दिगंबर जैन मुनि स्व. तरुण सागर जी का जन्म मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक छोटे से गांव गुहाची में 26 जून 1967 को हुआ था। उनके पिता थे पवन कुमार जैन और माता का नाम था श्रीमती शांति बाई जैन।
तरुण सागर जी का देहांत 1 सितंबर, 2018 को 51 साल की आयु में दिल्ली में हुआ।
वह 18 मार्च 2017 को इण्डिया टीवी के रजत शर्मा द्वारा आयोजित टॉक शो ‘आप की अदालत में’ भी गए थे, जहां उन्होंने खुलासा किया कि बचपन में उन्हें जलेबी बहुत पसंद थी।
उन्होंने शो में रजत शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि एक बार बचपन में उन्होंने सड़क से गुजरते हुए एक आवाज सुनी ‘तुम भी भगवान बन सकते हो’। यह आवाज थी दिगंबर जैन मुनि पुष्पंत सागरजी की।
इन शब्दों को सुनने के बाद तरुण सागर जी ने अपना घर छोड़ दिया।
Photo courtesy YouTube
तरुण सागर जी 13 साल की उम्र में घर बार छोड़ कर जैन मुनि बन गए थे । उन्होंने 20 जुलाई 1988 को उन्हें राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बागीडोरा में आचार्य पुष्पदंत सागर जी ने दिगंबर जैन भिक्षु की दीक्षा दी।
दीक्षा के समय उनकी आयु 20 साल थी।
मुनि तरुण सागर जी के व्याख्यान को ‘कडव प्रवाचन’ कहा जाता है क्योंकि वे सामान्य प्रथाओं और विचारों की अपनी दृष्टि से आलोचनात्मक व्याख्या करते थे। वह स्पष्ट वक्ता के रूप में जाने जाते थे।
उनके व्याख्यानों को पुस्तक श्रृंखला के रूप में आठ खंडों में प्रकाशित किया गया है जिसका शीर्षक है कडवे प्रवाचन ।
वह अपने प्रवचनों में उन बातों और मुद्दों को संबोधित करते थे, जिनसे आम तौर पर अन्य जैन मुनि बचते हैं।
देश के अनेक भागों में अपने प्रवचनों में हिंसा, भ्रष्टाचार और रूढ़िवाद की आलोचना करने के कारण वह प्रगतिशील जैन भिक्षु के रूप में लोकप्रिय हो रहे थे।
जयपुर के वरिष्ठ जैन विद्वान और पत्रकार प्रवीण चंद्र छाबड़ा के शब्दों में उन्होंने महावीर के वचनों और विचारों को मंदिरों से बाहर निकालकर जन जन के बीच प्रवाहित किया था।
छाबड़ा जी के अनुसार कुछ सालों पहले जब मुनि तरुण सागर जी जयपुर गए तो उन्होंने जयपुर में माणक चौक में आयोजित एक सभा में कहा था कि मैं महावीर को मंदिर से निकाल कर चौराहे पर लाना चाहता हूं।
उनका तात्पर्य था कि महावीर के विचारों का अधिक से अधिक प्रचार करना किन्तु उनके स्पष्ट कथन पर कुछ विवाद भी हुआ था।
तरुण सागर जी का कहना था कि महावीर केवल मंदिरों के लिए नहीं, आम आदमियों के लिए भी हैं।
छाबड़ा जी के अनुसार मुनि तरुण सागर जी सन् 2013 में 15 से 20 दिसंबर के बीच जयपुर में चूलगिरी के जैन मंदिर में रहे थे।
एक प्रकार से वह वहां साधना में थे और सामान्य मुलाकातों से बहुत कम रुचि रखते थे। उन्हें निजी तौर पर मिलना-जुलना अधिक पसंद नहीं था और वह अपने अध्ययन में व्यस्त रहते थे।
छाबड़ा जी के अनुसार मुनि श्री को सार्वजनिक तौर पर बात करने में आनंद आता था किंतु वह व्यक्तिगत बात में अधिक रुचि नहीं लेते थे। कहा जाता है कि साधु चर्या के मामले में भी वह बिल्कुल अलग थे।
वह समाज में सुधार के लिए प्रयत्नशील थे और समाज को व्यसन मुक्त करना चाहते थे।
Follow @JansamacharNews