भोपाल, 13 नवंबर | पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा है कि “भारतीय संस्कृति में अर्थ चिंतन का आधार अथार्याम अर्थात संतुलन है। जरूरत से ज्यादा भी नहीं और आवश्यकता से कम भी नहीं।” यहां चल रहे ‘लोक-मंथन’ के दूसरे दिन रविवार को ‘नव-उदारीकरण और भूमंडलीकरण के दौर में राष्ट्रीयता’ विषय पर आयोजित सामूहिक सत्र को संबोधित करते हुए जोशी ने कहा, “भारत की राष्ट्रीयता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की पोषक है, जबकि वैश्वीकरण केवल आर्थिक चिंतन है। दोनों में भेद तो है किन्तु समन्वय की जरूरत भी है।”
डॉ. जोशी ने आगे कहा, “कहा जा रहा है कि वैश्वीकरण गरीब और गरीब देशों के लिए नहीं है। इसके मूल में भी पश्चिमी चिंतन है कि चेतन अचेतन का शोषण कर सकता है। भारतीय संस्कृति में अर्थ चिंतन का आधार अथार्याम है अर्थात संतुलन। जरूरत से ज्यादा भी नहीं और आवश्यकता से कम भी नहीं।”
उन्होंने कहा, “पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हम पर भी हो रहा है। परिवार हमारी मूल संस्था है, इसका टूटना विश्व का टूटना है। समृद्धि से शांति नहीं मिलती, इसका संतुलन भारत से समझना होगा। पश्चिम को केवल बाजार चाहिए। हमें परिवार भी चाहिए, बाजार भी चाहिए।” –आईएएनएस
(फाइल फोटो)
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