वाइस एडमिरल ए.के. जैन ने कहा कि भारत का रक्षा उद्योग प्रगति पथ पर अग्रसर है और अब इसने रक्षा हथियारों एवं उपकरणों के निर्माण के लिए उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी हासिल करने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। इससे भारत की प्रमुख पहल ‘मेक इन इंडिया’ को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।
भारत-अमेरिका द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के एक भाग के रूप में रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (डीटीटीआई) पर गठित अंतर एजेंसी कार्य दल की आठवीं बैठक में सोमवार को वाइस एडमिरल जैन ने यह बात कही।
इस बैठक की सह-अध्यक्षता इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के उप-प्रमुख वाइस एडमिरल ए.के. जैन और कार्यवाहक निदेशक (अंतर्राष्ट्रीय सहयोग) मैथ्यू वारेन ने की।
मैथ्यू वारेन ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग निरंतर बढ़ रहा है।
डीटीटीआई का शुभारंभ अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री डॉ. एशटन कार्टर के एक विचार के रूप में वर्ष 2012 में किया गया था। डीटीटीआई का उद्देश्य रक्षा व्यापार में द्विपक्षीय रिश्तों के साथ-साथ अवसर सृजित करने की ओर भी नेतृत्व का ध्यान निरंतर आकृष्ट करना है, ताकि रक्षा उपकरणों का सह-उत्पादन और सह-विकास संभव हो सके।
डीटीटीआई के तहत दोनों ही पक्षों ने विभिन्न परियोजनाओं पर कई संयुक्त कार्य दल गठित किए हैं, जिन्होंने सशस्त्र बलों के लिए विभिन्न परियोजनाओं की पहचान की है।
इन परियोजनाओं पर विचार-विमर्श करने और इनका काम आगे बढ़ाने के लिए इन कार्यदलों की बैठक नियमित रूप से होती है।
अमेरिका द्वारा वर्ष 2017 में राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकृति अधिनियम के तहत भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार घोषित करने के परिणामस्वरूप डीटीटीआई को काफी बढ़ावा मिला है।
अमेरिका की ओर से इस बैठक की सह-अध्यक्षता करने वाले मैथ्यू वारेन ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग निरंतर बढ़ रहा है। दोनों ही पक्ष इस संदर्भ में डीटीटीआई को विशेष अहमियत देते हैं और यह दोनों पक्षों के बीच रक्षा क्षेत्र में द्विपक्षीय रिश्ते को आगे बढ़ाने में पारस्परिक सहयोग का एक अच्छा फोरम है।
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