अमृतसर, 4 दिसम्बर | एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में रविवार को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद को इस क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा बताया गया। इससे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए रविवार को स्पष्ट रूप से पड़ोसी देश को आतंक का अभयारण्य करार दिया। इसके साथ ही सीमा पार से हिंसा को लेकर भारत की चिंता को साझा किया।
यह भारत के लिए एक प्रमुख कूटनीतिक जीत है। 6ठे मंत्रिस्तरीय ‘हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन-इस्तानबुल प्रोसेस ऑन अफगानिस्तान’ में एक संयुक्त प्रस्ताव स्वीकार किया गया। इसमें कहा गया है कि जो अन्य आतंकी संगठन बहुत हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं, उनमें तालिबान, दाएस (इस्लामिक स्टेट) और उससे जुड़े संगठन, हक्कानी नेटवर्क, अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान हैं।”
इसे अमृतसर घोषणा-पत्र भी नाम दिया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि सम्मेलन में भाग लेने वाले देश और समूह क्षेत्र में सुरक्षा की गंभीर स्थिति को लेकर चिंतित हैं। साथ ही हर तरह के आतंकवाद और इसके लिए धन मुहैया कराने सहित सभी तरह की सहायता को तत्काल समाप्त करने की मांग की।
इससे पहले पाकिस्तान की सीमा से लगे भारत के राज्य में हुए इस सम्मेलन की शुरुआत में गनी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के शीर्ष राजनयिक सरताज अजीज की मौजूदगी में सम्मेलन को संबोधित किया।
गनी ने जहां स्पष्ट रूप से जोर देकर कहा कि पाकिस्तान उनके देश में सीमा पार से आतंक का स्रोत है, वहीं मोदी ने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन विश्व समुदाय से आतंकियों का समर्थन देने वालों, पनाह देने वालों, प्रशिक्षण देने वालों और धन देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति की कठोर टिप्पणी से अजीज स्तब्ध नजर आए।
गनी ने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने आतंकियों के खिलाफ सैन्य अभियान चुनिंदा ठिकानों पर चलाए। उन्होंने सवाल किया कि उनकी धरती पर आतंक का निर्यात रोकने के लिए क्या किया जा रहा है?
गनी ने कहा, “पाकिस्तान में सरकार प्रायोजित अभयारण्य मौजूद हैं। तालिबान के एक अधिकारी ने हाल में कहा था कि यदि पाकिस्तान में उन्हें सुरक्षित पनाहगाह न मिले तो वे एक माह भी नहीं टिके रह पाएंगे।”
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने युद्ध से तबाह अपने देश के पुननिर्माण के लिए 50 करोड़ डॉलर दान देने की पेशकश के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन पाकिस्तान के शीर्ष राजनयिक सरताज अजीज को संबोधित करते हुए कहा, “जनाब अजीज, मैं आशा करता हूं कि महोदय आप इसका इस्तेमाल पाकिस्तान में आतंकियों एवं चरमपंथियों से लड़ने के लिए करेंगे।”
उन्होंने कहा, “अफगानिस्तान में पिछले वर्ष सबसे अधिक संख्या में लोग हताहत हुए। यह अस्वीकार्य है। कुछ देश अब भी आतंकियों को सुरक्षित ठिकाना मुहैया करा रहे हैं।”
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान के खिलाफ गनी के जैसा कठोर रुख नहीं अपनाया।
मोदी ने कहा कि आतंकवाद को परास्त करने के लिए हम सभी को हर हाल में मजबूत सामूहिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी। उन्होंने कहा कि शांति का समर्थन करना पर्याप्त नहीं है। इसका कठोर कार्रवाई से समर्थन अनिवार्य है।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के खिलाफ और हमारे क्षेत्र में आतंकवाद पर चुप्पी से केवल आतंकियों और उनके आकाओं को प्रोत्साहन मिलेगा।
इसके जवाब में अजीज ने तमाम आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि क्षेत्र आतंकी हिंसा बढ़ने के लिए पाकिस्तान पर दोष मढ़ना उचित नहीं है।
हाल में हिंसा में हुई बढ़ोतरी के लिए केवल एक देश पर दोष मढ़ना एक पक्षीय है। हमें परोक्ष कारक एवं समग्र नजरिए से देखने की जरूरत है।
इस सम्मेलन में कुल 14 देशों के प्रतिनिधियों एवं 45 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका आयोजन अफगानिस्तान को उसके राजनीतिक एवं आर्थिक संक्रमण काल में मदद के रास्ते तलाशने के लिए किया गया था।
पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी टिप्पणी और घोषणा-पत्र में आतंकी संगठनों के नामों के उल्लेख को भारत के पाकिस्तान पर बनाए गए दबाव के रूप में देखा जा रहा है।
इसे पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।
इससे पहले अक्टूबर में ब्रिक्स सम्मेलन के गोवा घोषणा पत्र में आतंकी संगठनों का नाम शामिल करने के भारत के प्रयास को चीन ने नाकाम कर दिया था।
भारत का आरोप है कि लश्कर और जैश को पाकिस्तान सरकार और उसकी एजेंसियों से आर्थिक और अन्य सहायता मिलती है। इनका इस्तेमाल भारत में शांति भंग करने के लिए किया जाता है। पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है।
इससे पहले गनी ने अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत के बिना शर्त सहायता की सराहना की। उन्होंने कहा कि चाबाहार बंदरगाह का विस्तार भारत, ईरान और उनके देश के बीच क्षेत्रीय व्यापार और संपर्क के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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