नई दिल्ली, 28 अप्रैल। जम्मू-कश्मीर में पैलेट गन के मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि कश्मीर में शांति बनाने के लिए सरकार और लोगों में बातचीत होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए पहले सुरक्षा बलों पर पथराव जैसे प्रदर्शन रुकने चाहिए। अगर इसी तरह दोनों पक्षों में टकराव होगा तो बातचीत कैसे होगी। न्यायालय ने कहा कि हम सरकार को दो हफ्ते के लिए पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने के आदेश देंगे और अगर वहां के लोग हिंसक प्रदर्शन बंद कर बातचीत करने का आश्वासन देंगे। न्यायालय ने याचिकाकर्ता जम्मू एवं कश्मीर बार एसोसिएशन से कहा है कि वह कश्मीर के लोगों और प्रतिनिधियों से बातचीत कर कंक्रीट सुझाव लेकर सर्वोच्च न्यायालय आएं।
फोटो : श्रीनगर में प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा जवानों पर पत्थर फेंकतीं कुछ लड़कियाँ। (फोटो: आईएएनएस)
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि जम्मू एवं कश्मीर में हिंसा, पथराव बंद हो जाए और विद्यार्थी कक्षाओं में वापस लौट जाएं, तो वह सरकार से कहेगी कि वहां पैलेट गन के इस्तेमाल नहीं किए जाएं। जम्मू एवं कश्मीर बार एसोसिएशन के नेताओं से हालात को सुधारने के लिए सकारात्मक सुझावों के साथ आगे आने की बात कहते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि यदि जम्मू एवं कश्मीर में पत्थरबाजी, हिंसा बंद होती है और विद्यार्थी कक्षाओं में वापस लौट जाते हैं तो हम सरकार से पैलेट गन का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहेंगे।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “यदि आप संविधान के ढांचे के भीतर कुछ सुझाव देते हैं तो हम आपको भरोसा देते हैं कि बातचीत की जाएगी।”
बार एसोसिएशन को सुझाव के साथ आने की मोहलत देते हुए अदालत ने कहा, “आप हमें पहले बताइए कि आप क्या करेंगे। इसके बाद हम सरकार को निर्देश देंगे। यदि आप पत्थरबाजी जारी रखेंगे, तो यह काम कैसे होगा।”
पिछली सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सवाल उठाया कि प्रदर्शनकारियों में नाबालिग बच्चे और नौजवान क्यों शामिल हैं? रिपोर्ट के मुताबिक जख्मी लोगों में अधेड़ उम्र के लोग नहीं हैं। खासकर 95 फीसदी जख्मी छात्र हैं। न्यायालय ने कहा था कि कश्मीर के हालात चिंताजनक हैं। हम एक गंभीर मुद्दे पर सुनवाई कर रहे हैं। वहीं केंद्र ने कहा कि पैलेट गन का इस्तेमाल आखिरी विकल्प पर तौर पर किया जा रहा है किसी को मारना सुरक्षा बलों का उद्देश्य नहीं है।
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