===मनोज पाठक===
पटना, 28 अगस्त | पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संपूर्ण विश्व में शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में पहचान बनाने वाले नालंदा विश्वविद्यालय को पुनजीर्वित करने की परिकल्पना अब हकीकत बन गई। बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में शनिवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 12 छात्रों को सम्मानित किया।
इस विश्वविद्यालय की कल्पना का श्रेय पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को जाता है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में इसकी चर्चा करते हुए भी कहा, “आज भले ही नालंदा विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह का आयोजन हो रहा हो परंतु इसके पुनर्जीवित करने की परिकल्पना का श्रेय कलाम साहब को जाता है।”
28 मार्च 2006 को कलाम ने अपने बिहार दौरे के क्रम में प्राचीन विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की सलाह दी थी। यह विचार उन्होंने बिहार विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए रखा था।
कई सदी पूर्व बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय पूरी दुनिया के शिक्षा और ज्ञान का केंद्र था। पांचवीं सदी में एशिया के विभिन्न इलाकों के छात्र इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते थे, मगर बाद में इसे हमलावरों ने नष्ट कर दिया था।
विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर डॉ. गोपा सबरवाल कहती हैं कि इस विश्वविद्यालय में वर्ष 2014 में पढ़ाई प्रारंभ हुई थी। वर्तमान समय में यह विश्वविद्यालय एक सरकारी भवन में चलाया जा रहा है। प्रारंभ में यहां इतिहास और पर्यावरण विज्ञान विषयों की पढ़ाई हो रही थी। वर्तमान सत्र में एक नया विषय बौद्व अध्ययन, दर्शन और तुलनात्मक धर्मों की पढ़ाई प्रारंभ की गई है।
उन्होंने बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय के पहले सत्र में तीन देशों के 12 छात्र थे, जबकि वर्तमान सत्र में 13 से अधिक देशों के 130 छात्र-छात्राएं हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यहां आठ से ज्यादा विषयों की पढ़ाई होगी और 1600 छात्र नामांकित हांेगे।
विश्वविद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य लॉर्ड मेघनाथ देसाई भी कहते हैं कि इस विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह केवल एक समारोह नहीं बल्कि पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का पुर्नजन्म है। उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं कई देश इस विश्वविद्यालय के साथ हैं।
उन्होंने कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि यह विश्वविद्यालय पूरे देश के शिक्षण संसथानों में अव्वल होगा, बल्कि यह भारत की पहचान पूरे विश्व में देगा।”
विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि बिहार सरकार द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के भवन के लिए प्रस्तावित 446 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई गई है, जिसमें चाहरदीवारी बनाने का कार्य लगभग पूरा हो गया है। जल्द ही भवन बनाने के लिए भी कार्य प्रारंभ होगा। विश्वविद्यालय के भवन निर्माण का कार्य 2021 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
दीक्षांत समारोह में भाग लेने आए राष्ट्रपति ने राजगीर के पिल्खी गांव में इस विश्वविद्यालय के स्थाई परिसर की आधारशिला भी रखी।
गौरतलब है कि प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर से करीब 10 किलोमीटर दूर राजगीर में बनाए जा रहे इस विश्वविद्यालय के निर्माण की योजना की घोषणा वर्ष 2006 में भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड ने संयुक्त रूप से किया था और बाद में यूरोपीय संघ के देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है।
विश्वविद्यालय के आसपास के करीब 200 गांवों के भी विकास की योजना बनाई गई है।
गौरतलब है कि पांचवीं सदी में बने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों चीन, कोरिया, जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी सातवीं सदी में नालंदा में शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने अपनी किताबों में नालंदा के विश्वविद्यालय की भव्यता का जिक्र किया है।
माना जाता है कि प्राचीन काल में नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था, परंतु 1200 ई. में बख्तियारपुर खिलजी के आक्रमण के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय पूर्णत: धरती के गर्भ में समा गई।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने हाल ही में पर्यटक एवं एतिहासिक स्थल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर को विश्व धरोहर (वल्र्ड हेरिटेज साइट) में शामिल किया है।
Follow @JansamacharNews