नई दिल्ली, 25 फरवरी | राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के इलाकों के ऐसे बच्चे, जो मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम माने जाते हैं, उन्हें रंगमंच की ओर मोड़ने का प्रयास अब रंग लाने लगा है। इन खास बच्चों को ‘ड्रामा थेरेपी’ देकर इतना सक्षम बनाया गया है कि वे 1 और 2 मार्च को चार नाटकों का मंचन करने जा रहे हैं। इन खास बच्चों को ‘ड्रामा थेरेपी’ दे रहे हैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) की संस्कार रंग टोली से जुड़े कलाकार व अध्यापक कन्हैया लाल राठौर। उन्होंने बताया कि एक दिन उनके मन में यह बात आई कि क्या रंगमंच के कलाकार सिर्फ वे ही लोग बन सकते हैं, मानसिक, शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं? क्यों न कोशिश करके देखें कि आमतौर पर अक्षम या विकलांग कहे जाने लोग रंगमंच पर अपना हुनर दिखा पाते हैं या नहीं।
रंगकर्मी राठौर ने दिल्ली और आसपास के इलाकों में विकलांग बच्चों के लिए कार्य कार रही संस्थाओं से संपर्क किया और 15-16 साल के बच्चों को साथ लेकर ‘धर्यव ग्रुप’ बनाया। उन्होंने इसी साल 16 जनवरी से खास बच्चों को ड्रामा थेरेपी के तहत अभिनय के गुर सिखाना शुरू किया। उनकी ड्रामा थेरेपी क्लास से अब तो लगभग 200 खास बच्चे जुड़ गए हैं। खास बच्चों के लिए ये खास क्लास 28 फरवरी तक चलेगी।
राठौर ने बताया कि धैर्यव ग्रुप अपनी ड्रामा थेरेपी प्रकिया के दौरान चार नाटक तैयार किए हैं, जिनमें अक्षम या विकलांग माने जाने वाले बच्चे भाग लेंगे। इन नाटकों का मंचन 1 व 2 मार्च को मंडी हाउस इलाके में स्थित एटीजी सभागार में होने जा रहे थिएटर फेस्टिवल में होगा। इस नाट्योत्सव को ‘द हार्ट बीट’ नाम दिया गया है।
उन्होंने बताया, “खास बात यह कि तैयार किए गए ये नाटक किसी पूर्वलिखित कहानी पर आधारित नहीं हैं, बल्कि बच्चों ने ड्रामा थेरेपी की प्रकिया के दौरान खुद रचे हैं, संवाद लिखे हैं और अब मंचन के लिए तैयार हैं।”
राठौर ने कहा, “इस ड्रामा थेरेपी का मुख्य लक्ष्य है खास बच्चों को अपनी प्रतिभा दिखाने की पूरी आजादी देना। थेरेपी के दौरान उन्हें ऐसा वातावरण मुहैया कराया जाता है, जिसमें वे खुद को अच्छी तरह जान सकें, अपनी बात रख सकें और अपनी प्रतिभा दिखा सकें।
उन्होंने कहा कि उन्हें महसूस हो रहा है कि अगर ठान लिया जाए तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है, अक्षम माने जाने वाले ये बच्चे अब रंगमच पर अपनी अभिनय प्रतिभा दिखाकर खुद को सक्षम साबित करेंगे। –आईएएनएस
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