नई दिल्ली, 29 मार्च | नीलम कटारा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। बेटे के हत्यारों को कालकोठरी तक पहुंचाने और ऑनर किलिंग के खिलाफ मजबूत कानून बनाए जाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहीं नीलम उन सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं, जो हालात और रसूख के सामने थककर घुटने टेकने को मजबूर हो जाती हैं।
देश में ऑनर किलिंग के लिए सख्त कानून लाए जाने की जंग को ही जिंदगी का लक्ष्य बना चुकीं नीलम का मानना है कि वह समाज में बदलाव का वाहक बनना चाहती हैं।
आज से ठीक 15 साल पहले हुए नीतीश कटारा हत्याकांड और उसके बाद शुरू हुई ऑनर किलिंग के लिए कड़ा कानून बनाए जाने की नीलम कटारा की जंग को अब बड़ी तादाद में जनसमर्थन मिल चुका है, लेकिन शुरुआत में यह राह इतनी आसान नहीं थी।
नीतीश की मां नीलम कटारा ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, “मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकती, जब पुलिस ने नीतीश की जली हुई लाश की शिनाख्त के लिए मुझे बुलाया था। कोई सोचकर देखे कि एक मां के लिए वह कितना मुश्किल वक्त रहा होगा, जब उसे अपने बेटे की लाश पहचानने के लिए बुलाया जाए।”
नीलम कहती हैं, “मेरे बेटे का कसूर क्या था? सिर्फ इतना कि उसने एक रसूखदार घर की लड़की से प्यार किया और उन लोगों ने अपनी इज्जत के नाम पर मेरे बेटे को बेरहमी से मार दिया।”
वह कहती हैं, “हम कैसे समाज में जी रहे हैं जहां झूठी शान के नाम पर किसी के जीने का हक छीन लिया जाता है। यहां एक लड़की अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी तक नहीं चुन सकती और हम अमेरिका और ब्रिटेन से बराबरी का ढिंढोरी पीटते हैं। विकास सिर्फ जीडीपी से नहीं होता।”
वह ऑनर किलिंग के खिलाफ शुरू की गई अपनी कानूनी लड़ाई के बारे में कहती हैं, “इस मामले के बाद ऑनर किलिंग की परिभाषा ठीक तरह से उभरकर सामने आई। मैं चाहती हूं कि ऑनर किलिंग के खिलाफ सख्त कानून लाया जाना चाहिए। अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं को राजनीति से बाहर रखा जाना चाहिए। जघन्य अपराधों के आरोपियों एवं दोषियों को चुनाव नहीं लड़ने देना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “यदि एक आम शख्स पर कोई मामला दर्ज होता है तो उसे सरकारी नौकरी तक नहीं मिलती, लेकिन पैसे के बल पर दूसरों को नचाने वाले लोग चुनाव लड़कर कानून बनाते हैं। ये एक तरह का राजनीतिक अपराध है।”
बेटे को इंसाफ दिलाने की कानूनी जंग के बारे में नीलम कहती हैं, “मैं बता नहीं सकती कि यह कानूनी लड़ाई कितनी मुश्किल भरी रही। मुझे कई बार लगा कि इन रसूखदार लोगों से जीत नहीं पाऊंगी, लेकिन हर बार बेटे का चेहरा सामने आता और एक अजीब सी हिम्मत मिलती। बहुत सी कानूनी अड़चनें थीं। न्यायालय ने शुरुआत में यह तक कह दिया था कि यह ऑनर किलिंग नहीं हो सकती, क्योंकि अभियुक्त अच्छे घर से ताल्लुक रखते हैं। सरकारी वकील ने तो यहां तक कह दिया था कि मुख्य गवाह भारती यादव को बुलाने की जरूरत ही नहीं है। जब कानूनी दायरे में ही इस तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे तो इंसाफ मिलने की आस धुंधली पड़ जाती है।”
उन्होंने कहा, “शुरुआत में भारती को तीन साल तक नहीं आने दिया गया। भारती को देश लाने के लिए ही एक अलग जंग लड़नी पड़ी। फिर अभियुक्तों को मिल रही पैरोल बेल को रोकने के लिए अलग से मशक्कत करनी पड़ी। सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि इनके वकील छोटी-छोटी बातों पर तारीखें बढ़वा देते थे।”
नीलम कटारा का सवाल है- ‘क्या ऑनर किलिंग जात-पात देखकर होती है?’
उन्होंने कहा, “मैंने तो कभी अपने बच्चों को जात-पात के बारे में नहीं बताया। एक लड़की ने अपने जीवनसाथी का चयन कैसे किया। मामला यही है। पुरुष प्रधान समाज यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि एक लड़की अपना हमसफर चुने।”
नीलम कहती हैं, “इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मुझ पर हर तरह के दबाव बनाए गए। तमाम तरह के प्रलोभन दिए गए। सबसे बड़ा दबाव न्यायिक प्रक्रिया का था। इस कानूनी लड़ाई में लंबा समय लग गया और मुझे वित्तीय रूप से भी तोड़कर रख दिया।”
नीलम कटारा ने अपने बेटे के हत्यारों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी, लेकिन उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सर्वोच्च न्यायालय ने नीतीश कटारा हत्याकांड को जघन्य अपराधों की श्रेणी में रखते हुए उसके हत्यारों विकास यादव और विशाल यादव को 25-25 साल, जबकि सुखदेव पहलवान को 20 साल कैद की सजा सुनाई थी।
नीतीश के बारे में पूछने पर वह बताती हैं, “वह बहुत सीधा और सच्चा था। सिर्फ 25 साल का था। उसने सपने बुनने और उन्हें पूरा करने की कोशिश शुरू ही की थी। वह हर गलत चीज के खिलाफ आवाज उठाता था। धमकियां मिलने के बावजूद वह घबराया नहीं। मुझे उस पर नाज था।”
वह कहती हैं, “मुझे इस बात का अफसोस है कि दोषियों को मृत्युदंड नहीं दिया गया। यह सीधे तौर पर ऑनर किलिंग का मामला है और इस तरह के अपराध में 14 साल के बाद रिहा कर दिया जाता है।”
इस हादसे के एक साल बाद ही नीलम के पति की मौत हो गई थी। अपने छोटे बेटे नितिन कटारा के साथ इस लंबी कानूनी लड़ाई को अकेले ही लड़ने वाली नीलम कटारा की जिंदगी में अब भी कुछ खास बदलाव नहीं आया है। वह कहती हैं, “जिंदगी में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। हां, अब भाग-दौड़ थोड़ी कम हो गई है। पिछले कुछ समय से अपने आगे की जिंदगी के बारे में सोच रही हूं।”
—रीतू तोमर
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