आईये आज आपको मिलाते हैं सफेद सोने से कमाई करने वाली ग्रामीण महिलाओं (rural women) से। सफेद सोना यानी मशरूम। तो ये महिलाएँ हैं श्रीमती पुष्पा बाई साहू और श्रीमती लीला बाई साहू।
जहां चाह होती है, वहां राह खुद-ब-खुद निकल जाती है। यह बात है ऐसी ग्रामीण महिलओं (rural women) की जिन्होने कभी अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा और न ही बाहर की दुनिया से ज्यादा वाकिफ हैं। लेकिन अब ये ग्रामीण महिलओं (rural women) आत्मनिर्भर हैं और अपने पारिवार का सहारा बनी हुई हैं।
इन महिलाओं ने रोज की दिनचर्या के साथ अपने व अपने परिवार के लिए समृद्धि की राह तलाश कर ली है।
हम बात कर रहे हैं बेमेतरा जिले के साजा ब्लॉक अंर्तगत पिपरिया गांव की अन्नपूर्णा महिला स्व-सहायता समूह की ग्रामीण महिलओं (rural women) की, जिन्होने मिलकर न केवल अपनी गरीबी का हल निकला बल्कि परिवार के लिए अच्छी खासी रकम कमा कर रही हैं।
यह सब कुछ संभव हो पाया है, मशरूम की खेती से। मशरूम (Mushroom) आज इन ग्रामीण महिलओं (rural women) के लिए सफेद सोना साबित हो रहा है। मशरूम की खेती (Mushroom farming) करके शुरूवाती 2 महीने मे ही महिलाओं ने 35 हजार रुपए की आमदनी कर ली है।
करीब 2 साल पहले पिपरिया गांव की महिलाओं का जीवन भी आम ग्रामवासी महिलाओं की तरह था, वे दिनभर खेतो में काम व रोजी-मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालती थीं।
इनके जीवन में बदलाव राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) लेकर आया। सबसे पहले राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) अन्तर्गत महिलाओं का समूह बनाये फिर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया।
कृषि विज्ञान केन्द्र से प्रशिक्षण देने के साथ इन्हें शेड निर्माण और बीज इत्यादि की भी सहायता दी गयी।
ग्रामीण महिलओं (rural women) को पहले सब्जी और फलों की खेती का प्रशिक्षण दिया गया। जब महिलाओं को खेती के फायदे समझ आ गए तो उन्होने संगठित होकर समूहिक तौर पर खेती करने का फैसला किया।
कृषि विज्ञान केंद्र के अधिकरियों ने महिलाओं को मशरूम की खेती के लिए प्रोत्साहित किया और इसके फायदे बताए।
समूह की सचिव श्रीमती पुष्पा बाई साहू कहती हैं कि उनके समूह की महिलायें खेती-किसानी से जुडी हुई हैं। जो घर-परिवार के दैनिक कार्याें को करने के बाद अतिरिक्त आमदनी के लिए स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियां संचालित करना चाहती थी।
इस बीच कृषि विज्ञान केन्द्र मौहाभाठा के वैज्ञानिकों द्वारा गांव के किसानों को किसान संगोष्ठी में खेती-किसानी की जानकारी देने के साथ ही मशरूम उत्पादन के बारे में बताया गया।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती लीला बाई साहू ने बताया कि उन्होंने मशरूम उत्पादन के साथ-साथ उसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान केन्द्रित किया । इससे उत्पादित मशरूम का विक्रय तुरंत होने लगा।
मशरूम की मांग अधिक होने के कारण गांव से कई लोग यहां आकर मशरूम खरीद कर ले जाते हैं। समूह ने इससे 35 हजार रुपए जोड़ लिए हैं।
श्रीमती लीला बाई कहती हैं कि इतने रुपए जुड़ने से समूह की महिलाएं बहुत खुश हैं। अब परिवार के सदस्य भी उनका उत्साहवर्धन करते हैं।
समूह की महिलाओं ने बचत को भी बढ़ावा दिया है, इस कारण समूह के खाते में करीब 50 हजार रुपए हैं। इस खाते से समूह की महिलाएं आड़े वक्त ऋण लेकर सुविधानुसार वापस जमा करती हैं।
समूह की सामूहिक गतिविधियों से प्रभावित श्रीमती पुष्पा बाई कहती हैं कि मशरूम उत्पादन ने न सिर्फ हमारी आय बढ़ाई है बल्कि यह हमारे सशक्त बनने का माध्यम बना है। इससे हमारे परिवार की खुशहाली भी बढ़ रही है।
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