भारत ने पाकिस्तान की ओर बहने वाले अपने हिस्से के नदी जल को रोकने का फैसला किया है।
यह याद रखने की बात है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा 2016 में उरी में सीआरपीएफ शिविर पर हमले के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘‘रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते’।
जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट की एक श्रृंखला में कही और कहा कि भारत सरकार पूर्वी नदियों के पानी को डायवर्ट करके जम्मू और कश्मीर तथा पंजाब में लोगों को पानी की आपूर्ति करेगी।
सिंधु जल संधि के अनुसार, कुछ शर्तों के अधीन भारत के पास पूर्वी नदियों अर्थात् ब्यास, रावी और सतलज में बहने वाले पानी का उपयोग करने का अधिकार है।
पाकिस्तान पश्चिमी नदियों के पानी के उपयोग के अधिकार को नियंत्रित करता है। ये नदियां हैं सिंधु, झेलम और चिनाब।
गडकरी ने यह भी कहा कि रावी नदी पर शाहपुर-कंडी में बांध का निर्माण शुरू हो गया है और उज्ह परियोजना जम्मू और कश्मीर में उपयोग के लिए भारत के हिस्से का पानी संग्रहित करेगी और पानी उपलब्ध कराने के लिए दूसरी रावी, ब्यास लिंक से शेष पानी अन्य बेसिन राज्यों को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि इन सभी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया है।
कुल 168 मिलियन एकड़ फीट में, तीन नदियों के पानी का भारत का हिस्सा 33 मिलियन एकड़ फीट है, जो लगभग 20 प्रतिशत है।
भारत सिंधु जल संधि के तहत अपने हिस्से का करीब 93-94 फीसदी हिस्सा इस्तेमाल करता है। बाकी पानी अप्रयुक्त है और पाकिस्तान में बहता है।
यह वह पानी है जिसे भारत ने रोकने का फैसला किया है।
विश्व बैंक की मध्यस्थता में सन् 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत जिस पर भारत और पाकिस्तान , दोनों देशों ने हस्ताक्षर किये हैं –उसके अनुसार . भारत का सतलजए ब्यास और रावी नदियों के पानी पर नियंत्रण है। वहीं झेलम, चिनाब और सिंधु नदियों के पानी river water पर पाकिस्तान का नियंत्रण है।
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