दुर्ग, 29 अक्टूबर (जस)। छत्तीसगढ़ की 80 प्रतिशत जनसंख्या का जीवन यापन खेती और खेती से जुड़े अन्य रोजगार मूलक काम-धंधों से जुड़ा हुआ है। नया राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुशहाली के लिए खेती-किसानी को फायदेमंद बनाने के लिए ठोस रणनीति बनाई गई है। छत्तीसगढ़ सरकार की कृषि विकास योजनाओं और कार्यक्रमों के फलस्वरूप छत्तीसगढ़ में कृषि विकास दर राष्ट्रीय कृषि विकास दर की तुलना में अधिक है। खेती-किसानी की लागत को कम करने के लिए अनेक लाभकारी योजनाएं शुरू की गई। है।
खेती-किसानी की बेहतरी के लिए सिंचाई सुविधाएं बढ़ाना भी सबसे ज्यादा जरूरी है। प्रदेश सरकार ने इस दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किया है। सरकार ने पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग करने की ठोस कार्य-योजना बनाई है। प्रदेश सरकार के भागीरथ प्रयासों के फलस्वरूप विगत 13 साल में सिंचाई क्षमता 23 प्रतिशत से बढ़कर 34.63 प्रतिशत हो गई है। इस अवधि में लगभग 10 प्रतिशत अधिक सिंचाई क्षमता विकसित की गई है। इन योजनाओं के खेत खलिहानों तक पहुंचने से किसानों की हालत सुधरी है। राज्य सरकार के समन्वित प्रयासों से खेती-किसानी की दिशा और किसानों की दशा मे सुधार आया है।
छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक चावल उत्पादन के लिए वर्ष 2010, 2012 और 2013 के लिए राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। इन पुरस्कारों से साबित होता है कि छत्तीसगढ़ अब फिर से ’धान का कटोरा’ बन गया है। दलहन की खेती को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों के फलस्वरूप वर्ष 2014 में दलहन उत्पादन के लिए कृषि कृर्मण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 में किसानों के लिए अपने घोषणा पत्र में किए गए सभी वायदे पूरे कर किसानों का दिल जीत लिया है। समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में तीन सौ रूपए प्रति क्विटल बोनस तथा किसानों को ब्याज मुक्त ऋण देने का वायदा घोषणा के सात महीने में ही पूरा हो गया।
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