जयपुर, 14 अगस्त (जस)। सामाजिक विकास और आर्थिक आत्मनिर्भरता पाने की दौड़ में मेवाड़ की जनजाति महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। बाजार की मांग के अनुरूप उत्पादन कर स्वावलम्बी बनने की दिशा में राजस्थान के उदयपुर जिले के जनजाति बहुल कोटड़ा क्षेत्र मेें वन विभाग की ओर से बने आदिवासी महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की पहचान दूर-दूर तक होने लगी है।
वन विभाग द्वारा स्थापित वन सुरक्षा समितियाँ वन संरक्षण, वन संवर्धन व वनोपज बढ़ाने के साथ ही आत्मनिर्भरता देने वाली गतिविधियों के माध्यम से घर-परिवार की माली हालत सुधारने से लेकर समृद्धि पाने तक के सफर को रफ्तार देने में जुटी हुई हैं। कोटड़ा पंचायत समिति के अंतर्गत देवला वन मण्डल रेंज की थामला बेरी वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति का महिला समूह पिछले दो वर्ष से अगरबत्ती उत्पादन के काम से बरकत पा रहा है। समूह में 25 महिलाएं हैं जिनमें राणी बाई अध्यक्ष, लछी बाई सचिव एवं मीरा कोषाध्यक्ष है।
इस समूह के पास अगरबत्ती निर्माण से संबंधित स्टिक, कटर, रोलर आदि अत्याधुनिक मशीनें हैं। कच्चा माल तैयार करने से लेकर सुगंधित अगरबत्ती को आकार देने तक का काम मशीनों के सहयोग से ये आदिवासी महिलाएं करती हैं। बरसात के 4 माह को छोड़कर शेष माहों में यह काम चलता रहता है। इसके लिए अहमदाबाद के अगरबत्ती व्यवसायी प्रवेश भाई से इस समूह का अनुबंध है। कच्चा माल-मसाला उनकी ओर से आता है व अगरबत्ती बनने के बाद वे थोक में इसे ले जाते हैं। इस अगरबत्ती को ‘वनराज’ ब्राण्ड नाम से जाना जाता है।
देश के विभिन्न राज्यों में इस अगरबत्ती की बिक्री होती है। इससे समूह की महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। अगरबत्ती बनाने वाली एक महिला की औसतन रोजाना आमदनी 225 से 250 रुपये हो जाती है। इसके निर्माण में गुगल, गोबर व कपूर के मिश्रण का इस्तेमाल होता है। वनपाल पदमसिंह झाला बताते हैं कि कोटड़ा क्षेत्र में घाटा गोखरू वन नाका से संबंधित यह समूह अग्रणी है।
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