पिछले साल अप्रैल में बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने दोहराया था कि भारत का 2020 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसे पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन इंडियास्पेंड का विश्लेषण दिखाता है कि कमजोर अवसंरचना और सस्ते वित्तीय सहायता के अभाव में सौर ऊर्जा में विस्तार करना चुनौतीपूर्ण है।
इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को अगले छह सालों में निश्चित रूप से 130.76 गीगावॉट सालाना स्थापित करना होगा, जोकि साल 2016 में स्थापित की गई क्षमता का तीन गुणा है।
भारत के लिए इस लक्ष्य को पाना ग्लोबल वार्मिग को कम करने के लिए बेहद जरूरी है। साल 2100 तक धरती का तापमान औसतन 1.8 डिग्री सेल्सियस से लेकर 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।
2015 में पेरिस समझौते के माध्यम से साल 2100 तक धरती के तापमान में 2 डिग्री की कमी करने पर वैश्विक सहमति बनी थी। करीब 162 देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान का इरादा (आईएनडीसी) दाखिल किया। इन देशों में भारत भी शामिल है। समझौते के दस्तावेजों में ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए इन देशों को विभिन्न कदम उठाने के उपाय वर्णित थे।
आईएनडीसी के हिस्से के तौर पर भारत ने 2030 तक अपनी कुल बिजली का 40 फीसदी गैर जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2016 में भारत की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा का योगदान 15 फीसदी था, जबकि अगस्त 2015 में यह 13.1 फीसदी था।
सिंपा एनर्जी नेटवर्क छोटे ऊर्जा ग्रिड बनाती है, जिससे कुछ घरों या गांवों को बिजली की आपूर्ति की जाती है। इसके मुख्य वित्तीय अधिकारी पीयूष माथुर का कहना है, “अब ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हो रहे हैं कि घर में बिना ग्रिड से कनेक्ट हुए भी वैकल्पिक स्रोतों से बिजली की आपूर्ति की जा सकती है।”
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करनेवाली कनाडा की गैरलाभकारी संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की बिजली क्षेत्र की विशेषज्ञ विभूति गर्ग का कहना है, “भारत का अक्षय ऊर्जा लक्ष्य अत्यधिक आशावादी है, जबकि यर्थाथपरक नहीं है।”
अमेरिका के राष्ट्रीय पर्यावरण कार्यक्रम पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय गैरलाभकारी संस्था रिन्यूएबल पॉलिसी नेटवर्क की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत का 2022 का लक्ष्य साल 2015 के दुनिया के कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता का 22 फीसदी यानी 785 गीगावॉट है। इनमें जल विद्युत परियोजनाएं शामिल नहीं हैं।
अमेरिका की एनर्जी रिसर्च एंड कम्यूनिकेशन फर्म ‘मर्कम कैपिटल ग्रुप’ की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 की आखिरी तिमाही में सरकार ने अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई परियोजनाओं की निविदा जारी की थी।
अमेरिकी की ही शोध संस्था इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी, इकोनॉमिक्स और फाइनेंसियल एनालिसिल (आईईईएफए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में भारत ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में 10.2 अरब डॉलर का सार्वजनिक-निजी निवेश किया है, जोकि देश की सालाना जरूरत का महज एक तिहाई हिस्सा है।
लंदन की एनर्जी कंस्लटेंसी ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (बीएनइएफ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को अगले छह सालों में अक्षय ऊर्जा में 100 अरब डॉलर निवेश करने की जरूरत है।
नई दिल्ली की एक शोध संस्था काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी अभिषेक जैन का कहना है, “सबसे बड़ी रुकावट वित्त पोषण है। अगर वित्त पोषण प्राप्त कर लिया जाता है तो लक्ष्य भी प्राप्त हो जाएगा।”
सरकार की एक अधिसूचना के मुताबिक, सरकार ने 2016 के अक्षय ऊर्जा निवेश सम्मेलन को अनिश्चितकाल के लिए रद्द कर दिया है, जिसमें नवीन ऊर्जा के डेवलपर और वित्त पोषक हिस्सा लेनेवाले थे।
यह इसलिए रद्द किया गया, क्योंकि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियां अपने प्रतिबद्ध लक्ष्यों को पूरा करने से बहुत दूर हैं। एक सरकारी अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर इंडियास्पेंड को बताया कि सरकार ने इसे इसलिए रद्द किया कि उसे तैयारियों के लिए अधिक समय की जरूरत है।
पूणे की सुजलान समूह ने भारत में 9.8 गीगावॉट का पवन ऊर्जा संयंत्र लगाया है। इसके अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तुलसी तांती का कहना है, “भारतीय अक्षय ऊर्जा स्त्रोत को वित्त पोषण आमंत्रित करने के लिए आर्कषक बनाने की जरूरत है। बैंक और वित्तीय संस्थान अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का कम से कम 20 फीसदी अनुदान दे सकते हैं (वे 20-25 साल की अवधि वाला दीर्घकालिक ऋण मुहैया करा सकते हैं)।”
कंस्लटिंग फर्म इक्विटोरियल के मैनेजिंग पार्टनर जय शारदा का कहना है, “पूंजीगत व्यय के लिए ऋण और इक्विटी की लागत को कम करने से सौर ऊर्जा क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी।” उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा का क्षेत्र पूंजी प्रधान उद्योग है और संयंत्र स्थापित करने की शुरुआती लागत काफी अधिक है, इसलिए सौर ऊर्जा की लागत बढ़ी है।
मर्कम कैपिटल की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके अलावा बिजली वितरण कंपनियां हमेशा समय पर भुगतान नहीं करती हैं। तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के द्वारा भुगतान में देरी बहुत ही सामान्य है।
गर्ग का कहना है, “पवन और सौर ऊर्जा से मिलने वाली ऊर्जा निरंतर नहीं होती है। हमें पता नहीं होता कि किस वक्त कितनी ऊर्जा उपलब्ध होगा। उदाहरण के लिए अगर तीन दिन तक लगातार बारिश हो जाए तो?”
वे कहते हैं कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त ऊर्जा भंडारण क्षमता नहीं है।
एक तरीका यह है कि जब अक्षय ऊर्जा की अधिकता हो तो उसे संग्रहित कर लिए जाए। लेकिन इसके उपकरण अत्यधिक महंगे हैं।
दूसरी चुनौती यह है कि देश के बिजली ग्रिड में यह क्षमता होनी चाहिए कि जब अक्षय ऊर्जा में व्यवधान हो तो उस दौरान वे उसकी कमी अन्य स्थानों से प्राप्त बिजली से पूरी कर सके। साथ ही ग्रिड की क्षमता ऐसी होनी चाहिए कि एक क्षेत्र में बिजली की कमी और दूसरे क्षेत्र की बिजली की अधिकता से दूर किया जा सके।
साल 2012 में सरकार ने घोषणा की थी कि वह 38,000 करोड़ रुपए की लागत से ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर की स्थापना करेगी और इसके 2019 में पूरा होने की उम्मीद है। – श्रेया शाह
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये इंडियास्पेंड के निजी विचार हैं)
Follow @JansamacharNews