सिनेमा संस्कृति है और इसके साथ ही सिनेमा वाणिज्य भी है। प्रत्येक वर्ष लगभग 1500 फिल्में बनाए जाने की बदौलत भारतीय फिल्म उद्योग की भी गिनती दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योगों में की जाती है। — राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
‘हमारी फिल्में उस विविधता का प्रतिनिधित्व करती हैं और उसमें योगदान भी देती हैं, जो भारत की सबसे बड़ी ताकत है। अपनी कहानियों में हमारी फिल्में हमारी सभ्यता और हमारे साझा समुदाय के आदर्शों के प्रति सच्चा बने रहने के लिए हमें प्रेरित करती हैं। वे हमें शिक्षित करती हैं और हमारा मनोरंजन भी करती हैं। वे हमारे सामने सामाजिक चुनौतियों का एक प्रतिबिंब पेश करती हैं, जिनका हमें अभी भी सामना करना है। और वे ऐसा उस भाषा में करती हैं, जो सार्वभौमिक है।’
‘भारत में फिल्में भोजपुरी से लेकर तमिल, मराठी से लेकर मलयालम तथा अन्य कई विविध भाषाओं में बनाई जाती हैं। फिर भी, सिनेमा अपने आप में एक भाषा है। हिंदी सिनेमा ने संभवत: किसी भी अन्य संस्थान की अपेक्षा देश भर में एक भाषा के रूप में हिंदी को लोकप्रिय बनाने में सबसे अधिक योगदान दिया है। मानवता की सराहना करने एवं सत्यजीत रॉय या ऋतविक घटक की सूक्ष्म भावनाओं को समझने के लिए आपका बंगाली होना जरूरी नहीं है। ‘बाहुबली’ के महाकाव्य से सम्मोहित होने के लिए हमें तेलुगु जानने की आवश्यकता नहीं है। और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ए.आर.रहमान-जिन्होंने एक बार फिर राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है-ने उनके दिलों में भी अपनी आरंभिक छाप छोड़ी थी, जो उनके गाने के तमिल शब्दों को नहीं समझते। फिर भी, वे उनके संगीत से मंत्रमुग्ध हो गए थे।’
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा 03 मई, 2018 को नई दिल्ली में 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर दिये गए भाषण का लेख रूप।
‘सिनेमा संस्कृति है और इसके साथ ही सिनेमा वाणिज्य भी है। प्रत्येक वर्ष लगभग 1500 फिल्में बनाए जाने की बदौलत भारतीय फिल्म उद्योग की भी गिनती दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योगों में की जाती है। यह भारतीय सॉफ्ट पावर की एक अभिव्यक्ति है और इसने अनेक महाद्वीपों में अपनी विशिष्ट छवि बनाई है। हमारी फिल्में जापान, मिस्र, चीन, अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ कई अन्य सुदूरवर्ती देशों में भी देखी एवं सराही जाती हैं। फिल्में हमारे सबसे प्रमुख सांस्कृतिक निर्यातों में से एक हैं और इसके साथ ही फिल्में वैश्विक भारतीय समुदाय को हमारे देश में अंतर्निहित जीवन की लय के साथ जोड़ने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं।’
‘हम सिनेमा और व्यापक मनोरंजन अर्थव्यवस्था के रोमांचक और परिवर्तनकारी समय में जी रहे हैं। प्रौद्योगिकी ने फिल्म निर्माण की प्रक्रिया तथा इनको देखेजाने के तरीकों को बदल दिया है। कम लागत वाले डेटा, स्मार्ट फोन और टेबलेट के आगमन से लोगों द्वारा फिल्मों को देखे जाने के पैटर्न में स्पष्ट बदलाव हुआ है। भारतीय फिल्म उद्योग इन बदलावों के अनुसार बदल रहा है।’
भारतीय फिल्म उद्योग ऐसी रणनीतियां अपनाएगा जो चुनौतियों को अवसरों में बदल देंगी। फिल्म निर्माता भी यह अनुभव करेंगे कि विशिष्ट सामग्री निर्माण (नीश प्रोडक्शन) की लागत कम होती जा रही है। उम्मीद है कि यह उन्हें स्तर को ऊंचा करने में प्रोत्साहन प्रदान करेगा।’
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