जंगलों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं के लिए यह खबर हौंसला बढ़ाने वाली है कि जड़ी-बूटियों का संग्रहण कर कमाई की जा सकती है।
प्राचीन तीर्थ चित्रकूट की वनवासी महिलाओं के लिये प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का संग्रहण उन्हें आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनाने के साथ आत्म-विश्वास से भरपूर भी बना रहा है।
इन महिलाओं के पति पेशे से मजदूर हैं, फिर भी अब उन्हें यह डर नहीं सताता कि किसी दिन दिहाड़ी न मिली, तो घर कैसे चलेगा।
इन वनवासी महिलाओं में से 55 वर्षीय संतोषिया बाई ने बताया कि उनके वृद्ध पति अब मजदूरी पर नहीं जा सकते। लिहाजा जड़ी-बूटियों की कमाई से ही घर चल रहा है।
चुन्नीबाई बिलकुल अकेली हैं। उनका भी भरण-पोषण जड़ी-बूटी संग्रहण से ही हो रहा है।
सुशीला बाई के पति दिहाड़ी मजदूर हैं। कई बार काम न मिलने पर जड़ी-बूटी की कमाई से ही घर चलता है।
विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसे चित्रकूट के जंगलों में दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और कीमती वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
यहाँ का कामदगिरि पर्वत प्रदेश के समृद्ध वनों में शुमार है। इस वन में 100 से अधिक जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका आसपास रहने वाले वनवासी कई पीढ़ियों से संग्रहण कर रहे हैं।
वन विभाग अब जड़ी-बूटियों के संग्रहण को बढ़ाने और उन्हें बाजार में खुद बेचने में संग्राहकों की सहायता कर रहा है। संग्राहकों में अधिकतर वनवासी महिलाएँ शामिल हैं।
चित्रकूट के जंगलों में अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ पायी जाती हैं। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं :
- सफेद-काली मूसली,
- शतावर,
- सेमर मूसली,
- केव कन्द,
- करिहारी,
- केशरिया कन्द,
- पताल कुमण्डी,
- बिलारी कन्द (वन सिंघाड़ा),
- बिदारी कन्द,
- अमलोशा,
- लिलगुंडी,
- अश्वगंधा,
- नागरमोथा,
- भृंगराज,
- भुई आँवला,
- शंखपुष्पी,
- इन्नीपत्री,
- रतनज्योति,
- बिधारा,
- चिरायता,
- पुनर्नवा,
- गुड़मार पत्री,
- नारी दमदरी
जड़ी-बूटी के संग्रहण में चार वन ग्राम समितियाँ वनवासियों की मदद करती हैं।
भीषण गर्मी को छोड़कर वर्षभर इन जड़ी-बूटियों के संग्रहण से महिलाओं को रोजगार मिलता है।
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