कुलभूषण ===== भारत में शिक्षा हासिल करने या रहने आए अफ्रीकी नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार या उनके साथ मारपीट की घटना का भारत को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ सकता है।
हाल ही में नई दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में नाइजीरियाई छात्रों पर हमले की घटना सभी समाचार चैनलों की सुर्खियों में छाई रही और सभी प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुख खबर के रूप में नजर आई।
इन खबरों का उद्देश्य भले ही सनसनी फैलाना रहा हो, लेकिन सच यह है कि इससे भारत-अफ्रीका के द्विपक्षीय संबंधों, अफ्रीका में भारतीय निवेश और अफ्रीका में बसे प्रवासी भारतीयों को भारी और दीर्घ क्षति पहुंच सकती है।
अफ्रीकी नागरिकों के साथ मारपीट करने वाले नस्लीय और हिंसक भारतीय गुंडों के कारण भारत की साख को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान हुआ है।
त्रासदी यह है कि यह कोई एकमात्र घटना नहीं है, जिसमें स्थानीय शरारती तत्वों ने अफ्रीकी नागरिकों को नुकसान पहुंचाया हो। प्रमुख मेट्रो शहरों में ऐसी घटनाएं लगातार से घटती रही हैं, खासतौर पर दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में।
मीडिया में सुर्खियां बनने के बावजूद इन्हें रोकने के लिए कोई हल नहीं निकाला जाता। थोड़े से शोर-शराबे के बाद पुलिस कुछ बैठकें करती है, गश्त बढ़ा देती है और फिर अगली घटना तक गायब हो जाती है।
ऐसी घटनाओं को लेकर अफ्रीकी राजदूत भी कड़ा विरोध जताते रहे हैं और कूटनीतिक शब्दावली में प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती है। लेकिन स्थानीय निवासियों को नस्लीय भेदभाव और कई मोर्चो और स्तरों पर भारत-अफ्रीका के सहयोग के बारे में बताने, समझाने या संवेदनशील बनाने के लिए मीडिया में, सड़क पर या उच्च शैक्षणिक संस्थानों में कोई ठोस अभियान शुरू नहीं किया जाता।
अफ्रीकी लोगों की सफलता की खबरें तो दूर, मीडिया अफ्रीकी मामलों की रिपोर्टिग भी कभी कभार ही करता है। समाचार पत्र अफ्रीकी मामलों को तभी जगह देते हैं, जब कभी कोई भारतीय कंपनी अफ्रीका में कोई बड़ा ठेका हासिल करती है, कोई निवेश परियोजना शुरू करती है या अपने व्यापार का विस्तार करती है।
भारत में रहने वाले अफ्रीकी नागरिकों की मुश्किलें ऐसी खबरों से तब और भी बढ़ जाती हैं, जब अफ्रीकी नागरिकों को हवाईअड्डों पर मादक पदार्थो के साथ गिरफ्तार किया जाता है। इससे भारतीयों के मन में अफ्रीकी नागरिकों की मादक पदार्थो के तस्कर की छवि बनती है या फिर उन्हें लगता है कि अफ्रीकी महिलाएं देह व्यापार करके ही जीविका चलाती हैं। 54 देशों के सभी अफ्रीकी नागरिकों को मीडिया के द्वारा प्रस्तुत इसी घिसी पिटी अवधारणा के आधार पर ही देखा जाता है।
समय की मांग है कि इस छवि को हमेशा के लिए बदला जाए और इस तथ्य को सामने लाया जाए कि हजारों अफ्रीकी छात्र भारत में उच्च शिक्षा के लिए आते हैं और सैकड़ों अफ्रीकी मरीज विशेष चिकित्सा के लिए यहां आते हैं।
अगर अपने घरों से दूर एक जटिल समाज में रहने आए इन छात्रों और उनके परिजनों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाए, तो वे वापस जाकर खुद ही भारत के लिए सबसे बड़े प्रचारक या एम्बेसडर की भूमिका अदा करेंगे।
लेकिन, अफ्रीकियों के साथ नस्लीय और क्रूर व्यवहार करने वालों के मन में यह विचार कभी नहीं आता। वे न तो अफ्रीका में भारतीय निवेश के बारे में सोचते हैं, न सैकड़ों संयुक्त उपक्रमों के बारे में और न ही अफ्रीका में बसे तीस लाख भारतीयों के बारे में। बदले की भावना से इन भारतीयों पर भी हमला किया जा सकता है, उनकी दुकानों और कारखानों को क्षति पहुंचाई जा सकती है और उनकी साख को बट्टा लगाया जा सकता है।
भारत सरकार साझा हितों के लिए और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर 54 अफ्रीकी देशों का समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विशेष प्रयास कर रही है।
भारत कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने के लिए सभी अफ्रीकी देशों के साथ 2008 से भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन का आयोजन करता रहा है। 2015 में भी दिल्ली में ऐसे ही एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें तकरीबन सभी अफ्रीकी देशों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया था और जिसमें कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग जुटाने को लेकर सहमति बनी थी।
लेकिन बार-बार ऐसा हिंसक और अशिष्ट व्यवहार इन सभी प्रयासों पर पानी फेरने और भारत की साख पर बट्टा लगाने के लिए काफी है। इतना ही नहीं इससे अफ्रीका के विकास में योगदान देने वाले प्रवासी भारतीयों के भविष्य के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है।
तो यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि इस दयनीय स्थिति में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है?
पहला, जरूरी है कि प्रशासन ऐसे मामलों की पुख्ता जांच करे, मामले पर कार्रवाई करे और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दे। इतना ही काफी नहीं है, ऐसी घटनाएं फिर न दोहराई जाएं इसके लिए जरूरी है कि मीडिया भी अपनी भूमिका निभाते हुए इसकी रिपोर्ट दे।
दूसरा, विदेश मंत्रालय को मामले को शांत करने के लिए कूटनीतिक बयानों के अलावा अन्य मंत्रालयों और संगठनों की मदद से नस्लीय सद्भाव कायम करने के लिए सशक्त अभियान चलाना चाहिए।
तीसरा, विदेश मंत्रालय के सार्वजनिक कूटनीतिक खंड को हाई स्कूलों, विश्वविद्यालयों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को अफ्रीका और भारत के लिए उसके महत्व के बारे में शिक्षित करना चाहिए। आज भी अधिकांश भारतीयों को अफ्रीका के बारे में जानकारी के नाम पर केवल दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाबवे की क्रिकेट टीमों के बारे में ही पता है।
चौथा, जरूरी कदम यह है कि भारत को अफ्रीकियों के लिए उच्च शिक्षा और चिकित्सा मुहैया कराने के अलावा तात्कालिक कदम के तौर पर कम से कम पूर्वी, पश्चिमी, मध्य और दक्षिण अफ्रीका में अपने विश्वविद्यालयों और विशेष अस्पतालों की शाखाएं खोलनी चाहिए।
भारत में अफ्रीकी नागरिकों के प्रति भेदभाव और हिंसा इतनी जल्दी खत्म होने की उम्मीद नहीं है, इसके लिए ठोस, सशक्त और स्थायी कदम जरूरी हैं।–आईएएनएस
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