श्रीनगर, 21 अगस्त | आम कश्मीरी का जीना दूभर होगया है। आम दुकानदार दुविधा में है कि वह दुकान खोले या नहीं। अगर हां, तो कब? इस लड़ाई में आम कश्मीरी सशंकित हैं। विडम्बना है कि उन्हें अपने दैनिक सामान खरीदने की छूट केवल शाम में मिलती है। लेकिन अपरिहार्य खतरा का डर बना रहता है।
घाटी में इन दिनों अलगाववादी नेताओं का फरमान चलता है। इन लोगों ने आम लोगों से कहा है कि सुबह से शाम तक के बंद के बाद वे शाम छह बजे से सुबह छह बजे तक अपना दैनिक काम निपटाएं।
गत 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के हाथों हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से घाटी में दुकान, स्कूल और कार्यालय बंद हैं। बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों और सुरक्षा बलों एवं प्रदर्शकारियों के बीच झड़पों में कम से कम 67 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों अन्य लोग घायल हुए हैं।
सप्ताहों से बनी अशांति के दौरान जब बंद में ढील दी गई थी तो कुछ जगहों पर शाम में कुछ देर के लिए दुकानें खुलीं।
यहां के मुख्य व्यापारिक केंद्र लाल चौक के निकट लैम्बर्ट लेन के एक कपड़े की दुकान चलाने वाले व्यापारी ने कहा, “उदाहरण के तौर पर अलगाववादियों ने पहले दोपहर बाद कुछ देर के लिए बंद में ढील दी थी। लेकिन हमें दुकानें खोलने की अनुमति नहीं दी गई और प्रतिबंध लगा दिए गए।”
हाल में एक संवाददाता सम्मेलन में राज्य के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक एस.के. मिश्रा ने आश्वासन दिया था कि अगर दुकानदार दिन में दुकानें खोलते हैं तो सुरक्षा बल उन्हें सुरक्षा प्रदान करेंगे।
यह पुलिस प्रमुख का एक संदेश था। दुकानदारों को दिन में अपनी नियमित गतिविधियां शुरू करनी चाहिए और अलगाववादियों के निर्देशों को नहीं मानना चाहिए।
गत छह से अधिक सप्ताहों से जम्मू-श्रीनगर -लेह सामरिक राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी रात में ही यातायात चालू रहती है, क्योंकि दिन में प्रदर्शनकारी सभी सड़कों पर वाहनों को क्षतिग्रस्त कर देते हैं और यात्रियों को घायल कर देते हैं।–आईएएनएस
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