भोपाल, 14 नवंबर (जस)। भोपाल में आयोजित लोक-मंथन के वैचारिक सत्रों की श्रृंखला में सोमवार को ”राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति और इतिहास की भूमिका”विषयक सामूहिक सत्र में व्याख्यान देते हुए पद्मविभूषण डॉ. (सुश्री) सोनल मानसिंह ने मीडिया जगत में संचालित टीवी चैनलों, समाचार–पत्रों में धर्म, कला, संस्कृति से ओत–प्रोत संस्कार देने वाले समाचारों की कमी पर चिंता जताई तथा कहा कि यदि भारत के सवा सौ करोड़ नागरिकों में से एक करोड़ नागरिक भी धर्म, कला, संस्कृति को अपनाते हैं तो समाज में आमूल-चूल परिवर्तन संभावी है।
उन्होंने कहा कि हमें स्त्री–पुरूष के बीच के भेद को खत्म करना होगा तभी हम समानता की बात कह सकेंगें।
डॉ. सोनल मानसिंह ने नृत्य और संगीत को जीवन का आधार बताते हुए कहा कि नृत्य ही वो सर्वश्रेष्ठ योग है, जो जीवन में प्रवाह उत्पन्न करता है। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के दशावतार का प्रसंग भी सुनाया। उनका कहना था कि कला,संस्कृति को सुदृढ़ करने का मार्ग सत्यम्–शिवम्–सुन्दरम् से होकर गुजरता है। जिसमें समानता, सौन्दर्य-बोध एवं कला-संस्कृति की झलक दिखती है। उन्होंने
प्रसिद्व नृत्यांगना सुश्री सोनल मानसिंह ने मंदिरों में भारतीय वेशभूषा के साथ प्रवेश करने की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि अन्य समुदाय के लोग अपने मस्जिद और गुरुद्वारों में वेशभूषा का विशेष ध्यान रखतेहैं जबकि हिन्दू समुदाय मंदिरों में पूजा–अर्चना के लिए जाते वक्त इस ओर उदास रहते हैं। इसे हमें ठीक करना होगा।
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