बीजापुर, 9 मार्च | ‘खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।’ कुछ ऐसी ही बीजापुर की दानम निशा की जिंदगी है। दानम निशा ने आर्थिक तंगी, परिवार के असहयोग के बावजूद अपनी लगन और प्रतिभा के जरिए इंटरनेशनल कराटे में कांस्य पदक जीतने में कामयाबी पाई है।
बगैर हेडगार्ड के विशाखापटनम में पिछले दिनों आयोजित इंटरनेशनल कराटे में सिर और मुंह में चोट खाते हुए निशा ने तीसरा स्थान प्राप्त कर क्षेत्र का गौरव बढ़ाया है। इस प्रतियोगिता में जाने के लिए निशा को अपने परिवार के साथ-साथ दोस्तों से भी पैसे मांगने की जरूरत पड़ी। मजबूत इरादों के साथ अपनी मंजिल की ओर बढ़ने वाली निशा को आखिरकार तमाम कठिनाइयों के बावजूद कामयाबी हासिल हुई।
निशा की तमन्ना है कि वर्ष 2020 में जापान में होने वाले ओलंपिक में कराटे को शामिल किए जाने पर वह देश का प्रतिनिधित्व करें।
छत्तीसगढ़ राज्य और जिले के अंतिम छोर तेलंगाना और महाराष्ट्र से लगे भोपालपटनम के गुल्लापेटा में जन्मीं दानम निशा का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं। अपने पांच बहन और भाइयों के बीच निशा का परिवार अपने पिता कृष्णा के सिंचाई विभाग में दफ्तरी के नौकरी पर पलता है।
5वीं से 10वीं तक कांकेर व 11वीं से स्नातक द्वितीय वर्ष की शिक्षा के दौरान निशा ने कराटे में अपने शौक के चलते कई महारथ हासिल कर ली है। निशा को कराटे का पहला प्रशिक्षण कांकेर में रहने के दौरान प्राप्त हुआए जहां उसे आत्म सुरक्षा के गुर सिखाए गए।
बीजापुर आने के बाद जूडो क्लब के रूप में निशा को एक अच्छा संस्थान मिला, जहां उन्होंने कराटे में महारथ हासिल की। हालांकि यहां भी कराटे के प्रशिक्षण के लिए निशा को सालभर में लगभग 4000 रुपये की फीस देनी पड़ती है, जो वह अपना जेब खर्च बचाकर अदा कर पाती हैं।
कराटे में महारथ हासिल कर चुकीं निशा अब किसी भी चुनौती व अनहोनी से निपटने में सझम हैं। वह किसी भी दुश्मन को धूल चटा सकती हैं। निशा ने अपने कराटे के हुनर में पोराकेज, हितु एसोटोकेन, लोवर ब्लाक्स, अपर ब्लॉक्स, ईनर मिडिल ब्लॉक्स, आउट टू ईनर ब्लॉक्स व ओपनहैंड ब्लॉक्स, सिगंलपंच, डबलपंच, फेसपंच, चेस्टपंच, फीस्टपंच, एल्बोपंच, मोआसीगिरी किक, पूरामोआसी किक, ग्रोविंग किक व साइड किक का समावेश कर अपनी क्षमता का विकास किया है।
स्टेट में चयन होने के बाद इंटरनेशनल कम्पीटीशन में जाने के लिए निशा को काफी मशक्कत करना पड़ी। कराटे में प्रशिक्षण के दौरान पसली में चोट लगने के कारण माता-पिता उसे इस खेल से दूर रखना चाहते थे। लेकिन निशा ने अपनी जिद से स्वयं पैसे की व्यवस्था कर भिलाई में स्टेट कराटे में भाग लिया।
निशा ने बताया, “इंटरनेशनल के लिए चयन होने के बाद मेरे माता-पिता एनओसी पर हस्ताक्षर करने को राजी नहीं थे। माता-पिता की असहमति के बावजूद जाने की जिद में मैंने दो दिन तक खाना नहीं खाया।”
बेटी के उत्साह और लगन को देखते हुए आखिरकार माता-पिता ने निशा को इंटरनेशनल प्रतियोगिता में जाने की इजाजत दी। इसके बाद पैसे की समस्या होने पर निशा आधे पैसे परिवार से व आधे पैसे दोस्तों से लेकर अपनी मंजिल की ओर चल पड़ीं। –आईएएनएस
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