देहरादून, 05 मई (जनसमा)। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, देहरादून के सत्र 2015-17 के भारतीय वन सेवा परिवीक्षार्थियों का दीक्षान्त समारोह शुक्रवार को वन अनुसंधान संस्थान के दीक्षान्त गृह में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समारोह के मुख्य अतिथि जबकि उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ. कृष्णकांत पाल व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रशिक्षु अधिकारियों को उनकी सफलता पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी द्वारा युवा अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण भविष्य में उनके सामने आने वाली कठिन चुनौतियों के लिए तैयार करता है। उन्होंने भारत में वानिकी प्रबंधन और प्रशिक्षण के इतिहास की ओर झांकते हुए अतीत और वर्तमान के संदर्भ में वानिकी संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने संरक्षण और विकास के बीच समन्वय कायम करने पर बल दिया क्योंकि ये दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि लगभग 30 वर्ष पहले की तुलना में वर्तमान में देश के वनावरण में बढ़ोत्तरी हुई है।
उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ. कृष्णकांत पाल ने नए वन अधिकारियों को अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उत्तराखण्ड देश के सबसे समृद्ध वन क्षेत्रों में से एक है और राज्य की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका और निर्बाह के लिए पूर्णतः वनों पर ही निर्भर है। राज्य के सामने पहली चुनौती यह है कि वनों को फिर से उगाने और उनके संरक्षण में भागीदारी के लिए लोगों को तैयार किया जाए, तभी वनों का स्थाई प्रबंधन संभव है। ‘‘चिपको आंदोलन’’ उत्तराखण्ड में ही शुरू हुआ था जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व प्रसिद्ध है। हमें अभी भी कई पक्षों पर ध्यान देना होगा ताकि समृद्ध जैवविविधता से लाभ उठाया जा सके।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने संबोधन में नए अधिकारियों को बधाई देते हुए कहा कि हमारे देश में वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन दुनिया की सबसे पुरानी व्यवस्थाओं में से एक है और आज से आप सभी इस ऐतिहासिक उपलब्धि का एक हिस्सा बनने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आने वाला समय नए विचारों को अपनाने और नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों, प्राकृतिक वातावण और पारम्परिक संस्कृति के संरक्षण का समय है। उन्होंने इन अधिकारियों को चेताया कि उनका कैरियर काफी चुनौतीपूर्ण है उन्हें याद रखना चाहिए कि वैज्ञानिक और विकास सम्बन्धी गतिविधियों के नाम पर पर्यावरण व वनों की अनदेखी न हो और सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त हो सके।
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