नई दिल्ली, 31 जुलाई (जनसमा)। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ध्रुपद परंपरा के श्रेष्ठ गुरू और गायक हुसैन सैयदुद्दीन डागर नहीं रहे। उनका रविवार को पूना में देहांत होगया। वे 78 साल के थे। अपने चाहने वालों में वे सईद भाई के नाम से भी जाने जाते थे।
उनका जन्म राजस्थान के अलवर में 20 अप्रैल, 1939 को हुआ था। उनके पिता उस्ताद हुसैनुद्दीन खान डागर भी महान् गायक थे। वे इन दिनों पूना में रह रहे थे। जानकारी के अनुसार उनकी पार्थिव देह को जयपुर लाया जाएगा और वहीं दफनाया जाएगा।
जानी मानी कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि डागर साहब के निधन से शास्त्रीय संगीत की परंपरा की बड़ी क्षति हुई है।
H. Sayeeduddin Dagar Photo courtesy Youtube
वरिष्ठ और विदुषि नृत्य समीक्षक श्रीमती मंजरी सिन्हा ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि उनके निधन से डागर सप्तक का अंतिम स्वर मौन होगया।
श्रीमती सिन्हा ने कहा कि उन्होंने ध्रुपद परंपरा की पताका को जीवनभर फहराये रखा। वे न केवल श्रेष्ठ गायक, बल्कि श्रेष्ठ गुरू भी थे। उनमें आवाज बनाने का हुनर था और वे ऐसे गुरू थे कि पीतल को छूकर सोना बना देते थे।
मंजरी जी ने कहा कि सबसे अच्छी बात यह है कि उन्होंने अपने दो बेटों को इतनी अच्छी तरह से शिक्षा दी कि आज वे डागर बंधुओं की परंपरा निभा रहे हैं।
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