उज्जैन, 12 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के दुर्दांत अपराधी और मोस्ट वांटेड विकास दुबे (Vikas Dubey) को जब महाकाल मंदिर में पकड़ा गया तब उसके बारे में एसपी मनोजकुमारसिंह ने स्वयं आईजी कानपुर से चर्चा करके पुष्टि की थी। पुष्टि होने के बाद कानपुर आईजी ने एक पत्र ई-मेल किया। उसमें स्पष्ट रूप से लिखा हुआ था कि विकास दुबे (Vikas Dubey) को उन्हें पुलिस अभिरक्षा में सौंपा जाए। इसलिए उसे गिरफ्तार न करते हुए पंचनामा बनाया गया और दस्तावेजी कार्रवाई के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस को सौंपा गया।
उज्जैन एसपी के अनुसार, हमारे पास आईजी कानपुर का ई-मेल से आया पत्र सुरक्षित है। इस पत्र में उन्होंने विकास दुबे (Vikas Dubey) द्वारा किए गए अपराध क्रं.,दिनांक आदि का जिक्र करते हुए उस पर 5 लाख रुपये के इनाम की भी जानकारी दी थी। यह भी लिखा था कि वह मोस्ट वांटेड है। उत्तर प्रदेश पुलिस उसे लेने आ रही है। अत: उसे अभिरक्षा में सुरक्षित रखें और उत्तर प्रदेश पुलिस के आने पर सौप दें। उन्होंने बताया कि इस आधार पर विकास दुबे (Vikas Dubey)को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया था। उससे कोई ऐसी पूछताछ नहीं की गई जो उत्तर प्रदेश पुलिस के दायरे में आती थी। उससे इतना जरूर पूछा गया कि वह उज्जैन कैसे आया और मंदिर तक कैसे पहुंचा। इस दौरान किस-किससे मिला?
विकास दुबे (Vikas Dubey) ने जो बताया,उसकी पुष्टि हो चुकी है। अब सारा मामला उत्तर प्रदेश पुलिस का है। उज्जैन पुलिस का काम पूरा हो गया है। जो भी जानकारियां एकत्रित की गई थीं,वह उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ साझा कर दी गई है। एसपी ने बताया कि विकास दुबे (Vikas Dubey) चूंकि खतरनाक अपराधी था,अत: यह बात हमारे सामने भी थी कि कहीं वह चकमा देकर भागने की कोशिश न करे अथवा हमलावर न बन जाए। इसीलिए हमारे जितने अधिकारी-जवान उसे छोडऩे उत्तर प्रदेश की बार्डर के बायपास तक गए,सभी ने बुलेट प्रूफ जैकेट पहन रखी थी और सभी के पास इंसास रायफल थी। चूंकि वह चुपचाप बैठा रहा और उसने किसी प्रकार की कोई हरकत नहीं की,इसके चलते वह सुरक्षित उत्तर प्रदेश पुलिस के हाथों सौंप दिया गया। हमारी कागजी कार्रवाई दुरस्त है और आईजी,कानपुर का ई-मेल से आया पत्र भी सुरक्षित है। अत: हमारे द्वारा गिर$फ्तारी का सवाल ही नहीं उठता।
यह कहना है सेवानिवृत्त आईपीएस का
एक बड़े आहदे से सेवानिवृत्त आईपीएस ने अपना नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर दावा किया कि उज्जैन पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती थी, उसके अनेक कारण सामने थे। यदि कानपुर आईजी का ई-मेल पत्र आया और उन्होने अभिरक्षा में ही सौपने की बात कही,तो स्पष्ट है कि ऐसा होने पर उसे उज्जैन न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था। यह अलग बात है कि कानपुर आयजी ने उसे अभिरक्षा में क्यों मांगा? सामान्य मामलों में गिरफ्तारी होती है और न्यायालय में पेश किया जाता है। उसके बाद न्यायालय से संबंधित पुलिस उसे सौपने की मांग करती है। ऐसा होने पर उसकी सुरक्षा की पूरी गारंटी भी संबंधित पुलिस की ही होती है। चूंकि वह अभिरक्षा में रखा गया और उत्तर प्रदेश पुलिस को सौंपा गया, ऐसे में 24 घण्टे के भीतर उसे न्यायालय में उत्तर प्रदेश पुलिस को प्रस्तुत करना था। सुबह 7 से 9 के बीच उसे उज्जैन पुलिस ने अभिरक्षा में लिया था। ऐसे में अगली सुबह इसी समय के दौरान उसे पेश करना होता।
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