नई दिल्ली, 2 जनवरी | सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक पार्टियों द्वारा धर्म, जाति, समुदाय, नस्ल या भाषा के नाम पर वोट मांगने पर रोक लगाने का फैसला लिया है। सोमवार को आए इस फैसले का देश भर के तमाम धार्मिक संगठनों व राजनीतिक दलों ने स्वागत किया है। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने कहा है कि जाति, समुदाय तथा धर्म के आधार पर राजनीति से देश का नुकसान हुआ है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जाति, समुदाय, धर्म तथा भाषा के नाम पर वोट मांगना अवैध है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर के नेतृत्व में एक संवैधानिक पीठ ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 (3) के आधार पर 4:3 के बहुमत से फैसले के आदेश को पारित किया।
वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र जैन ने आईएएनएस से कहा, “हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के स्वागत करते हैं।”
उन्होंने कहा कि जाति, भाषा, क्षेत्र या धर्म के आधार पर की गई राजनीति ने देश का बेहद नुकसान किया है और इससे राष्ट्रीय अखंडता को भी नुकसान पहुंचा है।
मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि धर्म इत्यादि के नाम पर वोट मांगने पर रोक को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
जेआईएच के महासचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने आईएएनएस से कहा, “सर्वोच्च न्यायालय का फैसला हालांकि कोई नया नहीं है, क्योंकि मौजूदा कानून धर्म के नाम पर वोट मांगने पर रोक लगाता है। लेकिन, अब इस आदेश को पूरे उत्साह के साथ लागू किया जाना चाहिए।”
वहीं फैसले को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता डी. राजा ने आईएएनएस से कहा, “पूरे फैसले का अध्ययन किए जाने की जरूरत है।”
राजा ने कहा, “जन प्रतिनिधि अधिनियम में यह सब स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धर्म और राजनीति को अलग रखा जाना चाहिए और किसी को भी राजनीतिक या चुनावी लाभ के लिए इनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “यह एक मजबूत संदेश है।”
कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने आईएएनएस से कहा, “राजनीति पर जाति और धार्मिक समीकरणों का जिस प्रकार प्रभुत्व हो गया है, उसके मद्देनजर शीर्ष न्यायालय के इस व्यावहारिक संदेश का मैं स्वागत करती हूं। खासतौर पर कुछ पार्टियों ने इसे भारतीय राजनीति में आगे बढ़ने के लिए अपनी विचारधारा का हिस्सा बना लिया है।”
कांग्रेस नेता ने कहा, “इसे निरुत्साहित करना जरूरी है और मैं सर्वोच्च न्यायालय के इस कदम का स्वागत करती हूं।”
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