देश में नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली ‘वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी)’ को लागू किये जाने के बाद एक साल की अवधि पूरी हो चुकी है। इस एकल टैक्स ने उन 17 करों और अनगिनत उपकरों (सेस) का स्थान लिया है, जिसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने लागू किया था।
इससे पहले देश में अत्यंत जटिल कर प्रणाली लागू थी क्योंकि प्रत्येक करदाता को तरह-तरह के रिटर्न भरने पड़ते थे, उन्हें कई इंस्पेक्टरों एवं कर निर्धारण अधिकारियों का सामना करना पड़ता था, अपने किसी भी उत्पाद की आवाजाही होने पर प्रत्येक राज्य में अलग से टैक्स अदा करना पड़ता था और तरह-तरह की बाधाओं का सामना करने पर करदाता टैक्स अदायगी से बचने के उपाय ढूंढ़ने लगता था।
जीएसटी का आधारभूत विचार मौलिक नहीं था। दुनिया के कई देशों में प्रयोग के तौर पर इसे लागू किया जा चुका है। अनेक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय मॉडल को विकसित करना जरूरी था। भारत राज्यों का एक ऐसा संघ है, जिसमें केन्द्र और राज्यों दोनों को ही राजकोषीय अथवा वित्तीय दृष्टि से सुदृढ़ होना अत्यंत जरूरी है। भारत राज्यों का परिसंघ नहीं है, इसलिए केन्द्र सरकार के राजस्व की कीमत पर राज्यों की राजस्व स्थिति को सुदृढ़ नहीं किया जा सकता है। यदि केन्द्र का ही अस्तित्व बरकरार नहीं रह पाएगा, तो ‘भारत’ यानी राज्यों के संघ का क्या होगा?
जीएसटी का दोषपूर्ण यूपीए मॉडल :
यूपीए और कांग्रेस पार्टी में मेरे मित्र कभी-कभी इस तरह के सवाल पूछते हैं कि यूपीए के कार्यकाल के दौरान जीएसटी के विचार से कुछ मुख्यमंत्री सहज क्यों नहीं थे। इसके दो मुख्य कारण थे।
पहला, यूपीए सरकार ने कांग्रेस शासित राज्यों सहित विभिन्न राज्यों का विश्वास खो दिया था। एकल कर प्रणाली को अपनाने की दिशा में कदम उठाते हुए यूपीए ने राज्यों से सीएसटी को समाप्त करने के लिए कहा था। यूपीए ने राज्यों से वादा किया था कि सीएसटी को समाप्त करने के बदले में कुछ वर्षों तक उन्हें मुआवजा दिया जाएगा। राज्यों ने तदनुसार ऐसा ही किया, लेकिन सीएसटी के बदले में मुआवजा देने का वादा यूपीए ने पूरा नहीं किया। जब मैंने मई, 2014 में वित्त मंत्री का पदभार संभाला, तो भाजपा शासित राज्यों सहित सभी राज्यों ने मुझसे कहा कि यूपीए सरकार ने जैसा किया, उसे देखते हुए वे केन्द्र सरकार पर भरोसा नहीं करते हैं। राज्यों ने मुझसे कहा कि वे जीएसटी पर चर्चा तभी करेंगे, जब सीएसटी से जुड़ा पिछला मुआवजा उन्हें मिल जाएगा। मैंने तदनुसार वैसा ही किया और सीएसटी मुआवजा अदा कर दिया गया। इसके बाद राज्य जीएसटी पर बात आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो गये।
दूसरा कारण यह था कि राज्यों के मन में यह संशय था कि जीएसटी को पूरी तरह से लागू करने के दौरान उन्हें राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में सवाल यह था कि राज्यों को नुकसान की भरपाई किस तरह से की जाएगी। उनकी मांग जायज प्रतीत होती थी, लेकिन यूपीए ने इसका हल नहीं निकाला। विशेषकर तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे विनिर्माण राज्य इसको लेकर काफी चिंतित थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘मुआवजा नहीं तो जीएसटी नहीं’। जीएसटी परिषद में विचार-विमर्श करने के बाद मैं राज्यों को कुछ भी राजस्व नुकसान होने पर प्रथम पांच वर्षों तक राजस्व में 14 प्रतिशत की वृद्धि करने पर सहमत हो गया। राज्यों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और हम इस तरह जीएसटी लागू करने के लिए राज्यों का भरोसा जीतने में सफल हो गये।
एक साल के बाद अनुभव –
जब जीएसटी को 01 जुलाई, 2017 को लागू करना था, तो कांग्रेस ने हमें इसे स्थगित करने की सलाह दी थी। हालांकि, एक अनिच्छुक सरकार कभी भी सुधारवादी निर्णय नहीं ले सकती है। अत: हम इस दिशा में आगे बढ़ गये। पहले चरण में हमने टैक्स दरों का प्रथम सेट तय किया। ऐसे में व्यापार एवं उद्योग जगत से बड़ी संख्या में अनुरोध प्राप्त हुए और हमने टैक्स दरों को तर्कसंगत करना शुरू कर दिया।
जीएसटी परिषद की आरम्भिक कुछ बैठकों में जहां भी आवश्यक समझा गया उनके मामलों में टैक्स दरों को कम कर दिया गया। जब हम समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं पर गौर करते हैं, तो हमें प्रतीत होता है कि आज टैक्स दरों की कुल संख्या पिछली कर प्रणाली की तुलना में काफी कम है। टैक्स पर टैक्स लगाये जाने की व्यवस्था समाप्त हो जाने से कर देनदारी कम हो गयी है।
आम सहमति सुनिश्चित करने के लिए हमने संविधान संशोधन विधेयक पारित किया, ताकि सर्वसम्मति से जीएसटी को लागू किया जा सके। जीएसटी से जुड़े सभी विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गये। जीएसटी परिषद के समक्ष संबंधित नियम-कायदे पेश किये गये। उन्हें सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई। हमने अब तक जीएसटी परिषद की 27 बैठकें की हैं, जिस दौरान प्रत्येक निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया है।
भारत भी उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां इतने बड़े कर सुधारों को सुगमतापूर्वक लागू किया गया है। समस्त चेक-पोस्ट को रातों-रात समाप्त कर दिया गया। इनपुट टैक्स क्रेडिट की प्रणाली ने समस्त आवश्यक जानकारियों को उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर दिया है। जीएसटी ने बड़े पैमाने पर स्वैच्छिक कर पंजीकरण को प्रोत्साहित किया है। इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में की गई विस्तृत गणनाओं से यह पता चला है कि दिसम्बर, 2017 तक लगभग 1.7 मिलियन पंजीकरणकर्ता ऐसे थे, जो जीएसटी सीमा से काफी नीचे आते थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जीएसटी का हिस्सा बनने का विकल्प चुना।
बड़े पैमाने पर कर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए ई-वे बिल को पेश किया गया है। जैसे ही इनवॉयस के मिलान का काम शुरू हो जाएगा, तब कर की चोरी अत्यंत कठिन हो जाएगी। करदाताओं को अब काफी सहूलियत हो गई है। करदाता अब अपने रिटर्न ऑनलाइन भरते हैं और विभिन्न अधिकारियों से उनका सामना अब नहीं होता है। रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया भी सरल कर दी गई है। कर आधार बढ़ने पर कर की दरों एवं स्लैबों को तर्कसंगत बनाने की हमारी क्षमता और ज्यादा बढ़ जाएगी।
अत्यंत छोटे कारोबारियों को संरक्षित कर दिया गया है। जिन कारोबारियों का टर्नओवर 20 लाख रुपये से कम है, वे जीएसटी अदा नहीं करते हैं। जिन कारोबारियों का टर्नओवर एक करोड़ रुपये तक है, वे अपने टर्नओवर पर एक प्रतिशत टैक्स की अदायगी के साथ अपने जीएसटी का संयोजन कर सकते हैं और तिमाही रिटर्न दाखिल कर सकते हैं।
एकल स्लैब
राहुल गांधी भारत के लिए एकल स्लैब वाले जीएसटी की वकालत करते रहे हैं। यह एक दोषपूर्ण आइडिया है। एकल स्लैब वाला जीएसटी केवल उन्हीं देशों में कारगर साबित हो सकता है, जहां की समूची आबादी एक जैसी है और उनकी अदायगी क्षमता ज्यादा है।
कर का प्रभाव
प्रत्यक्ष कर पर जीएसटी का प्रभाव स्पष्ट नजर आ रहा है। जिन लोगों को अपने कारोबार के टर्नओवर का खुलासा करना पड़ता है, उन्हें अब आयकर के लिए अपनी आय का खुलासा करना पड़ता है। ऐसे में आरंभिक संकेतों से पता चला है कि प्रत्यक्ष कर का संग्रह बढ़ गया है। जब हम जुलाई, 2017 से लेकर मार्च, 2018 तक के प्रथम नौ महीनों में जीएसटी के प्रदर्शन पर गौर करते हैं और सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी एवं कम्पोजीशन सेस सहित समस्त संग्रहीत राशि को जोड़ते है, तो हमें जीएसटी संग्रह की पूरी राशि प्राप्त होती है। प्रथम नौ महीनों में 8.2 लाख करोड़ रुपये की कुल राशि का संग्रह हुआ है, जो वार्षिक आधार पर 11 लाख करोड़ रुपये बैठता है और 11.9 प्रतिशत की वृद्धि अथवा 1.22 की कर उछाल को दर्शाता है, जो ऐतिहासिक रूप से अप्रत्यक्ष करों के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि है। जीएसटी से मध्यम अवधि में देश का कर आधार मजबूत हो जाएगा, जिससे जीडीपी में 1.5 प्रतिशत की और ज्यादा वृद्धि होगी।
आज मुआवजा उपकर की मदद से राज्य वर्ष 2015-16 के कर आधार में 14 प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर रहे हैं। जब रुका हुआ आईजीएसटी केन्द्र और राज्यों को धीरे-धीरे जारी किया जाएगा, तो मुआवजा उपकर के बिना भी ज्यादातर राज्य 14 प्रतिशत के वृद्धि लक्ष्य को पार कर जाएंगे।
अप्रत्यक्ष कर का आधार बढ़ रहा है। देश भर में वस्तुओं और सेवाओं का निर्बाध प्रवाह हो रहा है। ‘कारोबार में और ज्यादा सुगमता’ सुनिश्चित हो गई है। किसी व्यापक व्यवधान के बिना ही नई कर प्रणाली अपना ली गई है। आरंभिक कठिनाइयों के बाद आईटी प्रणाली अब बेहतर ढंग से काम कर रही है। इन सभी के लिए मैं राजस्व सचिव श्री हसमुख अधिया, सीबीआईसी और केन्द्र एवं सभी राज्यों के राजस्व तथा कर विभागों के समस्त अधिकारियों, जीएसटीएन के पदाधिकारियों और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का तहे दिल से धन्यवाद करता हूं।
सुधार की सदा ही गुंजाइश रहती है। भविष्य में उठाये जाने वाले महत्वपूर्ण कदमों से कर प्रणाली और भी ज्यादा सरल हो जाएगी तथा कर ढांचा तर्कसंगत हो जाएगा।
जीएसटी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जीएसटी परिषद एक अत्यंत कारगर एवं प्रभावशाली निर्णय निर्माता संघीय संस्था साबित हुई है। राज्यों के वित्त मंत्रियों ने संघीय गवर्नेंस के मामले में इतिहास रच दिया है। यह वास्तव में मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे इनमें से सभी का व्यापक सहयोग प्राप्त हुआ है। मैं जीएसटी के रूप में इस ऐतिहासिक बदलाव को मूर्त रूप देने और पूरे राष्ट्र को इस मामले में बेहतरीन अनुभव प्रदान करने में सामूहिक सहयोग देने के लिए वित्त मंत्रियों का धन्यवाद करता हूं।
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