रायपुर, 5 फरवरी | छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध कवर्धा स्थित प्राचीन ‘भोरमदेव मंदिर’ की चूहों ने हालत पतली कर दी है। मंदिर परिसर में चूहों द्वारा लगातार बिल बनाते चले जाने से इसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। वहीं पिछले वर्ष पुरातत्व विभाग की टीम ने मंदिर परिसर का सर्वे करने के बाद इसके 20.25 डिग्री तक झुकने की आशंका जताई थी।
भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 किमी दूर और राजधानी रायपुर से 125 किलोमीटर दूर चौरागांव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है।
टीम का कहना है कि यदि समय रहते हालात नहीं सुधारे गए तो छत्तीसगढ़ का यह खजुराहो तीन साल में ढह सकता है।
मंदिर की वस्तुस्थिति जानने पिछले दिनों भोरमदेव पहुंचे छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के संचालक आशुतोष मिश्रा ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाए जा रहे चावल व पानी के कारण मंदिर की नींव कमजोर हो रही है। भीगे चावल के लालच में यहां चूहे भी बिल बनाने लगे हैं।
मिश्रा का कहना है कि इंडियन ब्यूरो ऑफ रिसर्च एंड इन्वेस्टीगेशन (आरबीआरआई) से मंदिर की जांच से पता चलेगा कि भोरमदेव मंदिर की वर्तमान स्थिति क्या है, जमीन में नींव धंसी है या नहीं, इस पर से भी परदा उठेगा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के निर्देश के बाद पिछले साल अगस्त में वरिष्ठ पुरातत्वविद् पद्मश्री डॉ. अरुण शर्मा ने भोरमदेव मंदिर का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की थी कि मंदिर समतल भूमि से लगभग दो फीट तक नीचे धंस चुका है।
डॉ. शर्मा का कहना है कि मंदिर के आसपास स्थित 10 बड़े पेड़ों से मंदिर की नींव को नुकसान हो रहा है। इस कारण दरारें आ जाने से बरसात में पानी रिसता है। उनका दावा है कि मंदिर का एक हिस्सा करीब 20 से 25 डिग्री तक झुक रहा है। ऐसे में आशंका जताई जा रही मंदिर का उत्तर-पूर्वी हिस्सा सबसे पहले क्षतिग्रस्त होगा।
उन्होंने कहा कि यदि स्थिति जल्द नहीं सुधारी गई तो आने वाले तीन साल में यह मंदिर ढह जाएगा। डॉ. शर्मा के साथ निरीक्षण टीम में प्रभात सिंह, प्रवीण तिर्की, जे.आर.भगत, सुभाष जैन, मानचित्रकार लले सिंह नेताम व विक्रम वैष्णव भी शामिल थे। डॉ. शर्मा ने रिपोर्ट के साथ ही 2 रेखाचित्र व 7 फोटो भी संलग्न किए हैं।
डॉ. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं। उसके अनुसार, मूर्तियों पर चावल चढ़ाने की प्रक्रिया बंद हो, मंदिर के चारों तरफ एक मीटर का गड्ढा खोदकर नींव में अपने स्थान से खिसक चुके पत्थरों को रिसेट कराया जाए, मंदिर के चारों ओर स्टील रेलिंग लगाई जाए। उन्होंने और भी कई सुझाव दिए हैं।
इतिहासकार बताते हैं कि यह मंदिर चंदेलों द्वारा बनाए गए खजुराहो के मंदिरों की शैली में बना है। मंदिर वास्तु और शिल्प दोनों ही रूप में कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीन स्तरों में विभिन्न प्रकार की मूर्तियों को उकेरा गया है, जिनमें शिव की लीलाओं, विष्णु के विभिन्न अवतारों और अन्य देवी देवताओं की कई मूर्तियां शामिल हैं।
दीवारों पर नृत्य करते नायक, नायिकाओं, योद्धाओं, काम-कलाओं को प्रदर्शित करते युगलों का बेहद कलात्मक ढंग से अंकन किया गया है। दीवारों की काम-कला की मूर्तियों की तुलना खजुराहो की मूर्तियों से की जाती है, जिस कारण इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है।
सूबे का यह अनूठा मंदिर छत्तीसगढ़ के समृद्ध इतिहास का साक्षी रहा है। मंदिर के किनारे का विशाल सरोवर और उसके चारो तरफ फैली मैकाल पर्वत श्रृंखलाएं और हरी-भरी घाटियां यहां आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों का मन मोह लेती हैं।
–एकान्त प्रिय चौहान,आईएएनएस
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