—अनिल बेदाग==
संगीत को लोकप्रिय बनाने में ध्वनि यानी साउंड का अहम योगदान है। यदि ध्वनि दिल को छूने वाली न हो तो संगीत पाॅप्युलर नहीं होगा।। ध्वनि ही फिल्म को एक नया रूप देती है और संगीत को श्रोताओं के दिल तक पहुंचाती है। इसलिए ध्वनि या साउंड डिजाइन से जुड़े लोगों का काम काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
इन्हीं चुनौतियों से जूझते हुए अपनी एक खास पहचान कायम की है साउंड डिजाइनर कुणाल शर्मा ने। बतौर साउंड डिजाइनर उड़ान, लुटेरा, शैतान, गुलाल, राज़ी, भावेश जोशी सुपर हीरो और गैंग्स ऑफ वासेपुर वन और टू जैसी कई हिट फिल्में उनके नाम दर्ज हैं।
कुणाल शर्मा पिछले बीस वर्षों से संगीत की दुनिया में साउंड डिजाइनिंग कर रहे हैं। साउंड डिजाइनिंग में किया गया इनका
उत्कृष्ट काम ही है जिसकी बदौलत इन्हें अमृत सागर के वॉर ड्रामा 1971 के लिए नेशनल अवार्ड और देवदास और उड़ान के लिए आईफा और फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुके हैं।
साउंड म्यूज़िक के बारे में कुणाल कहते हैं कि सिनेमा ऑडियो विजुअल माध्यम है लेकिन अफसोस बात तो ये है कि इसपर ज्यादा फोकस नहीं किया जा रहा।
साउंड ही फिल्मों के इमोशनल और कॉमिक सीन्स में प्रभाव पैदा करती है। साउंड के लिए ज्यादा बजट और समय भी नहीं निकाला जाता।
हॉलीवुड फिल्मों की बात करें तो उनमें साउंड पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है इसलिए ऐसी फिल्में प्रभाव पैदा करती हैं। अगर बॉलीवुड को हॉलीवुड से मुकाबला करना है, तो साउंड पर विशेष ध्यान देना होगा।
कुणाल 20 साल की उम्र में साउंड डिपार्टमेंट में शामिल हुए थे। वह सनी सुपर साउंड्स में सुरेश कथुरिया के सहायक बने और फिल्मों में साउंड के महत्व को समझा।
कुणाल ने ध्वनि या साउंड की सभी तकनीकों को सीखा। उनके काम से प्रभावित होकर अनुराग कश्यप ने उन्हें पांच में पहला ब्रेक दिया।
अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवानी के साथ उन्होंने कई फिल्में कीं जिनमें संजय लीला भंसाली की देवदास भी एक थी।
कुणाल कहते हैं कि हमारा काम बेस्ट देना है। फिल्म हिट होने पर लगता है कि मैंने अपना काम सफलतापूर्वक कर दिया है और यही मेरी उपलब्धि है।
कुणाल का मानना है कि अब डायरेक्टर्स साउंड की उपयोगिता को समझने लगे हैं और ऐसा लगता है कि साउंड या ध्वनि की दुनिया में बड़ा बदलाव जल्द आएगा।
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