शिमला, 01 अगस्त (जनसमा)। एक कृषि सर्वेक्षण के अनुसार हिमाचल में कीटनाशक रसायनों की खपत मात्र 158 ग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि देश में औसतन खपत 381 ग्राम प्रति हेक्टेयर है। पंजाब की खपत 1,164 ग्राम प्रति हेक्टटेयर है, और यह स्वास्थ्य की दृष्टि से चिंता की भी बात है।
यह जानकारी देते हुए सरकार ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में कृषि गतिविधियों में विविधता लाने के लिए 321 करोड़ रुपये की एक महत्वकांक्षी परियोजना कार्यान्वित की जा रही है, जिसके अंतर्गत कृषकों को नकदी फसलें उगाने तथा जैविक खेती को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
प्रदेश के कम से कम पांच जिलों में चल रही इस परियोजना के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं और बड़ी संख्या में कृषक जैविक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बे-मौसमी सब्जियां उगाने में अग्रणी यह प्रदेश अब जैविक खेती अपनाने में भी सरताज बन गया है।
जैविक खेती: फोटो सौजन्य पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय
प्रदेश में अब तक लगभग 40 हजार कृषकों को पंजीकृत करके लगभग 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के तहत लाया जा चुका है। इस वर्ष 2 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को इस खेती के अंतर्गत लाने तथा 200 जैव-गांव विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है।
राज्य सरकार ने जैविक खेती में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कृषकों को पुरस्कार प्रदान करने की भी घोषणा की है, जिसमें सर्वोत्तम जैविक कृषक को 3 लाख रुपये का प्रथम, 2 लाख रुपये का द्वितीय पुरस्कार तथा एक लाख रुपये का तृतीय पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
यह योजना प्रदेश के कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर तथा मण्डी में, जापान इंटरनेशनल को-आप्रेशन एजेंसी (जायका) के सहयोग से कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना में अब तक 212 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं तथा इस वर्ष 80 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रावधान किया गया है।
इस परियोजना की गतिविधियों का संचालन कृषि विकास सोसायटी द्वारा किया जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई सुविधाएं विकसित करना, कृषकों को जैविक खेती अपनाने तथा नकदी फसलें उगाने के प्रति प्रेरित करना है।
कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर में अलग से जैविक खेती विभाग स्थापित किया गया है, ताकि इस अभियान को गति व दिशा प्रदान की जा सके।
उल्लेखनीय है कि शिमला, सोलन तथा सिरमौर जिलों के कृषक पहले ही जैविक खेती में पंजीकृत कृषक बनने के लिए पहल कर चुके हैं तथा इन जिलों में जैविक खेती लोकप्रिय हो चुकी है। प्रदेश में मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा बहुत कम रसायनों का प्रयोग होने के कारण यहां जैविक खेती करने की अपार संभावनाएं हैं।
जैविक खेती को बढ़ावा देने में ‘वर्मीकल्चर’ की अह्म भूमिका होती है, यही कारण है कि प्रदेश सरकार केंचुआ खाद तैयार करने को विशेष प्रोत्साहन दे रही है। कृषकों को वर्मीकम्पोस्ट इकाइयां स्थापित करने के लिए 50 प्रतिशत उपदान उपलब्ध करवा रही है तथा अब तक राज्य में ऐसी 1.50 लाख इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं।
इस वर्ष 20 हजार अतिरिक्त वर्मीकम्पोस्ट इकाइयां स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि कृषकों को पर्याप्त मात्रा में यह सुविधा उपलब्ध हो सके।
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