नई दिल्ली, 09 जुलाई (जनसमा)। सरकार 28% के टैक्स स्लैब के तहत उत्पादों और सेवाओं की श्रेणी को फिर से देखे और विचार करे क्योंकि कई उत्पादों जैसे ऑटो स्पेयर पार्ट्स, हाउसिंग उद्योग की वस्तुओं आदि को निम्न कर दरों वाले वस्तुओं के वर्ग में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। यह सुझाव व्यापारियों के प्रमुख संगठन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स के सम्मेलन में शुक्रवार को दिया गया।
यह सुझाव भी दिया गया है साथ ही, सरकार ‘डिजिटल इंडिया’ के प्रति प्रधान मंत्री मोदी के विचारों के अनुरूप डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय टूल्स एवं सेवाओं, जिनपर पहले 15% का टैक्स रेट था, को 18% के टैक्स स्लैब के तहत शामिल करने के अपने फैसले की फिर से समीक्षा करे।”
कैट ने सरकार को सुझाव दिया है कि वे केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों दोनों ही स्तरों पर व्यापार और वाणिज्य जगत के साथ मिलकर “जीएसटी के मूल्यांकन के लिए मीटिंगों” का आयोजन करें और सभी जमीनी मुद्दों को समझने और उन्हें तर्कसंगत बनाने की दिशा में जरूरी प्रयास करें। इस तरह से नई प्रणाली में सभी का अधिक आत्मविश्वास जगेगा और भ्रम की स्थिति तुरंत व्यापक स्पष्टता में परिवर्तित हो जाएगी।
व्यापारिक नेताओं कहा कि सरकार के सतत प्रयासों के बावजूद, छोटे शहरों में व्यापारियों के बीच जीएसटी के आधारभूत तत्वों एवं इसके अनुपालन के दायित्वों खास तौर पर करों को चार्ज करने या इनवॉइस रेज करना, रिवर्स प्रभार के आवेदन, लगाए गए टैक्स दर और तदनुरूप एचएसएन कोड के ज्ञान की कमी, कंपोजिट एवं मिक्स सप्लाई पर टैक्स की दर, ब्रांडेड और गैर ब्रांडेड के बीच भेद इत्यादि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई और इस वजह से विशेष रूप से करों को चार्ज करने में प्रक्रियात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
व्यापारियों का कहना है कि कई बार जीएसटी पोर्टल तक पहुंचने में भी समस्याएं पेश आ रही हैं, साथ ही किसी विशेष फॉर्म को डाउनलोड करने में और अन्य भी विभिन्न व्यावहारिक समस्याओं का उन्हें सामना करना पड़ रहा है जिनका तुरंत समाधान निकाला जाना आवश्यक है ताकि जीएसटी कर व्यवस्था में त्वरित एवं निर्बाध संक्रमण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतीया और महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए कहा, “हम छोटे शहर में जीएसटी कराधान प्रणाली में संक्रमण के लिए व्यापारियों को सब्सिडी या प्रोत्साहन दिए जाने के प्रावधानों की सिफारिश करते हैं क्योंकि उनके द्वारा प्रौद्योगिकी संचालित व्यपार प्रक्रियाओं को तेजी से अपनाया जाना आवश्यक है और इसके लिए उन्हें अपना समय और पैसा दोनों ही का निवेश करना आवश्यक है। इसी तरह, देश भर में 9 महीने की अंतरिम अवधि का प्रावधान, व्यापारियों के बीच दंड के डर को कम करने और नई प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं को सीखने पर ध्यान केंद्रित करने की दिशा में बेहद प्रेरणादायक साबित होगा और साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था में उनकी कड़ी मेहनत के योगदान को भी नुकसान से बचाया जा सकेगा।”
कैट ने सरकार से आग्रह किया है कि बाजारों में “टेक-कियोस्क” स्थापित किया जाए जिससे व्यापारियों और लोगों को डिजिटल प्रक्रियाओं को समझने में सहायता मिल सके। साथ ही, सरकारी प्रतिनिधियों और व्यापार जगत के समकक्षों / समूहों के बीच नियमित संवाद, विभिन्न मार्केटों और उपभोक्ताओं द्वारा वर्तमान में सामना किए जा रहे चुनौतियों का समाधान करने में मदद करेगी और जीएसटी एक यथार्थवादी राजकोषीय सुधार लाने वाली कर व्यवस्था बन सकेगी।
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