विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत है । यह संदेश देते हुए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरूवार को नागपुर में आरएसएस के तीसरे वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में कहा कि राष्ट्रवाद किसी धर्म और भाषा में नहीं बंटा है।
उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा कि राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्र भक्ति —-इन तीनों शब्दों को समझने का प्रयास करते हैं।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमारी एक संस्कृति, एक भाषा, एक विरासत हो। ऐसी पहचान से भारत की राष्ट्रीयता जुड़ी हुई हो। भारत एक स्वतंत्र समाज रहा है, जो यहां आया वह यहीं का होकर रह गया, किसी से एक से बंधा हुआ नहीं रहा है।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी : टीवी फोटो
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि जितने भी विदेशी यात्री भारत में आए, उन्होंने भारतीय समाज को समझा और सब ने अपनी-अपनी तरह से लिखते हुए यह समझाया कि भारत में एक सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था है जहां शिक्षा का महत्व है।
इस संदर्भ में उन्होंने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और अनेक प्राचीन विश्वविद्यालयों की चर्चा करते हुए कहा कि यहां सभी कला, संस्कृति, साहित्य के शिक्षण के लिए छठी शताब्दी से लेकर मुगलों के आने तक दुनिया भर के लोग यहां शिक्षा लेने आते रहे।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता हम एक मंत्र के रूप में देख सकते हैं। विश्व को एक कुटुम्ब मानते हैं जिसमें सभी का कल्याण और विश्व को एक परिवार की तरह देखें यानी वसुधैव कुटुंबकम हमारी संस्कृति है।
प्रणब दा ने कहा कि हजारों सालों से यहां पर विभिन्न समाजों, सभ्यताओं और संस्कृति के लोग आते रहे और इसमें समाहित होते गए। बावजूद इसके हमारी संस्कृति ने सभी को बांधे रखा।
जैसे सारी नदियां समुद्र में जाकर मिलती हैं वैसे ही भारत की संस्कृति, सभ्यता सब मिली हुई हैं–पूर्व राष्ट्रपति ने कहा।
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