भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करने के मामले में चीन सबसे तेजी से उभरता हुआ देश बन गया है। 2016 में यह 2014 के 28वें और 2011 के 35वें स्थान से ऊंची छलांग लगाते हुए अब 17वें स्थान पर आ गया है। राजनीतिक मतभेद के बावजूद भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ा है।
वर्ष 2011 में भारत में कुल चीनी निवेश 10.2 करोड़ डॉलर था। पिछले साल चीन ने कथित तौर पर भारत में एक अरब डॉलर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया था, लेकिन इस मामले में भारत और चीन के आंकड़ों में भिन्नता है।
औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के अनुमान के अनुसार, अप्रैल 2000 और दिसंबर 2016 के बीच चीन से कुल 1.6 अरब डॉलर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया था। लेकिन भारतीय बाजार विश्लेषकों और मीडिया रपटों के अनुसार यह आंकड़ा दो अरब डॉलर से भी अधिक है।
File Photo : The Prime Minister, Shri Narendra Modi meeting the President of the People’s Republic of China, Mr. Xi Jinping, at Fortaliza, in Brazil on July 14, 2014.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सवंर्धन संबंधित चीनी परिषद को कानूनी सेवाएं प्रदान करने वाले गुड़गांव के ‘लिंक लीगल इंडिया लॉ सर्विस’ के साझेदार संतोष पई ने कहा, “भारत में वास्तविक चीनी निवेश आधिकारिक भारतीय आंकड़े से तीन गुणा अधिक है।”
पई ने कहा कि भारतीय आंकड़े चीन के प्रत्यक्ष निवेश पर आधारित होते हैं, लेकिन चीन का अधिकांश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हांगकांग जैसे कर पनाहगाह देशों के रास्ते होता है।
पिछले साल चीन के उप वित्त मंत्री शी याओबिन ने कहा था कि चीन ने भारत में कुल 4.07 अरब डॉलर का और भारत ने चीन में 65 करोड़ डॉलर का निवेश किया है।
पई ने कहा, “चीन शीघ्र ही भारत के सर्वोच्च 10 निवेशकों में से एक होगा।”
हालांकि छह साल पहले स्थिति अलग थी, जब देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से भारत में निवेश करने वाले कम ही थे। आज भारत की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान कंपनी पेटीएम की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा और उसके सहयोगियों के पास है। खबर है कि अलीबाबा पेटीएम में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 62 प्रतिशत करने जा रहा है। इतना ही नहीं, चीन की चौथी सबसे बड़ी मोबाइल फोन कंपनी जियोमी भारत स्थित एक नए कारखाने में हर सेकंड में एक फोन असेंबल कर रही है।
डीआईपीपी के मुताबिक, फिर भी भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और चीन के वैश्विक विदेशी निवेश दोनों स्तरों पर चीन का भारत में निवेश तुलनात्मक रूप से कम है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत में चीन का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश केवल 0.5 प्रतिशत है।
जापान की तुलना में (7.7 प्रतिशत) यह बेहद कम है।
हालांकि पिछले साल भारत में चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में काफी वृद्धि नजर आई, लेकिन पिछले साल विश्व के 164 देशों में चीन के 10 खरब युआन या 170 अरब डॉलर के विदेशी निवेश को देखते हुए यह आंकड़ा नगण्य है। अकेले अमेरिका में चीन ने 45.6 अरब डॉलर निवेश किए थे।
हालांकि पिछले दो सालों में भारत और चीन के बीच नए राजनीतिक मतभेद उभरने के बावजूद भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ा है।
दिल्ली में अवलोन कंसल्टिंग के सीईओ श्रीधर वेंकटेश्वरन ने कहा, “दोनों देशों के बीच के राजनीतिक रिश्तों के कारण भारत को लेकर चीनी कंपनियों के रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है। साथ ही भारतीय राजनीतिक प्रतिष्ठान भी भारत में चीनी निवेश पर कोई गतिरोध नहीं लगाना चाहते..लेकिन चीन-भारत के रिश्ते में कोई भी नकारात्मक खबर सामने आते ही भारतीय कंपनियां जरूर इस मामले में कदम पीछे खींच लेती हैं।”
श्रम लागत में दोगुनी वृद्धि की मार, बूढ़े होते कार्यबल और आर्थिक वृद्धि में गिरावट से परेशान चीनी कंपनियां 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से वैकल्पिक निर्माण स्थल और नए बाजार तलाश रही हैं।
चीनी दूतावास में काउंसलर ली बोजुन ने फरवरी 2017 में पीपल्स डेली से कहा था कि भारत निवेश के लिए एक बेहतरीन स्थान है।
चीनी कंपनियां अपनी अर्थव्यवस्था से ज्यादा तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में भरोसा जता रही हैं। साथ ही दोनों एशियाई देशों के बीच प्रतिस्पर्धा भी घट रही है।
2016-17 में विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक प्रतिस्पर्धा रपट में चीन 28वें स्थान पर और भारत 2015-16 के 55वें स्थान से 16 स्थान ऊपर आकर 39वें स्थान पर रहा था।
पई ने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था के अब सबसे तेज वृद्धि को चीन में सकरात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।”
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और एवलोन कंसल्टिंग ने 2015-16 में अपनी संयुक्त रपट में अनुमान जाहिर किया था कि चीन में श्रम लागत भारत के मुकाबले 1.5 से तीन गुणा अधिक है। रपट के अनुसार कई हल्के इंजीनियरिंग संबंधी उद्योगों में चीन भारत के ‘मुकाबले पिछड़’ रहा है, जिससे चीनी निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
वेंकटेश्वरन ने कहा, “भारत की चीन से तुलनात्मक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ रही है, खासतौर पर चीनी कंपनियों के लिए वाहन, रासायनिक और इलैक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारत में निर्माण करने के लिए बेहतर परिस्थति है।”
ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर मार्च में प्रकाशित एक लेख को सबसे अधिक शेयर किया गया था, जिसमें चेतावनी दी गई थी, “चीन को भारत की बढ़ती विनिर्माण प्रतिस्पर्धा पर ध्यान देना चाहिए।”
हालांकि चीन में सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि और दवा उद्योगों में चीन के बाजार में घुसने के भारत के प्रयासों को एक दशक से भी अधिक समय से अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा पिछले साल 46.56 अरब डॉलर पहुंच गया था। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार भी 2015 के 100 अरब डॉलर के लक्ष्य से नीचे रहा था।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2014 में भारत में पांच साल में 20 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया था। अगर यह वादा पूरा हो जाता है तो इससे भारत में चीन की आर्थिक उपस्थिति बढ़ जाएगी। लेकिन फिर भी यह शी के सबसे हालिया वादे का छोटा-सा हिस्सा ही होगा, जिसके अनुसार चीन पांच सालों में विदेश में 750 अरब डॉलर निवेश करेगा।
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