…..काश कि चुनाव और धार्मिक भावनाओं में उलझी जनता और सरकार ने वैज्ञानिकों की चेतावनियों को समझा होता तो सरकार और लोगों के सामने कोविड-19 की यह भयावह मुसीबत नहीं खड़ी होती जो इस काल की सबसे बड़ी त्रासदी बन गई है।
ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, अस्पतालों में सघन देखभाल बेड के लिए दर-दर भटकते कोविड-19 से संक्रमित मरीज…और अपने प्रियजनों की एक-एक सांस के लिए मिन्नते करते परिजनों को देख कर दहशत और मायूसी हो रही है। सरकारें भी काम कर रही हैं, दुनिया के दूसरे देशों से सहायता भी मिल रही है लेकिन हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि संभालते-संभालते ही संभलेंगे।
प्रसिद्ध साइंस पत्रिका ‘नेचर’ ने मंगलवार को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया है कि दुनिया में दो देश भारत और ब्राजील ऐसे हैं जिन्होंने अपने वैज्ञानिकों की सलाह नहीं मानी और कोविड-19 ने दोनों देशों को बदहाल कर दिया। दोनो ही दोनो देशों के बीच हजारों किमी की दूरी के बावजूद राजनेताओं का आचरण लगभग एक जैसा रहा। गनीमत यह रही कि भारत का बुरा हाल दूसरी लहर के दौरान हुआ जबकि पहली लहर के दौरान सरकार ने कड़े और माकूम कदम उठाकर देश को बचा लिया था लेकिन सब किया धरा चुनावी सभाओं और धार्मिक आयोजनों में शामिल करोड़ों की भीड़ ने तबाह कर दिया।
नेचर पत्रिका की रिपोर्ट कहती है कि दोनों में संकट राजनीतिक विफलताओं का परिणाम हैं। उनके नेता या तो विफल रहे हैं या शोधकर्ताओं की सलाह पर काम करने में उनकी गति धीमी रही है। इस स्थिति ने जीवन को बुरी तरह नुकसान पहुँचाने में योगदान दिया है।
ब्राजील की सबसे बड़ी असफलता यह है कि उसके राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो ने लगातार covid-19 को ‘छोटे फ्लू’ के रूप में बताया और नीति निर्धारण में वैज्ञानिक सलाह का पालन करने से इनकार कर दिया है। दूसरी ओर भारत को अपने वैज्ञानिकों की चेतावनियों और सलाह पर ध्यान देना चाहिए था।
नेचर पत्रिका के अनुसार भारत के नेताओं ने आवश्यकतानुसार निर्णायक रूप से कार्य नहीं किया है। उदाहरण के लिए उन्होंने भीड़भाड़ वाले आयोजनों के लिए अनुमति दी और बड़ी सभाओं के कुछ मामलों में प्रोत्साहित किया । ऐसी स्थिति नई नहीं है। जैसा कि हमने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के दौरान देखा था। covid-19 से निपटने के लिए शारीरिक दूरी को बनाए रखने की आवश्यकता के सबूतों की अनदेखी के विनाशकारी परिणाम हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने बीमारी से 5.70 लाख से अधिक मौतें दर्ज की हैं।
नेचर पत्रिका की रिपोर्ट ‘वल्र्ड व्यू’ में कहा गया है कि भारत में दैनिक covid-19 मामले सितंबर में लगभग 96,000 पर पहुंच गए थे लेकिन धीरे-धीरे घटने लगे और मार्च की शुरुआत में लगभग 12.000 तक पहुंच गए। इस दौरानए कारोबार फिर से खुल गया। फिरबड़ी संख्या में सभाएँ हुईं, जिनमें विवादास्पद नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी शामिल हैं,जो हजारों किसानों को नई दिल्ली की सीमाओं में ले आए। मार्च और अप्रैल के दौरान चुनावी रैलियां और धार्मिक आयोजन भी जारी रहे।
डेटा कठिनाइयों
नेचर पत्रिकाका कहना है कि भारत में अन्य समस्याएं हैं। एक यह है कि वैज्ञानिकों के लिए covid-19 शोध के लिए डेटा तक पहुंचना आसान नहीं है। यह स्थिति सरकार को सटीक भविष्यवाणियां और साक्ष्य.आधारित सलाह प्रदान करने से रोकता है। यहां तक कि इस तरह के डेटा की अनुपस्थिति में शोधकर्ताओं ने पिछले सितंबर में सरकार को covid-19 के बारे में सतर्क रहने की चेतावनी दी। अप्रैल शुरुआत में चेतावनी दी कि दूसरी लहर महीने के अंत तक एक दिन में 100,000 covid-19 मामलों को देख सकती है।
29 अप्रैल को 700 से अधिक वैज्ञानिकों ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा, जिसमें अस्पतालों मेंcovid-19 परीक्षा परिणाम और रोगियों के नैदानिक परिणामों जैसे डेटा तक बेहतर पहुंच की मांग की गई।
अगले दिन सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार कृष्णास्वामी विजयराघवन ने इन चिंताओं को स्वीकार किया और उन तरीकों को स्पष्ट किया जिनसे सरकार के बाहर के शोधकर्ता इन आंकड़ों तक पहुँच बना सकते हैं। इस कदम का पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने स्वागत किया है, लेकिन डेटा एक्सेस के कुछ पहलू अस्पष्ट हैं।
Follow @JansamacharNews