भारतीय सुरक्षा चुनौतियां परंपरागत सीमाओं से परे : प्रणब

चेन्नई, 10 सितंबर | राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यहां शनिवार को कहा कि भारत के समक्ष परंपरागत सीमाओं और परंपरागत खतरों से परे जाने की चुनौतियां हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 21वीं सदी में राज्य और गैर-राज्य के कार्यकर्ताओं को अराजकता और विषमता में शामिल देखा गया।

ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी की ग्रीष्मकालीन पासिंग आउट परेड की समीक्षा के बाद मुखर्जी ने कहा, “वास्तव में हमारे समक्ष चुनौतियां अंतराष्ट्रीय क्षेत्र में परंपरागत सीमाओं और परंपरागत खतरों से परे जाने की है।”

आगे उन्होंने कहा, “दुनिया के अस्थिर क्षेत्र, ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे और समुद्री मार्गो की सुरक्षा आदि व्यापक दायरे में शामिल हैं।

राष्ट्रपति के अनुसार, समय-समय पर और आतंरिक संकट के समय फिर से देश को मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों रूप से सशस्त्र बलों की जरूरत पड़ी।

राष्ट्रपति का कहना है कि इन सारी चुनौतियों को देखते हुए एक सक्षम और सशस्त्र बल की मांग है, जो स्थिरता और शांति को सुनिश्चित कर सके। यह देश के नागरिकों को शांति और समृद्धि के पथ पर ले जाने के लिए महत्वपूर्ण है।

मुखर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को युवा पुरुषों और महिलाओं की जरूरत हैं, जो जल से संबंधित परेशानियों को देखते हुए बगैर थके देश की खातिर अपने जीवन को खतरे में डालते हुए नौपरिवहन की चुनौतियों का सामना कर सकें।

मुखर्जी ने कहा कि भारतीय सेना अंतिम उपाय के साधन का प्रतिनिधत्व करता है। उन्होंने कहा कि हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि महान और शक्तिशाली सेना झूठी ताकत का दिखावा करने से परिपूर्ण नहीं होती है।

उन्होंने यह भी कहा कि दुर्गम लड़ाई के समय एक अरब से ज्यादा उम्मीदें युवा और बहादुर कंधों पर टिकी थीं।

मुखर्जी ने मित्र देशों अफगानिस्तान, भूटान, फिजी, पापुआ न्यू गिनी और लेसोथो के ऑफिसर कैडेट को देखकर खुशी का इजहार किया।       –आईएएनएस