लाॅकडाउन खुलने के पहले ही दिने 1800 रु. के समोसे और मूंगबड़े बेचकर वह अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को पटरी पर ले आई। अब उसे आगे बढ़ना है और वह कहती है सफ़र आसान नहीं है।
यह कहानी नहीं है, सच्चाई है छत्तीसगढ़ के नारायणपुर (Narayanpur) की ठेले वाली (women vendor) दीपाली (Deepali) की। पति की मौत से उभरी भी नहीं थी कि कोरोना महामारी ने उसका ठेला बंद करा दिया था।
लाॅकडाउन (lockdown) खुलते ही 72 दिनों के बाद उसका ठेला नाश्ते के लिए खुला और लोग आने लगे। पहले ही दिन उसने 1800 रु. की कमाई की। उसने कहा ‘मेरी साँसे लौट आई हैं’।
दीपाली के पति की मौत चंद माह पहले विगत 14 फरवरी को हुई थी। वह पति की मौत से उभरी भी नहीं थी कि कोरोना महामारी के फैलाव को रोकने के चलते लॉकडाउन हो गया और उसकी दुकान (ठेला) भी बंद हो गयी।
वह पिता और भाई को पहले ही खो चुकी थी। अपने बच्चों के साथ अब माँ की जिम्मेदारी भी उसी पर है। लगभग 72 दिनों से वह आर्थिक तंगी से जूझ रही थी।
सरकारी दुकान से निःशुल्क राशन मिला लेकिन वह बच्चें के दूध और अन्य जरूरी समान के लिए भी नकदी की आवश्यकता महसूस कर रही थी।
उसने राहत की साँस ली जब बीते सोमवार एक जून से उसका नाश्ता का ठेला खुल (Vendor)गया है। पहले ही दिन उसके समोसे और मूंगबड़े की बिक्री से 1800 रु. की कमाई हुई।
लॉकडाउन में ढील देने का क्रम छत्तीसगढ़ प्रदेश में चल रहा है। सड़क किनारे ठेला और दुकान लगाकर खाने-पीने के समान बेचने वालों को भी राज्य सरकार ने दुकान खोलने की इजाजत दे दी है। हालांकि ये इजाजत शर्तो के साथ दी गयी है।
इसी कड़ी में नारायणपुर में ठेला, खोमचे वालों ने भी सड़क किनारे अपना काम शुरू कर दिया है ताकि उनकी रोजी रोटी चल सकें।
लॉकडाउन के चलते लगभग दो माह से अधिक समय से बंद दुकान (ठेला) सुश्री दीपाली दास ने नारायणपुर बस स्टैण्ड के किनारे पर लगा दिया। साथ लाये पानी से साफ-सफाई की और बैंच जमा दी। फिर चप्पल एक किनारे अलग-थलग उतार कर अगरबत्ती जलायी।
भक्ति-भाव से ठेले के ऊपर हिस्से में टँगी तस्वीर पर अगरबत्ती घुमाई। छोटे से गल्ले के डिब्बे को भी अगरबत्ती का धुँआ दिखाया और फिर ठेले की परिक्रमा की और अगरबत्ती को ठेले के एक तरफ लगा दिया।
ऐसे सुगन्धित प्रसन्न वातावरण में अचानक दीपाली के मन में भारी उदासी घिर आयी। आकाश की और गर्दन उठाकर लगा भगवान से बारिश रोकने और थोड़ा धन्धा होने की प्रार्थना कर रही हो।
दो माह से अधिक दिनों बाद सोमवार एक जून को उसने अपना नाश्ता का ठेला खोला था। मैं दूर खड़ा यह सब देख रहा था ।
रोज की तरह ठेले-खोमचे वालों (Vendors) का धन्धा शुरू हो गया।
दीपाली के ठेले पर समोसे और मूंगबड़े के नाश्ते के लिए लोग आने लगे। राह से गुजरने वाले, भवन निर्माण के मजदूर, तरह के लोग उसके ठेले पर नाश्ता करते दिखने लगे। वह पूरी तरह व्यस्त हो गयी।
अब सुबह की भीड़ छटने लगी । नाश्ता लेकर मजदूर और ग्राहक जा चुके थे। लगतार नाश्ता या चाय बनाकर देना, पैसे का हिसाब करना, प्लेट-बर्तन साफ करना । उसके लिए अब जरा-सा राहत का वक्त था। वह बैंच पर बैठ गयी।
ठेले से कुछ दूरी पर खड़े-खड़े मैं सब देख रहा था। उसकी नजर मुझ पर पड़ी। शायद भाँप लिया कि मैं किसी बड़े शहर या बड़े गांव का हूँ। अचानक और ग्राहक आ गए। वह फिर व्यस्त हो गयी ।
फिर उसे राहत मिली तो मैं उसके पास गया और फिर ठेले वाली (women vendor) दीपाली से बातचीत का सिलसिल शुरू हुआ।
पूछ लिया ‘काफी दिन से बंद था ठेला कब खोला।’
ठेले वाली (women vendor) दीपाली ने डरते-डरते बताया कि कल सोमवार से ठेला खोला है। आज दूसरा दिन है। दो महीने से ज्यादा समय से कोरोना के लॉकडाउन के कारण बंद हो गया था। पहले दिन 1800 के समोसे और मूंगबड़े की बिक्री हुई।
जिज्ञासावश पूछ लिया कितना फायदा ..दीपाली ने बताया कि 500-600 रूपए की बचत हो जाती है। कल चाय नहीं बनायी थी। उसमें ज्यादा कमाई हो जाती है। लेकिन अभी नाश्ता पार्सल कर के ग्राहकों को दे रही हूँ।
मैंने पूछा बंद के दौरान रोजी-रोटी के लिए क्या करती थीं?
जबाव कुछ रूक कर मिला… ‘कुछ नही साहब…. सरकारी दुकान से फ्री में राशन मिला और मेरे छोटे बेटे के लिए दूध पावडर पुलिस के आर आई साहब ने भेज दिया था।’
दर्द भरी आवाज में ठेले वाली (women vendor) दीपाली बोली – माँ के साथ रहती हूँ सर…… पिता, भाई पहले गुजर गए और अभी लगभग साढे़ तीन माह पहले पति को भी खोया है। उसका काम संभाला है…. अकेली हूँ…..सर.. माँ और दो बच्चों को पेटे पाल रही हूँ ।
अचानक ..उफ् … मेरा मुंह खुला रह गया…। एक आठ साल की बच्ची और एक डेढ़ साल का बेटा और माँ चार लोगों के भरण-पोषण का जिम्मा निभा रही हूँ …सर।
अब तो ठेला ही मेरा सहारा है… सर।
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