नई दिल्ली, 20 मई (जनसमा)। गंगा नदी से गाद निकालने के लिए कई उपायों की सिफारिश करते हुए चितले समिति ने कहा है कि किसी भी सूरत में गाद की वजह से नदी-तालाबों में प्रदूषण नहीं होना चाहिए और निपटान स्थलों के आसपास मौजूद वनस्पतियों और जीवों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हटाई गई गाद फिर से नदी में वापस न आ जाए। अंधाधुंध गाद हटाने से पारिस्थितिकी और पर्यावरण प्रवाह को अधिक नुकसान हो सकता है। इसलिये गाद हटाने के लिये दिशा निर्देश और बेहतर व्यापक सिद्धांत तैयार करने की आवश्यकता है, जिन्हें गाद हटाने की योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन के समय ध्यान में रखा जाना चाहिये।
जल संसाधन नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार मंत्रालय ने भीमगौड़ा(उत्तराखंड) से फरक्का(पश्चिम बंगाल) तक गंगा नदी की गाद निकालने के लिए दिशा निर्देश तैयार करने के वास्ते जुलाई 2016 में चितले समिति का गठन किया था। राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (एनजीआरबीए) के विशेष सदस्य माधव चितले को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
इलाहाबाद के पास फाफामउ में गंगा नदी की सूखती हुई जल धारा । यह फोटो 22 अप्रैल 2016 को आईएएनएस के फाटोग्राफर ने क्लिक किया था।
समिति ने कहा कि गुगल अर्थ के नक्शे पर मुख्य नदी गंगा की पैमाइश से पता चलता है कि विभिन्न पाट गतिशील संतुलन चरण में हैं। तलछटी मुख्यरूप से भीमगौड़ा बैराज के नीचे की ओर तथा गंगा में मिलने वाली सहायक नदियों के संगम स्थल के नजदीक देखी गई है।
समिति ने गंगा से गाद निकालने के लिए कई उपायों की सिफारिश की है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भूमि कटाव, तलछट की सफाई और गाद अति जटिल घटनाएं हैं।
अत्यधिक गाद, बड़े पैमाने पर तलछट का जमाव और इसके नकारात्मक प्रभाव मुख्य रूप से घाघरा और उसके आगे संगम के नीचे की ओर पाया जाता है। घाघरा के संगम से आगे मैदानी इलाके में बाढ़ तेजी से बढ़ कर लगभग 12 से 15 किलोमीटर तक फैल जाती है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के रेत खनन के दिशानिर्देशों के अलावा गंगा नदी में गाद हटाने के कार्यों के विशिष्ट संदर्भ में समिति ने निम्नलिखित जीएसआई दिशानिर्देशों का सुझाव दिया है, जो वैधानिक हैं:
गंगा नदी जलविज्ञान, तलछट और प्राकृतिक नदी तल तथा तट के झुकाव के अनुरूप स्वयं का संतुलन हासिल करने का प्रयास करती है। बाढ़ के स्तर को नियंत्रित करने के लिए नदी के साथ बाढ़ के लिये पर्याप्त मैदान और झीलें उपलब्ध कराना आवश्यक है।
गाद हटाने/खनन गतिविधियों से कुछ प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं, जैसे कि
1) नदी तल का नीचे की ओर जाना
2) तट का कटाव
3) प्रवाह का चौड़ा होना
4) नदी प्रवाह में उथले जल स्तर का नीचे की ओर आना
5) पुलों, पाइपलाइनों, जेटी, बांधों, मेड़ इत्यादि की ढांचागत मजबूती में कमी आना
6) पर्यावरणीय नुकसान होना।
बैराज / पुल जैसे निर्माण कार्यों के कारण गाद भरने से नदी का रूख भटक जाता है। विकास के बाद ऑब्सोबो झीलों के रूप में शेष बचे क्षेत्र का उपयोग अन्य प्रयोजनों के बजाय बाढ़ नियंत्रण के लिए किया जाना चाहिए।
यदि संकुचन के कारण व्यापक गाद जमा हो रही हो, तो ऐसी स्थिति में पूर्व चयनित प्रवाह में गाद हटाने का काम काफी गहराई में किया जा सकता है, ताकि मुख्य धारा को सही दिशा दी जा सके। मेड़ एवं बांधों के आसपास गाद को निरंतर जमा करने के प्रयास किये जाने चाहिए।
तटों के संरक्षण के लिए किये गये तटबंध, चपेट और नदी संबंधी उपायों से बाढ़ प्रभावित मैदानी इलाकों में प्रवाह नहीं जाना चाहिए और झीलों, बाढ़ वाले मैदानी इलाकों और अन्य पर्यावरण को नदी से अलग करके रखा जाना चाहिए।
संगम वाले स्थानों, विशेष रूप से भारी गाद अपने साथ ले जाने वाली सहायक नदियों जैसे कि घाघरा, सोन इत्यादि से गाद हटाना आवश्यक हो सकता है, जिससे कि संगम वाले स्थलों को जल के लिहाज से दुरुस्त किया जा सके।
मुख्य नदी गंगा और इसकी सहायक नदियों के ऊपरी प्रवाह में अवस्थित जलाशयों का संचालन कुछ इस तरह से किया जाना चाहिए, जिससे कि भारी गाद वाली प्रथम बाढ़ को बगैर भंडारण के ही गुजरने दिया जा सके।
नदियों में बाढ़ वाले मैदानी इलाकों में खेती-बाड़ी कुछ इस तरह से की जानी चाहिए, जिससे कि बाढ़ के पानी के प्रवाह में कोई अवरोध उत्पन्न न हो सके।
अपतटीय प्रवाह धीमी गति से होना चाहिए, ताकि वनस्पतियों और जीवों को नया आश्रय स्थल पाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
फरक्का बांध के आगे जमा गाद से जुड़े विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए यह सुझाव दिया गया है कि वहां पर बनी उथली जगहों से गाद हटाई जा सकती है । हटाई गई तलछट का उपयोग फरक्का फीडर नहर की फिर से ग्रेडिंग किये जाने और बांध संबंधी तालाब के चारों ओर बने तटबंधों को मजबूत करने में किया जा सकता है।
गंगा नदी से गुजरने वाले किसी भी पुल, जिसके कारण बड़े पैमाने पर बहाव (सामान्य गहराई के एक फीसदी से ज्यादा) उत्पन्न होता है, में कुछ इस तरह से बदलाव किया जाना चाहिए, जिससे कि बहाव में कमी सुनिश्चित हो सके। इससे तलछट जमा होने के साथ-साथ अपतटीय स्थल पर तटों का कटाव कम हो सकेगा।
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