“वो धूल से उठे थे लेकिन माथे का चन्दन बन गए। वो व्यक्ति से अभिव्यक्ति और इससे आगे बढ़कर शब्द से शब्दब्रह्म हो गए। वो विचार बनकर आए और व्यवहार बनकर अमर हुए।” संत कबीर दास जी ने समाज को सिर्फ दृष्टि देने का काम ही नहीं किया बल्कि समाज को जागृत किया।
यह बात प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में गुरूवार को संत कबीर दास जी की समाधि पर फूल चढ़ाने और उनकी मजार पर चादर चढ़ाने के बाद कही।
उन्होंने कहा “आज मेरी बरसों की कामना पूरी हुई है.. संत कबीर दास जी की समाधि पर फूल चढ़ाने का, उनकी मजार पर चादर चढ़ाने का, सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं उस गुफा में भी गया, जहां कबीर दास जी साधना करते थे।”
नरेन्द्र मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति कलाम को याद करते हुए कहा 14-15 वर्ष पहले जब पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी यहां आए थे, तब उन्होंने इस जगह के लिए एक सपना देखा था। उनके सपने को साकार करने के लिए, मगहर को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में सद्भाव-समरसता के मुख्य केंद्र के तौर पर विकसित करने का काम अब किया जा रहा है।
मोदी ने कहा कि आज ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा है.. आज ही से भगवान भोलेनाथ की यात्रा शुरु हो रही है। मैं तीर्थयात्रियों को सुखद यात्रा के लिए शुभकामनाएं भी देता हूं। कबीर दास जी की 500वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज से ही यहां कबीर महोत्सव की शुरूआत हुई है।
उन्होंने कहा कि थोड़ी देर पहले यहां संत कबीर अकादमी का शिलान्यास किया गया है। यहां महात्मा कबीर से जुड़ी स्मृतियों को संजोने वाली संस्थाओं का निर्माण किया जाएगा। कबीर गायन प्रशिक्षण भवन, कबीर नृत्य प्रशिक्षण भवन, रीसर्च सेंटर, लाइब्रेरी, ऑडिटोरियम, हॉस्टल, आर्ट गैलरी विकसित किया जाएगा।
मोदी ने कहा कि कबीर की साधना ‘मानने’ से नहीं, ‘जानने’ से आरम्भ होती है.. वो सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव के फक्कड़ आदत में अक्खड़ भक्त के सामने सेवक बादशाह के सामने प्रचंड दिलेर दिल के साफ दिमाग के दुरुस्त भीतर से कोमल बाहर से कठोर थे। वो जन्म के धन्य से नहीं, कर्म से वंदनीय हो गए।
“कबीर ने जाति-पाति के भेद तोड़े, “सब मानुस की एक जाति” घोषित किया, और अपने भीतर के अहंकार को ख़त्म कर उसमें विराजे ईश्वर का दर्शन करने का रास्ता दिखाया। वे सबके थे, इसीलिए सब उनके हो गए”प्रधान मंत्री ने कहा।
ये हमारे देश की महान धरती का तप है, उसकी पुण्यता है कि समय के साथ, समाज में आने वाली आंतरिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए समय-समय पर ऋषियों, मुनियों, संतों का मार्गदर्शन मिला। सैकड़ों वर्षों की गुलामी के कालखंड में अगर देश की आत्मा बची रही, तो वो ऐसे संतों की वजह से ही हुआ।
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