भारी भूकंप आ सकते हैं। 40 मिलियन हेक्टेयर (भूमि का 12 प्रतिशत) से अधिक क्षेत्र में बाढ़, करीब 5700 किलोमीटर तटीय रेखा में समुद्री तूफान और सुनामी, 2 प्रतिशत भूमि में भू-स्खलन आ सकते हैं और भारत की कृषि योग्य भूमि का 68 प्रतिशत सूखे से प्रभावित हो रहा है।
उप राष्ट्रपति नायडू ने कहा कि जलमार्गों में आंधाधुंध अतिक्रमण, पानी निकासी की अपर्याप्त प्रणाली और निकासी से जुड़े ढांचागत क्षेत्र का रख-रखाव नहीं होने के कारण शहरों और कस्बों में बाढ़ की स्थिति देखने को मिल रही है।
उन्होंने कहा कि इस तरह की आपदाएं न केवल लोगों के जीवन में बाधा पहुंचाती हैं, बल्कि आपदा प्रभावित इलाकों को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं। साथ ही पूरे समाज और देश की अर्थव्यवस्था को भी संकट में डालती है।
नायडू ने कहा कि आपदा प्रभावित 90 प्रतिशत आबादी एशिया में है। यह आवश्यक है कि इस आबादी को आपदा के संभावित खतरों की जानकारी दी जाए। उन्होंने कहा कि इन लोगों के पास पर्याप्त जानकारी और कौशल होना चाहिए, जिससे वे अपने जान-माल की रक्षा कर सकें। हालांकि हम आपदा प्रबंधन में तेजी से बदलाव कर रहे हैं। इसे राहत पर केन्द्रित दृष्टिकोण से समग्रता की ओर ले जाया जा रहा है, जिसमें तैयारी, रोकथाम, जोखिम को कम करना शामिल है। आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए संवेदनशील समुदायों के लिए बुनियादी ढांचे और जीवन रेखा सेवाओं के सम्बंध में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
उप राष्ट्रपति ने कहा कि प्रशासनिक मंत्रालय के रूप में गृह मंत्रालय को समन्वय की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने कहा कि हाल में ओडिशा में आए फेलिन और आंध्र प्रदेश के हुद-हुद तूफानों के दौरान पूर्व चेतावनी तथा तैयारियों की सफलता दिखाई दी। तूफान के स्थान और उसकी तीव्रता सहित चेतावनी संदेशों को पहले ही भेज दिया गया।
वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत आपदा जोखिम कम करने के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-30) का एक पक्षकार है, जो हमें अधिक व्यावहारिक और उपयोगी दस्तावेज प्रदान करता है, जिसमें आपदा जोखिम के सम्बंध में लोगों के लिए एहतियाती दृष्टिकोण को शामिल किया गया है। इससे आपदा जोखिम में कमी आएगी और गरीब तथा सबसे अधिक संवेदनशील लोगों को मजबूत बनाया जा सकेगा।
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