genome sequencing

भारतीय वैज्ञानिकों ने नोवेल कोरोनावायरस जीनोम सीक्वेंसिंग पर काम शुरू किया

भारतीय वैज्ञानिकों ने नोवेल कोरोनावायरस (COVID-19) जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) पर काम शुरू कर दिया है।

नोवेल कोरोनावायरस एक नया वायरस है और अनुसंधानकर्ता इसके विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास कर रहे हैं।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान केंद्र (CSIR) के दो संस्थान सेंटर आफ सेलुलर एंड मोलेकुलर बायोलोजी (Centre for Cellular & Molecular Biology) हैदराबाद और इंस्टीच्यूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलोजी (आईजीआईबी), नई दिल्ली ने नोवेल कोरोनावायरस (COVID-19) जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing)  पर एक साथ मिल कर काम करना आरंभ कर दिया है।

सीसीएमबी (CCMB) के निदेशक डा. राकेश मिश्र ने इंडिया साईंस वायर, डीएसटी की वरिष्ठ वैज्ञानिक ज्योति शर्मा के साथ बात करते हुए कहा, ‘ यह हमें वायरस के इवोलुशन, यह कितना डायनैमिक है और कितनी जल्द यह इमिटेट करता है, को समझने को सहायक होगा।

नोवेल कोरोनावायरस (COVID-19) जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) अध्ययन हमें यह जानने में सहायता करेगा कि कितनी जल्द यह इवोल्व करता है और इसके भविष्य के क्या पहलू हो सकते हैं। ‘

समग्र जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) किसी विशिष्ट आर्गेनिज्म के जीनोम के संपूर्ण डीएनए सीक्वेंस को निर्धारित करने के लिए प्रयुक्त प्रणाली है।

Image courtesy : CSIR-CCMB Research Facilities

नवीनतम कोरोनावायरस (Novel coronavirus) के समग्र जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) के दृष्टिकोण में उन रोगियों से नमूना लेना, जो पोजिटिव पाए जाते हैं और इन नमूनों को किसी सीक्वेंसिंग केंद्र में भेजना शामिल है।

समग्र जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) के अध्ययन के लिए बहुत बड़ी संख्या में नमूनों की आवश्यकता होती है।

डा. मिश्र ने कहा कि  ‘ बिना अधिक आंकड़ों के आप ऐसे निष्कर्ष निकाल सकते हैं जो सही नहीं हो सकते हैं।

वर्तमान में हम अधिक से अधिक सीक्वेंसिंग जमा कर रहे हैं और जैसे ही हमारे पास कुछ सौ सेक्वेंसिंग हो जाएंगे, हम इस वायरस के कई जैविक पहलुओं से कई निष्कर्ष निकालने में सफल हो जाएंगे। ‘

प्रत्यक संस्थान के तीन से चार लोग लगातार समग्र जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) पर कार्य कर रहे हैं। अगले तीन से चार सप्ताहों में अनुसंधानकर्ता कम से कम 200-300 आइसोलेट्स प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे और यह जानकारी हमें इस वायरस के व्यवहार के बारे में कुछ और निष्कर्ष बताने में सहायक होगी।

इस प्रयोजन के लिए नेशनल इंस्टीच्यूट आफ विरोलोजी (एनआईवी), पुणे से भी आग्रह किया गया है कि हमें ऐसे वायरस दें जिन्हें विभिन्न स्थानों से आईसोलेट किया गया है।

यह वैज्ञानिकों को संपूर्ण देश को कवर करने के लिए एक बड़ी और अधिक स्पष्ट तस्वीर उपलब्ध कराने में मदद करेगी।

डा. मिश्र ने कहा कि इसके आधार पर वे अध्ययन कर सकते है कि यह वायरस कहां से आया है, किस स्ट्रेन में अधिक समानता, विविध म्युटेशन है और कौन सा स्ट्रेन कमजोर है और कौन सा स्ट्रेन मजबूत है।

उन्होंने कहा कि, ‘ यह हमें इसे समझने और बेहतर आइसोलेशन रणनीतियों को कार्यान्वित करने का कुछ कार्यनीतिक सूत्र देगा। ‘

इसके अतिरिक्त, इस संस्थान ने परीक्षण क्षमता में भी वृद्धि की है। बड़ी संख्या में लोग जांच करवा रहे हैं और वे सामूहिक स्क्रीनिंग करवाएंगे। यह उन्हें पोजिटिव मामलों की संख्या की पहचान करने एवं उन्हें आइसोलेशन या क्वारंटाइन के लिए भेजने में सहायक होगा।