नई दिल्ली, 27 अप्रैल। लोकपाल की नियुक्ति के मामले में गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा स्वरूप में भी लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सक्षम है और प्रस्तावित संशोधन के बगैर भी इसे लागू किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि केंद्र के पास इसका कोई कारण नहीं है कि इतने वक्त तक लोकपाल की नियुक्ति को संदेह में क्यों रखा गया है।
गौरतलब है कि कि 28 मार्च, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति वर्तमान हालात में संभव नहीं है। लोकपाल बिल में कई सारे संशोधन होने हैं जो संसद में लंबित हैं।
बता दें कि लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश या नामित सुप्रीम कोर्ट के जज और एक नामचीन हस्ती के होने का प्रावधान है।
ज्ञात हो कि लोकसभा में आधिकारिक तौर पर कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है। कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, लेकिन उसे न ही मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा दिया गया है और न ही उसके विधायक दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने लोकपाल के चयन में देश के प्रधान न्यायाधीश की गोपनीयता संबंधी एक दूसरी याचिका भी खारिज कर दी।
शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब लोकपाल अधिनियम को देश में लागू करने का जिम्मा सरकार के कंधों पर आ गया है। सरकार लोकपाल के मौजूदा स्वरूप में कई संशोधन करना चाहती है और इसी वजह से अब तक इसे लागू नहीं किया गया है।
लोकपाल के मौजूदा स्वरूप को लागू करने में सबसे बड़ा रोड़ा लोकपाल की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष को शामिल करने को लेकर माना जा रहा है।
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