मैंग्रोव (Mangrove) प्रजाति का जीनोम (genome) डिकोड किया गया, यह भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता है।
वैज्ञानिकों ने पहली बार मैंग्रोव की अत्यधिक नमक-सहने की क्षमता और नमक का स्राव करने वाली एक ट्रू-मैंग्रोव प्रजाति, एविसेनिया मरीना के पूरे जीनोम के क्रम की सूचना दी है।
मैंग्रोव समुद्री दलदल अंतर-ज्वारीय मुहाना क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों का एक अनूठा समूह है और यह अपने अनुकूलनीय तंत्रों के माध्यम से उच्च स्तर की लवणता से सुरक्षित रहते हैं।
मैंग्रोव तटीय क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं और पारिस्थितिक और आर्थिक मूल्य के मामले में इनकी बहुत महत्ता हैं।
मैंग्रोव समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के बीच एक कड़ी का निर्माण करते हैं तथा समुद्र तटों की रक्षा करते हैं। समुद्र तटों के किनारों के ये मैंग्रोव वृक्ष समूह विभिन्न प्रकार के स्थलीय जीवों के लिए आवास भी प्रदान करते हैं।
डीबीटी-इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, भुवनेश्वर और एसआरएम-डीबीटी पार्टनरशिप प्लेटफॉर्म फॉर एडवांस्ड लाइफ साइंसेज टेक्नोलॉजीज, एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, तमिलनाडु के वैज्ञानिकों ने पहली बार अत्यधिक नमक सहिष्णु और नमक-स्रावित ट्रू-मैंग्रोव प्रजाति, एविसेनिया मरीना के संदर्भ-ग्रेड के एक पूरे जीनोम अनुक्रम की जानकारी दी है।
एविसेनिया मरीना भारत में सभी मैंग्रोव संरचनाओं में पाई जाने वाली सबसे प्रमुख मैंग्रोव प्रजातियों में से एक है।
यह एक नमक-स्रावित और असाधारण रूप से नमक-सहने वाली मैंग्रोव प्रजाति है जो 75% समुद्री जल में भी बेहतर रूप से बढ़ती है और >250% समुद्री जल को सहन करती है।
यह दुर्लभ पौधों की प्रजातियों में से है, जो जड़ों में नमक के प्रवेश को बाहर करने की असाधारण क्षमता के अलावा नमक ग्रंथियों के माध्यम से 40% नमक का उत्सर्जन कर सकती है।
नेचर कम्युनिकेशंस बायोलॉजी के हालिया अंक में प्रकाशित यह अध्ययन 88 बिन्दुओं और 252 संस्पर्शो से प्राप्त 31 गुणसूत्रों में अनुमानित 462.7 एमबी ए. मरीना जीनोम के 456.6 एमबी (98.7% जीनोम कवरेज) के संयोजन की जानकारी देता है।
अंतराल में जीनोम का प्रतिशत 0.26% था, जिससे यह एक उच्च-स्तरीय संयोजन सिद्ध हुआ। इस अध्ययन में एकत्रित किया गया ए. मरीना जीनोम लगभग पूर्ण हो चुका है और इसे किसी भी मैंग्रोव प्रजाति के लिए अब तक रिपोर्ट किए गए विश्व स्तर पर और भारत से पहली रिपोर्ट के तौर पर संदर्भ-ग्रेड जीनोम के रूप में माना जा सकता है।”
इस अध्ययन में नवीनतम जीनोम अनुक्रमण और संयोजन तकनीकों को नियोजित किया गया और 31,477 प्रोटीन-कोडिंग जीन और एक “सैलिनोम” की पहचान की, जिसमें 3246 लवणता-प्रतिक्रियाशील जीन और 614 प्रयोगात्मक रूप से मान्य लवणता सहिष्णुता जीन के होमोलॉग शामिल हैं।
अध्ययन ने 614 जीनों की पहचान की जानकारी दी है, जिसमें 159 प्रतिलेखन कारक, जो जीन के समरूप हैं और जिन्हें ट्रांसजेनिक प्रणालियों में लवणता सहिष्णुता के लिए कार्यात्मक रूप से मान्य माना गया था, इसमें शामिल हैं।
यह अध्ययन इसलिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक स्तर पर कृषि उत्पादकता सीमित पानी की उपलब्धता और मिट्टी एवं पानी के लवणीकरण जैसे अजैविक दबाव कारकों के कारण प्रभावित होती है।
शुष्क क्षेत्रों में फसल उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जो दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र का 40 प्रतिशत है। विश्व स्तर पर 900 मिलियन हेक्टेयर (भारत में अनुमानित 6.73 मिलियन हेक्टेयर) लवणता है, और इससे 27 बिलियन अमरीकी डालर का वार्षिक नुकसान होने का अनुमान है।
अध्ययन में उत्पन्न जीनोमिक संसाधन शोधकर्ताओं के लिए तटीय क्षेत्र की महत्वपूर्ण फसल प्रजातियों की सूखी और लवणता सहिष्णु किस्मों के विकास के लिए पहचाने गए जीन की क्षमता का अध्ययन करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जो भारत के 7,500 किलोमीटर समुद्र तट और दो प्रमुख द्वीपों की व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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