देश में चुनाव सुधार, आर्थिक सुधार की चर्चा खूब सुनने को मिल जाती है, मगर मध्य प्रदेश में ‘नर्मदा नदी’ के सहारे हिंदू धर्म की परंपराओं और मान्यताओं में सुधार (रिलीजियस रिफॉर्म) का अनोखा अभियान गति पकड़ रहा है। इस अभियान के जरिए आस्था में डूबे लोगों को इस बात के लिए सहमत किया जा रहा है कि वे न तो नर्मदा नदी में जलदाग (शव को नदी में प्रवाहित करना) करें और न ही पूजन सामग्री प्रवाहित करें, ताकि आस्था का प्रतीक यह नदी प्रदूषण मुक्त रह सके।
राज्य में नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए जनजागृति लाने के मकसद से राज्य सरकार की तरफ से नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से ‘नमामि देवी नर्मदे’ सेवा यात्रा 11 दिसंबर को शुरू की गई, जो 11 मई, 2017 तक चलेगी। इस यात्रा में जन अभियान परिषद अहम भूमिका निभा रही है। परिषद सरकार का उपक्रम है।
144 दिवसीय यह यात्रा 3334 किलोमीटर का रास्ता तय करेगी। यह यात्रा नर्मदा नदी के तट पर बसे गांवों-शहरों तक पहुंचकर लोगों को नर्मदा नदी के प्रदूषित होने के कारण बता रही है और उन्हें वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नदी के दोनों तटों पर एक-एक किलोमीटर के दायरे में फलदार वृक्ष लगाने, गंदे नालों को नदी में मिलने से रोकने, दाह-संस्कार की प्रथा को रोकने, पूजन-सामग्री का प्रवाह न करने का आह्वान किया है।
“नमामि देवी नर्मदे” सेवा यात्रा में होशंगाबाद में आँवली घाट पड़ाव पर नर्मदा तट पर महाआरती का एक दृश्य।
शिवराज ने नर्मदा तट पर जलशुद्धिकरण संयंत्र लगाने, मुक्ति धाम स्थापित करने, पूजन सामग्री विसर्जन के लिए कुंड बनाने और सामग्री से जैविक खाद बनाने का संयंत्र लगाने का वादा किया है।
राज्य में नर्मदा नदी को जीवनदायनी माना जाता है। यह आमजन की आस्था का केंद्र भी है। यही कारण है कि तट पर बसे गांवों-शहरों के लोगों की हर सुबह की शुरुआत नर्मदा के दर्शन से होती है। इतना ही नहीं मान्यता है कि नर्मदा नदी में जलदाग से मोक्ष मिलता है, वहीं नदी की पूजा, सामग्री का अर्पण और दीपदान से पुण्य मिलता है। विशेष पर्वो पर स्नान के लिए नर्मदा तट पर लाखों लोग जुटते हैं।
निर्मोही अखाड़े से नाता रखने वाली, साईं शक्ति सेवा आश्रम की साध्वी प्रज्ञा भारती कहती हैं, “हिंदू धर्मावलंबियों की नर्मदा नदी के प्रति गहरी आस्था है। वे नर्मदा नदी में पूजन सामग्री को अर्पित करने को पुण्य मानते हैं। उनकी इस मानसिकता को बदलना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि वे इस बात से अनजान हैं कि यही सामग्री नर्मदा के प्रदूषण का कारण भी बनती है।”
वह आगे कहती हैं, “समय की मांग है कि अंधी श्रद्धा, पूजन सामग्री को नर्मदा में प्रवाहित करने से होने वाले नुकसान को बताया जा रहा है तो उनमें सकारात्मक बदलाव आ रहा है। परंपराओं में सुधार के लिए लोग सहज तैयार हो रहे हैं।”
नर्मदा सेवा यात्रा के प्रभारी विष्णु दत्त शर्मा का कहना है, “नर्मदा के प्रति लोगों में गहरी आस्था व श्रद्धा है, वे इसके संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। इसके लिए वे अपनी वर्षो पुरानी परंपराएं और मान्यताएं भी छोड़ने को तैयार हो रहे हैं। इसे हिंदू धर्म की मान्यताओं में सुधार के तौर पर भी देखा जा सकता है।”
धार्मिक मान्यताओं में सुधार का यह अभियान किस मुकाम तक पहुंचेगा, इसका अंदाजा लगाना अभी आसान नहीं है, क्योंकि धर्म कोई भी हो, जब भी उसकी पुरातन परंपराओं और मान्यताओं में कुछ बदलाव या सुधार (रिफॉर्म) की कोशिश की गई, तूफान खड़ा हुआ है।
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