बीजिंग, 21 अप्रैल। चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि अगर भारत ने चीन के खिलाफ ‘दलाई लामा कार्ड’ खेलना जारी रखा तो उसे इसकी ‘महंगी’ कीमत चुकानी होगी। लेख में कहा गया है, “भारत के लिए दलाई लामा कार्ड खेलना कभी भी बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं रहा है। अगर भारत इस छोटे खेल को जारी रखना चाहता है तो अंत में उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।”
फोटो : तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा 9 अप्रैल, 2017 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग स्थित उर्गेलिंग मठ में। (फोटो: आईएएनएस)
इससे पहले चीन ने भारत को चेताया था कि अरुणाचल में दलाई लामा का आना दोनों देशों के बीच रिश्तों को नुकसान पहुंचा सकता है। चीन ने 81 साल के तिब्बती नेता को एक खतरनाक अलगाववादी बताया है जो तिब्बत को चीन से दूर करना चाहता है। वहीं भारत दोहराता आया है कि दलाई लामा के इस दौरे का मकसद धार्मिक एकता के मद्देनज़र था और इसका कोई राजनीतिक मतलब न निकाला जाए। भारत ने जोर देते हुए यह भी कहा कि चीन का भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
आई जुन नाम के टिप्पणीकार के इस लेख में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों के नामों को चीनी नाम देने का भी जिक्र किया गया है। अरुणाचल प्रदेश के छह इलाकों के नाम बदलने के अपने फैसले पर चीन ने कहा है कि ऐसा करना उसका ‘कानूनी अधिकार’ है। चीन का दावा है कि वह नाम बदल सकता है क्योंकि इस राज्य का एक हिस्सा ‘दक्षिणी तिब्बत’ है। हालांकि भारत सालों से पड़ोसी देश के इस दावे को नकारता आ रहा है।
लेखक ने लिखा है, “भारत के साथ सीमा विवाद संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए चीन प्रयास कर रहा है। लेकिन, बीते कुछ दशकों से भारत ने विवादित क्षेत्रों में केवल आव्रजन बढ़ाया है और सैन्य निर्माण किए हैं।”
लेख में कहा गया है कि दलाई लामा कार्ड का इस्तेमाल भी भारत द्वारा बाद के समय में खेली गई नई चाल है। नई दिल्ली इतनी सीधे तरीके से मान लेती है कि यह इलाका उसका है क्योंकि दलाई लामा ऐसा कहते हैं।
लेखक का कहना है कि भारत अपनी जिद में इतना फंस गया है कि वह चीन की ताकत का अनुमान नहीं लगा पा रहा है। लेकिन, सीमा विवाद जैसे मुद्दे इस तथ्य से नहीं निपटते कि कौन पक्ष ताकत रखता है और कौन नहीं। नहीं तो, कोई जरूरत न होती कि चीन, भारत के साथ वार्ता की मेज पर बैठता।
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