संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने कहा है कि कोविड-19 (COVID-19) महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत के लिए एक आसानी है कि उसके पास परीक्षण किटों के उत्पादन की क्षमता मौजूद है, मगर लगभग एक अरब 30 करोड़ की आबादी के लिए पर्याप्त संख्या में किटों का उत्पादन कर पाना एक बड़ी चुनौती है.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की भारत में प्रतिनिधि अर्जेंटीना मैटावेल ने यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में कहा कि इसका मतलब ये है कि इस महामारी से लड़ाई के लिए भारत में जब आप और हम बात कर रहे हैं, तो भारत परीक्षण किटों (Test kit) के उत्पादन में व्यस्त है.
लेकिन उन्होंने ये भी कहा है कि लगभग एक अरब 30 करोड़ की आबादी के लिए इतनी बड़ी मात्रा में किटों का उत्पादन करना संभव नहीं होगा और कुछ अन्य विकल्पों पर विचार करना होगा.
उन्होंने कहा कि इस समय. दो बड़ी चुनौतियां हैं – एक तो बड़ी आबादी, जिसका मतलब है कि उन सभी लोगों का परीक्षण कैसे करें जिनका परीक्षण करने की आवश्यकता है? इसलिए देश के स्वास्थ्य ढाँचे पर बहुत दबाव है.
स्वास्थ्य प्रणाली को काम करने देना होगा, जिससे जिन लोगों का परीक्षण करने की ज़रूरत है उनका परीक्षण हो सके – ऐसे लोग जो संक्रमित देशों से लौटे हैं, ऐसे लोग जिनमें लक्षण नज़र आ रहे हैं या ऐसे लोग जो पहले से ही सांस की परेशानी के कारण अस्पताल में भर्ती हैं.
Image UN News : Argentina Matavel, representative of the United Nations Population Fund in India
इसलिए हमें स्वास्थ्य प्रणाली को चुनिन्दा तौर पर टेस्ट करने देना होगा क्योंकि विकसित देशों में भी इतनी जल्दी इतनी ज़्यादा परीक्षण क्षमता मौजूद नहीं है.
मुझे लगता है कि सरकार के स्तर पर, सामुदायिक स्तर पर, सभी को सोचना होगा कि हालात बदतर होने से कैसा रोका जाए. साथ ही, उन परिवारों और माता-पिता की समस्याओं का हल कैसे निकाला जाए जो अलग-अलग राज्यों में अकेले रह रहे हैं क्योंकि उनके बच्चे दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं जहां तालाबंदी है. साथ ही मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती भी दरपेश है.
जनसंख्या कोष की भारत में प्रतिनिधि अर्जेंटीना मैटावेल के साथ बातचीत के अंश…
सवाल: कोविड-19 का मुक़ाबला करने के प्रयासों में भारत में 21 दिन की पूर्ण तालाबंदी लागू की गई है. आपकी नज़र में विश्व में सबसे ज़्यादा आबादी वाले दूसरे सबसे बड़े देश के लिए इसके क्या मायने हो सकते हैं?
जवाब: जैसा कि आपने कहा – भारत की आबादी बहुत बड़ी है. ऐसे में ये बहुत प्रशंसनीय है कि कुछ योरोपिय देशों से बिल्कुल उलट, भारत में लोग बिना किसी सैन्य दख़ल के आदेशों का पालन कर रहे हैं. इससे स्पष्ट है कि भारत के लोगों में इस स्थिति को लेकर गंभीरता है और उन्हें भरोसा है कि उनकी सरकार जब कह रही है कि ये ज़रूरी है तो वो सच है. इसका ये भी मतलब है कि इसके सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य पहलुओं पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ेंगे. इसलिए इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
सवाल: भारत में ज़्यादातर आबादी गाँवों में बसती है. आपके ख़याल में, मौजूदा स्थिति का उन लोगों के जीवन व आजीविका पर क्या असर पडेगा?
जवाब: ये बहुत गंभीर स्थिति. ये अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है कि कृषि पर निर्भर लोग, उत्तरी प्रान्तों में ग्रामीण क्षेत्रों शहरों में जाने वाले लोग, युवा प्रवासी मज़दूर – महिलाएं, लड़कियां, नौजवान – ये सभी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहे हैं. परिणामस्वरूप उनके परिवार भी प्रभावित हो रहे हैं जो इन लोगों द्वारा अर्जित आय पर निर्भर हैं.
मुझे पता चला कि पिछले सप्ताह बड़े पैमाने पर युवा अपने कामकाज के स्थानों से अपने घरों को वापस आने लगे – उदाहरण के लिए बिहार से, ओडिशा से – क्योंकि हमारे पास उन राज्यों में कार्यालय हैं, इसलिए हमारे पास वहाँ की ताज़ा जानकारी रहती.
ये एक बड़ी चुनौती है. इनमें बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है, जो दिहाड़ी मज़दूर हैं और ये अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं. सबसे ज़्यादा चिंता उन्हीं लोगों की है और मेरा मानना है कि सरकार भी समान रूप से चिंतित है, यही कारण है कि मैंने ख़बरों में पढ़ा कि इन लोगों की मदद करने के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई है.
लेकिन वास्तव में ये भी समझना होगा कि उन्हें न केवल लॉकडाउन यानी तालाबंदी की अवधि के दौरान मदद की आवश्यकता होगी, बल्कि अगर तालाबंदी की अवधि बढ़ाई गई तो मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ेंगी.
सवाल: यूएन जनसंख्या कोष भारत में इस स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए सरकार के साथ किस तरह काम कर रहा है और समाज के विभिन्न वर्गों की मदद के लिए क्या किया जा रहा है?
जवाब: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष आम तौर पर अपने काम में दो शासनादेशों (Mandates) को नज़र में रखता है, प्रथम – प्रजनन आयु की महिलाएं – जिनमें 15 वर्ष की लड़कियों से लेकर 49 उम्र की महिलाओं तक को शामिल किया गया है – जो प्रजनन की उम्र मानी जाती है. महिलाएं, लड़कियां, युवा और किशोर सभी इनमें शामिल हैं.
लेकिन इस विशेष संकट के दौरान, हम स्वास्थ्य कर्मचारियों के बारे में भी सोच रहे हैं, न केवल अस्पतालों में बल्कि सामुदायिक स्तर पर काम करने वाले लोगों के लिए भी.
इसलिए जनंख्या कोष भारत सरकार के साथ मिलकर दो प्रमुख काम कर रहा है – सूचना सामग्री का विकास और प्रसार. केंद्रीय और राज्य स्तर पर जहां हमारे कार्यालय हैं, वहाँ हम संचार सामग्री विकसित कर रहे हैं ताकि लोग, विशेष रूप से गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली महिलाएं अच्छी तरह से जान सकें कि ख़ुद को कैसे बचाएँ, बच्चों की सुरक्षा कैसे करें, जिससे वो भ्रान्तियों और अफ़वाहों को सही मानकर बच्चों को दूध पिलाना रोक ना दें.
हम उनसे अपने बच्चों को स्तनपान कराना जारी रखने के लिए कह रहे हैं क्योंकि अब तक विज्ञान ने यह साबित नहीं किया है कि ये वायरस माँ से बच्चे में संक्रमित हो सकता है. इसलिए महिलाओं को शिशुओं को स्तनपान कराते रहने की आवश्यकता है.
हमने विशेष रूप से युवाओं के लिए सामग्री बनाई है क्योंकि वे अक्सर सोचते हैं कि उन्हें कुछ नहीं हो सकता और ऐसी नकारात्मक चीजें उन्हें छूएंगी तक नहीं. हमने उन्हें जागरूक करने के उद्देश्य से छोटे वीडियो, व्हाट्सएप संदेश और अन्य प्रसार सामग्री विकसित की है.
अग्रिम मोर्चों पर काम करने वाले श्रमिकों के लिए, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जब तक वे ख़ुद की रक्षा नहीं करते हैं, तब तक वो किसी की मदद नहीं कर पाएंगे. इसलिए हमने उन लोगों को भी ध्यान में रख रहे हैं जो महिलाओं के साथ या सामुदायिक स्तर पर काम करते हैं ताकि वो भेदभाव और ग़लतफहमी में न पड़ें.
उन्हें यह जानने की ज़रूरत है कि संक्रमण किस तरीक़े से फैलता है और ख़ुद को कैसे सुरक्षित रखा जाए ताकि वो उन लोगों की मदद कर सकें जिन्हें उनकी ज़रूरत है.
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