टिकोडा़ एवं डामडोंगरी के इलाके में पन्द्रह लाख साल से अधिक प्राचीन प्रागैतिहासिक प्रमाण मिले हैं। इन दोंनो क्षेत्रों में प्राचीन मानव जिस जलवायु में रहता था, उसके रहन-सहन, खान-पान समेत अन्य गतिविधियों की जानकारी, मिट्टी के नमूनों और पाषाण उपकरणों से मिलती है।
मध्यप्रदेश में रायसेन जिले के ग्राम नरवर एवं इसके आस-पास के क्षेत्र का भारतीय प्रागैतिहास में विशिष्ट स्थान बन गया है।
पुरातत्व आयुक्त अनुपम राजन ने यह जानकारी देते हुए बताया है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली के सेवानिवृत्त महानिदेशक डॉ. एस.वी. ओता द्वारा इस क्षेत्र में वर्ष 2010 से 2015 तक लगातार 6 साल तक कराए गए उत्खनन से यह प्रमाणिक तथ्य प्रकाश में आये हैं।
पुरातत्व आयुक्त ने बताया कि डॉ. ओता ने शनिवार को राज्य संग्रहालय के डॉ. विष्णु श्रीधर वाकरणकर पुरातत्व शोध संस्थान में ‘जियो आर्कियोलॉजिकल इन्वेस्टीगेशन ऑफ ऐकेलियन लोकलिटीज एण्ड टिकोड़ा एण्ड डामडोंगरी रायसेन जिला पर व्याख्यान दिया।
राजन ने इस क्षेत्र में पुरातत्वीय एवं ऐतिहासिक प्रमाणिक तथ्य की जानकारी देते हुए बताया टिकोडा़ स्थल के निचले स्तरों से जो पाषाण उपकरण मिले हैं उनकी समानता अफ्रीका से प्राप्त ओल्डवान संस्कृति के उपकरणों से मिलती-जुलती है।
इस उत्खनन कार्य में शतुरमुर्ग के अण्डे के टुकड़े भी मिले हैं। मानव निर्मित पाषाण औजारों में हस्त-कुठार, विदारणी, खुचरनी एवं अन्य फलक उपकरण प्रमुख हैं।
इन स्थलों का प्रागैतिहासिक कालीन प्रभाव विभिन्न उत्खनित भागों में लगभग एक मीटर से 9.5 मीटर तक अलग-अलग पाया गया है। यह सभी पुरातात्विक साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह क्षेत्र लाखों वर्ष पहले मानव गतिविधियों का केन्द्र रहा है।
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